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दीपावली, जिसे आम बोलचाल में दीवाली भी कहा जाता है। ये त्योहार कार्तिक अमावस्या को मनाया जाता है। दीपावली का शाब्दिक अर्थ है "दीपों की पंक्ति," यह अंधकार पर प्रकाश के विजय का प्रतीक है। इस त्योहार से कई कथाएँ जुड़ी हैं। जैसे समुद्र मंथन से लक्ष्मी जी का प्रकट होना और वामन अवतार द्वारा राजा बली को पाताल लोक का राज्य मिलना।
दीपावली में घरों को दीपों और रंगोली से सजाया जाता है। हालांकि, अक्सर "दिवाली, दीवाली और दीपावली" शब्दों में शुद्ध कौन सा ये चुनने में संशय रहता है। इस आलेख में जानिए सही शब्द और उसका अर्थ।
“दीपावली” और “दीवाली” दोनों शब्द प्रचलन में हैं। लेकिन, शुद्ध रूप से देखा जाए तो “दीपावली” ही सही शब्द है। यह शब्द “दीप” यानी दीपक और “आवली” यानी पंक्ति से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है “दीपों की पंक्ति”। समय के साथ और लोकभाषा में उच्चारण के अंतर के कारण “दीपावली” को कई जगह “दिवाली” के रूप में बोला जाने लगा है।
यह पर्व प्राचीनकाल से मनाया जा रहा है और हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है। यह रात अन्य अमावस्या की रातों से अधिक अंधकारमयी मानी जाती है। इसलिए इस दिन दीप जलाकर इस अंधकार को मिटाने की परंपरा प्राचीन समय से चली आ रही है। दीपावली को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाले पर्व के रूप में देखा जाता है। इसका उल्लेख वैदिक श्लोक "तमसो मा ज्योतिर्गमयः" में भी मिलता है, जिसका अर्थ है "अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाना"।
प्राचीन समय में दीपावली को "दीपोत्सव" कहा जाता था, जिसका अर्थ है "दीपों का उत्सव"। यह पर्व पहले केवल यक्ष और गंधर्व जातियों द्वारा प्रमुख रूप से मनाया जाता था। कालांतर में यह सभी जातियों का प्रमुख पर्व बन गया और इसमें नई-नई परंपराओं का समावेश होता गया।
इस पर्व के साथ कई पौराणिक और ऐतिहासिक कथाएँ जुड़ी हुई हैं। जिनमें प्रमुख रूप से देवी लक्ष्मी, भगवान विष्णु, गणेश, काली, और राजा बली से संबंधित घटनाएँ शामिल हैं।
ऐसी मान्यता है कि प्रारंभ में यह पर्व यक्ष और गंधर्व जातियों का था। इस दिन यक्ष अपने राजा कुबेर के साथ हास-परिहास और आमोद-प्रमोद करते थे। कालांतर में यह उत्सव लोकपर्व में बदल गया और इसमें धन की देवी लक्ष्मी की पूजा का प्रचलन शुरू हुआ।
प्रारंभ में दीपावली के अवसर पर केवल कुबेर की पूजा होती थी। जो यक्षों के देवता और धन के प्रतीक माने जाते थे। लेकिन कुबेर की मान्यता केवल यक्ष जातियों तक सीमित थी। जबकि, माता लक्ष्मी का महत्व सभी देवताओं और मानव समाज में भी था। इसीलिए, समय के साथ इस पर्व को लक्ष्मी पूजन से जोड़ दिया गया।
एक अन्य कथा के अनुसार, लक्ष्मी और विष्णुजी का विवाह भी इसी दिन संपन्न हुआ था। इस कारण दीपावली पर लक्ष्मी पूजन के साथ-साथ भगवान विष्णु की पूजा की भी परंपरा है।
गणेशजी की पूजा भी दीपावली के अवसर पर की जाती है। भौव संप्रदाय ने गणेशजी को ऋद्धि-सिद्धि के दाता के रूप में प्रतिष्ठित किया और दीपावली के दिन लक्ष्मी के साथ गणेशजी का पूजन शुरू हुआ।
एक अन्य मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान इसी दिन माता लक्ष्मी और धन्वंतरि प्रकट हुए थे। इसी कारण दीपावली को धनतेरस और लक्ष्मी पूजन के रूप में भी मनाया जाता है। इसी दिन माता काली भी प्रकट हुईं थीं। इसलिए, कई स्थानों पर काली जी की भी पूजा की जाती है।
एक और कथा के अनुसार, दीपावली का उत्सव राजा बली से जुड़ा है। भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर तीन पगों में तीनों लोकों को नाप लिया और राजा बली को पाताल लोक का राज्य दिया। विष्णुजी ने उन्हें वचन दिया कि उनकी स्मृति में हर साल यह पर्व मनाया जाएगा। तभी से दीपावली का उत्सव प्रारंभ हुआ।
एक कथा के अनुसार राजा बली के पराजय के बाद इंद्र ने स्वर्ग को सुरक्षित जानकर दीप जलाकर अपनी प्रसन्नता व्यक्त की थी। इस घटना को भी दीपावली के साथ जोड़ा जाता है।
समय के साथ दीपावली मनाने के तरीके में बदलाव आया है। पहले यह पर्व केवल दीप जलाने तक सीमित था, लेकिन आज इसमें मिठाइयाँ बांटना, पटाखे जलाना और घरों की सजावट करना प्रमुख रूप से शामिल हैं। समाज में इसे धन और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। इसलिए, लोग इस दिन नए वस्त्र पहनते हैं और व्यापारियों के लिए यह नए वित्तीय वर्ष का शुभारंभ भी माना जाता है।
स्वास्थ्य और धन के देवता धन्वंतरि की पूजा का दिन।
नरकासुर के वध की स्मृति में मनाया जाता है।
लक्ष्मी पूजन और दीप जलाने का प्रमुख दिन।
भगवान कृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाने की स्मृति में मनाया जाता है।
भाई-बहन के प्रेम के प्रतीक का पर्व।
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