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पितृपक्ष की शुरूआत 18 सितंबर से हो चुकी है, यो पर्व 2 अक्टूबर तक जारी रहेंगे। इस दौरान लोग अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण आदि करते हैं। घर-परिवार में जिन लोगों की मृत्यू हो जाती है, वो पितृ बन जाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इंसान की मृत्यू के बाद भी उसकी राह आसान नहीं होती है। गरूड़ पुराण के अनुसार जब व्यक्ति अपना शरीर छोड़ता है, तो वे अनंत यात्रा पर निकलता है और उसकी आत्मा को कई यातनाओं का सामना करना पड़ता है। ऐसे में हम सब के मन में ये सवाल आता है कि आखिर मरने के बाद आत्मा के साथ क्या होता है? क्या वो वापस पृथ्वी लोक पर आती है? तो चलिए जानते हैं गरूड़ पुराण के अनुसार व्यक्ति की मरने के बाद की यात्रा को, साथ ही जानेंगे यात्रा खत्म होने के बाद कैसे आत्मा यमलोक पहुंचती है और कैसे आत्मा को नया जन्म मिलता है...
जिस धर्म ग्रंथ के बारे में हम बात कर रहे हैं, सबसे पहले उसे जानना बेहद जरूरी हैं। दरअसल हिन्दू धर्म में 4 वेद और 18 पुराण हैं। इन ग्रंथों में ही देवी-देवताओं से जुड़ी सभी कहानियां हैं। इनमें से एक है गरुड़ पुराण। इस पुराण में विष्णु जी और उनके वाहन गरुड़ के बीच हुए सवाल-जवाब हैं। गरुड़ देव को भगवान विष्णु ने जन्म-मृत्यु, पुनर्जन्म, आत्मा, यमलोक, स्वर्ग-नर्क, वैतरणी नदी, पाप-पुण्य, नीतियां, कर्म आदि विषयों के बारे में विस्तार से बताया है। मान्यता है कि घर-परिवार में किसी की मृत्यु के बाद गरुड़ पुराण का पाठ करने से मरने वाले की आत्मा को शांति मिलती है। इस पुराण को पढ़ने से हमें भी जीवन और मृत्यु से जुड़ी सभी धार्मिक बातों की जानकारी मिलती है।
गरूड़ पुराण के अनुसार इंसान के मरते ही यमदूत आत्मा को यमलोक ले जाते हैं इसके बाद यमलोक के राजा यमराज आत्मा को 3 दिन तक उसके द्वारा किए गए पाप-पुण्य के बारे में बताते हैं। यमलोक में तीन दिन रहने के बाद यमदूत आत्मा को दोबारा उसके घर छोड़ देते हैं। जहां इंसान की आत्मा उसके घर पर 10 दिन रूकती है और देखती है कि परिवार के लोग किस तरह शोक मना रहे हैं। मृत्यू के 13 वें दिन घर के लोग जो पिंडदान, श्राद्ध, तर्पण करते हैं, उससे आत्मा तृत्प होती है। इन पिंडदान, श्राद्ध और तर्पण से ही आत्मा को यमलोक यात्रा करने में ताकत मिलती है।
गरूड़ पुराण के अनुसार, जब 13 वें दिन घर के लोगों के द्वारा मृत आत्मा का पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध कर दिया जाता है तो इसके बाद आत्मा को अंगूठे के बराबर सूक्ष्म शरीर मिलता है। इस सूक्ष्म शरीर वाली आत्मा को जीव कहा जाता है। ये सूक्ष्म शरीर इसलिए मिलता है ताकि मृत आत्मा अपने पापों की सजा भुगत सके और इसी सूक्ष्म शरीर के साथ मृत आत्मा की यमलोक यात्रा शुरू हो जाती है।
गरूड़ पुराण के अनुसार अच्छे कर्म करने वाली पुण्य आत्माओं को रास्ते में परेशानी नहीं होती। लेकिन जिसने बुरे कर्म किए होते हैं उसके लिए यात्रा बेहद ही पीड़ादायी होती है। इस यात्रा में यमलोक के रास्ते में अंधेरा रहता है और जीव को आग जैसी गर्म बालू पर चलना पड़ता है। ये जीव भूख-प्यास से तड़पता है, इसे खाना-पीना नहीं मिलता है। यमदूत जीव को नर्क में मिलने वाली सजा के बारे में बताकर डराते हैं। रास्ते में रूकने पर चाबुक मारते हैं।
अंधेरे और गर्म रास्ते के बाद जीव को को वैतरणी नदी पार करनी पड़ती है। ये नदी गर्म पानी, खून, मवाद और मांस से भरी होती है। जिस इंसान ने जितने पाप किए, उसे नदी पार करने में उतनी ज्यादा परेशानी होती है। रास्ता और नदी पार कर ये जीव 47 दिन में यमलोक पहुंच जाता है। बुरे कर्म वाले जीव को वहां से नर्क ले जाते हैं।
अच्छे कर्म करने वालों को पितृ लोक भेज दिया जाता है और पितृ बनने पर सूक्ष्म शरीर खत्म हो जाता है। पितृलोक चंद्रमा के उस हिस्से पर होता है, जो दिखाई नहीं देता। पितृपक्ष पर होने वाले पहले श्राद्ध से जीव पितृ बनता है। पितृपक्ष पर ये पितृ हवा के रूप में धरती पर आते हैं। इन दिनों होने वाले श्राद्ध से पितरों को शक्ति मिलती है। पितृपक्ष खत्म होने पर ये पितर अपने लोक चले जाते हैं।
हिन्दू धर्म में पुनर्जन्म की मान्यता है। श्रीमद् भगवद्गीता में श्रीकृष्ण ने आत्मा को अमर बताया है। आत्मा शरीर बदलती रहती है। शास्त्रों में कुल 84 लाख योनियां बताई गई हैं, यानी संसार में इतने प्रकार के प्राणी हैं। अपने कर्मों के हिसाब से आत्मा को 84 लाख योनियों में से होकर गुजरना पड़ता है और अंत में मनुष्य जन्म मिलता है। प्राणी के जैसे कर्म होते हैं मरने के बाद उसे वैसी ही नई योनि मिलती है। नेक काम करने वाले लोगों की आत्मा को जल्दी ही नया जन्म मिल जाता है और जन्म और मृत्यु का ये सिलसिला तब तक जारी रहता है जब तक आत्मा को मोक्ष नहीं मिल जाता।
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