नवीनतम लेख
महाभारत काल महान योद्धाओं से भरा हुआ है। अपने बल और पराक्रम के कारण कई योद्धा अमर हो गए। एक पराक्रमी योद्धा आज भी अमर है और धरती पर मौजूद है। ये योद्धा सात चिरंजीवियों में शामिल है। हम बात कर रहे हैं गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा की। जो बल, बुद्धि, पराक्रम और धनुर्विद्या में कहीं से कहीं तक पांडवों और कौरवों से कम नहीं थें। तो आइए जानते हैं गुरू द्रोण पुत्र अश्वत्थामा के बारे में।
अश्वत्थामा के जन्म को लेकर कहा गया है कि जब द्रोणाचार्य जी ने संतान प्राप्ति के लिए हिमाचल प्रदेश में स्थित तेपेश्वर महादेव नामक स्वयंभू शिवलिंग की पूजा अर्चना की तो गुरु द्रोणाचार्य और माता कृपी को पुत्र रूप में अश्वत्थामा मिले। माना जाता है कि अश्वत्थामा भगवान शिव का अंश है। गुरु द्रोणाचार्य के आश्रम में शिक्षा प्राप्त करने गए कौरवों और पांडवों के साथ अश्वत्थामा ने भी अपने पिता से शस्त्र और शास्त्र की शिक्षा ली। इसी दौरान अश्वत्थामा और दुर्योधन परम मित्र बने।
इसी कारण जब कौरवों और पांडवों के बीच महाभारत का युद्ध हुआ तो इसमें अश्वत्थामा ने अपने पिता की तरह कौरवों का साथ दिया था। महाभारत के इस किरदार के बारे में कहा जाता है कि यह आज भी जिंदा है और घायल हालत में धरती पर भटक रहे हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा को भगवान श्रीकृष्ण से मिले श्राप के कारण आज भी जंगलों में भटकना पड़ रहा है। दरअसल पौराणिक कथाओं में वर्णन आता है कि पांडवों ने महाभारत के युद्ध में कौरवों की ओर से लड़ रहे अश्वत्थामा की मृत्यु की झूठी अफवाह फैला दी। इस बात को सुनकर गुरु द्रोणाचार्य गहरे शोक में डूब गए है और इसी मौके का फायदा उठाकर पांडवों ने उनका वध कर दिया। द्रौपदी के भाई धृष्टद्युम्न ने उनका वध किया।
इस बात का बदला लेने के लिए अश्वत्थामा ने महाभारत के आखिरी दिन रात्रि में छलपूर्वक पांडव शिविर में सो रहे द्रौपदी के 5 पुत्रों की हत्या कर दी। अश्वत्थामा ने पांडवों को भी मारने के लिए ब्रह्मास्त्र चलाया जिसके जवाब में अर्जुन ने भी ब्रह्मास्त्र चलाने का इरादा बना लिया। लेकिन दो ब्रह्मास्त्र संसार को नष्ट कर सकते थे।
यह सोचकर भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को ब्रह्मास्त्र वापस लेने के लिए कहा। अर्जुन मान गए लेकिन अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र वापस न लेते हुए उसे अभिमन्यु की गर्भवती पत्नी उत्तरा की कोख पर चला दिया। जिससे गर्भ में पल रहे बच्चे की मृत्यु हो गई। इस बात से क्रोधित होकर श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा को श्राप कलयुग तक निर्जन स्थानों में भटकने का श्राप दिया। साथ ही उसके घाव कभी न भरने का भी श्राप दिया।
'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।