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गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णुः गुरूर्देवो महेश्वरः।
गुरूर्साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ।।
संस्कृत के इस आध्यात्मिक मंत्र का अर्थ है गुरू ही ब्रह्मा है, गुरू ही विष्णु है। गुरू ही शिव हैं और गुरू ही साक्षात साकार स्वरूप आदिब्रह्म हैं।
ब्रह्म का साक्षात स्वरूप कहे जाने वाले गुरू की अर्चना और आराधना के लिए गुरू पूर्णिमा पर्व मनाया जाता है। गुरु पूर्णिमा भारत में अपने आध्यात्मिक या फिर अकादमिक गुरुओं के सम्मान में, उनके वंदन और उनके प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए मनाया जाने वाला पर्व है।
सनातन परंपरा के मुताबिक आषाढ़ के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा मनाई जाती है। यह पर्व आमतौर पर जून या जुलाई के महीने में आता है। इस साल गुरु पूर्णिमा 21 जुलाई, 2024 को मनाई जाएगी। गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा और वेद पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस साल गुरु पूर्णिमा के दिन दुर्लभ सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है। क्या है ये योग और इस दिन क्या करना चाहिए चलिए जानते है।
इस बार गुरू पूर्णिमा पर तीन संयोग बन रहे हैं
सर्वार्थ सिद्धि योग ज्योतिष शास्त्र के शुभ योगों में से एक है। किसी विशेष दिन के किसी विशेष नक्षत्र के साथ मिलने से सर्वार्थसिद्धि योग का निर्माण होता है। यह योग 21 जुलाई को सुबह 05 बजकर 36 मिनट से शुरू होकर 22 जुलाई को मध्य रात्रि 12 बजकर 14 मिनट तक रहेगा। इसके अलावा उत्तराषाढ़ा नक्षत्र भोर से लेकर मध्य रात्रि 12:14 तक रहेगा। इस बार गुरु पूर्णिमा पर प्रीति योग भी बन रहा है, जो "प्रेम योग" भी कहा जाता है, इसे सकारात्मकता का प्रतीक माना जाता है। यह योग 21 जुलाई को रात 09 बजकर 11 मिनट से शुरू होकर 22 जुलाई को शाम 05 बजकर 58 मिनट पर समाप्त होगा। मान्यता है इस योग में किए गए सभी कार्य सफल होते हैं।
गुरु पूर्णिमा पर ही महर्षि वेदव्यास की जयंती़ मनाई जाती है
गुरु पूर्णिमा का पावन पर्व महर्षि वेदव्यास की जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। इसे व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। गुरु व्यास वो संत है जिन्होंने दुनिया के सबसे बड़े धर्म ग्रंथ महाभारत को लिखा है। माना जाता है आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन ही महर्षि वेद व्यास का आज से करीब 3000 वर्ष पूर्व जन्म हुआ था। इसके पीछे एक रोचक कथा है।
कहा जाता है महर्षि वेदव्यास ने अपने बाल्यकाल में अपने माता-पिता से प्रभु दर्शन की इच्छा प्रकट की, लेकिन माता सत्यवती ने वेदव्यास की इच्छा को ठुकरा दिया। तब वेदव्यास के जिद करने पर माता ने उन्हें वन जाने की आज्ञा दे दी और कहा जब घर का स्मरण आए तो लौट आना। वेद व्यास वहां तपस्या करने बैठ गए थे। तपस्या के बाद वेदव्यास को संस्कृत भाषा में प्रवीणता हासिल हुई। तत्पश्चात उन्होंने चारों वेदों का विस्तार किया और महाभारत, अठारह महापुराणों सहित ब्रह्मसूत्र की रचना की। महर्षि वेद व्यास को चारों वेदों का ज्ञान था। यही कारण है कि इस दिन गुरु पूजने की परंपरा सदियों से चली आ रही है।
क्या है गुरू पूर्णिमा के ही दिन मनाया जाने वाला अन्वाधान त्यौहार
इस बार गुरु पूर्णिमा के साथ में एक और हिन्दू त्यौहार मनाया जा रहा है जिसे अन्वाधान कहते है। संस्कृत में अन्वाधान का अर्थ अग्निहोत्र जिसमे मुताबिक हवन करने के बाद पवित्र अग्नि को जलाने के लिए ईंधन जोड़ने की रस्म है। इस दिन, वैष्णव सम्प्रदाय के लोग उपवास करते हैं।
इस दिन भगवान विष्णु और उनके रूपों की पूजा और विशेष हवन किया जाता हैं। मान्यता है कि हवन करने के बाद पवित्र अग्नि को जलाने का भी रस्म है, और लकड़ी या कोयले से वह अग्नि को प्रज्वलित रखना होता है। लेकिन अगर आग कम हो जाती है तो इसे अशुभ संकेत माना जाता है। यह सबसे महत्वपूर्ण ध्यान देने योग्य बात है की अग्नि को हवन के बाद जलते रहना चाहिए।
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