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विवाह को हिन्दू धर्म में पवित्र और अटूट बंधन माना गया है। विवाह के दौरान कई रस्में निभाई जाती हैं। इनमें से एक महत्वपूर्ण रस्म हल्दी की होती है। हल्दी की रस्म में दूल्हा और दुल्हन के शरीर पर हल्दी लगाई जाती है, जिसे पवित्रता और शुभता का प्रतीक माना गया है। इस रस्म के बिना विवाह अधूरा माना जाता है। हल्दी ना केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से महत्व रखती है बल्कि इसके औषधीय गुण भी इसे खास बनाते हैं। आइए जानते हैं कि हल्दी की इस प्राचीन परंपरा के पीछे का धार्मिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक कारण क्या है।
हल्दी की रस्म हिन्दू धर्म में शुभता और पवित्रता का प्रतीक मानी जाती है। विवाह से पहले दूल्हा और दुल्हन को हल्दी लगाने का मुख्य उद्देश्य उन्हें शुद्ध और पवित्र करना है ताकि वे नए जीवन की शुरुआत शुभ और सौभाग्यपूर्ण तरीके से कर सकें। हल्दी को पूजा-पाठ और धार्मिक कार्यों में उपयोग किया जाता है, इसलिए इसे शुभता और सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है।
हल्दी में एंटीसेप्टिक और एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं। इसे त्वचा पर लगाने से त्वचा की सफाई और निखार होता है।
इसके अलावा हल्दी त्वचा को धूप और अन्य संक्रमणों से बचाती है। जिससे दूल्हा और दुल्हन अपनी शादी के दिन स्वस्थ और सुंदर दिखते हैं। हल्दी का प्रयोग मानसिक और शारीरिक तनाव को कम करने में भी सहायक होता है।
सनातन धर्म में अग्नि का विशेष महत्व है। हल्दी का रंग अग्नि के केसरिया, पीले और लाल रंग से मेल खाता है। अग्नि को ऊर्जा और प्रेम का प्रतीक माना जाता है और हल्दी का रंग इस ऊर्जा को दूल्हा-दुल्हन के जीवन में उल्लास और प्रेम का प्रतीक बनाता है।
हल्दी की रस्म को एक खास समारोह के रूप में मनाया जाता है। परिवार, पड़ोसी और रिश्तेदार दूल्हा और दुल्हन के शरीर पर हल्दी लगाते हैं। यह समारोह खुशी, हंसी-मजाक और संगीत से भरा होता है, जो विवाह के माहौल को और भी उत्साहपूर्ण बनाता है।
हल्दी की रस्म ना केवल धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखती है। बल्कि, इसका वैज्ञानिक और औषधीय महत्व भी है। यह रस्म विवाह को शुभ और सौभाग्यपूर्ण बनाने के साथ-साथ दूल्हा-दुल्हन को सकारात्मक ऊर्जा से भरने का एक माध्यम है। इस परंपरा का पालन आज भी उसी श्रद्धा और उत्साह के साथ किया जाता है जो इसे विशेष और यादगार बना देता है।
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