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सालभर के इंतजार के बाद फिर एक बार दिवाली का पर्व पूरे देशभर में धूमधाम और उत्साह के साथ मनाया जाएगा। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि के दिन दिवाली का पावन पर्व मनाया जाता है। इस दिन माता लक्ष्मी और भगवान गणेश जी की विशेष रूप से पूजा की जाती है। साथ ही भगवान श्रीराम के अयोध्या आगमन की खुशी में हर घर को दीयों से सजाया जाता है।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि दिवाली मनाने को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। आइए इस लेख में जानते हैं कि दिवाली का पर्व क्यों मनाया जाता है। इससे जुड़ी पौराणिक कथाओं क्या कहती हैं।
दिवाली क्यों मनाई जाती है, इसको लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। लेकिन धार्मिक ग्रंथों के अनुसार कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को भगवान श्रीराम 14 वर्षों के वनवास की समय अवधि पूर्ण करके और रावण का वध कर अपनी जन्मभूमि अयोध्या नगरी लौटे थे। इस उपलक्ष में संपूर्ण अयोध्यावासियों ने दीपोत्सव का आयोजन कर भगवान श्रीराम का स्वागत किया था। ऐसे में कहा जाता है कि इस दिन से ही दिवाली मनाने की प्रथा शुरू हुई थी।
महाभारत की पौराणिक कथा में एक महत्वपूर्ण अध्याय पांडवों की वनवास यात्रा का है। कौरवों के शतरंज के खेल में हार के बाद पांडवों (युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव) को 13 वर्षों तक वनवास का दंड मिला था। जब पांडव अपना वनवास पूरा कर अपने घर लौटे तो उनके आगमन की खुशी में नगरवासियों ने दीपोत्सव के साथ उनका स्वागत किया। इसी खुशी को आज भी दिवाली पर्व के रूप में मनाया जाता है। कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को पांडवों की घर वापसी की याद में दीप जलाए जाते हैं और उनकी विजय का जश्न मनाया जाता है।
शास्त्रों में वर्णित एक पौराणिक कथा समुद्र मंथन की भी है। जिसमें देवता और असुर समुद्र को मथकर 14 रत्नों की उत्पत्ति करते हैं। समुद्र मंथन के दौरान ही कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को माता लक्ष्मी का जन्म हुआ था। इस दिन को दिवाली के रूप में मनाया जाता है। जब भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। मान्यता है कि दिवाली के दिन माता लक्ष्मी के साथ गणेश जी की पूजा करने से घर में धन और समृद्धि की वृद्धि होती है। वहीं गणेश जी को विघ्नहर्ता माना जाता है, जो सभी बाधाओं और समस्याओं को दूर करते हैं। इसलिए दिवाली पर उनका पूजन किया जाता है।
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