दिवाली पर क्यों खेला जाता है जुआ

क्या है दिवाली और जुआ खेलने का कनेक्शन, जानिए क्या कहते हैं शास्त्र और कहां से शुरु हुई ये परंपरा


दीपावली पर मां लक्ष्मी की पूजा, आराधना, जप, तप, हवन की परंपरा है। पांच दिवसीय दिपोत्सव में ऐसी कई धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक परंपराएं है जो इस त्योहार को विशेष और अलग बनाती हैं। लेकिन इन सब के बीच दीपावली से जुड़ी एक और विशेष रस्म है जिसे लेकर विरोधाभास भी है और आश्चर्य भी। हम बात कर रहे हैं दिपावली के दिन जुआ खेलने की परंपरा के बारे में। तो चलिए आज जानते हैं दिपावली पर आखिर क्यों है जुआ खेलने की अनोखी परंपरा?


दिवाली पर जुआ खेलने की रस्म का शास्त्रों में उल्लेख


क्या आप जानते है दीपावली पर मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के साथ धन, धान्य, वैभव में वृद्धि हेतु अनेक जतन और पूजापाठ इत्यादि किए जाते है। इन्हीं रस्मों में से एक है द्रुत क्रीड़ा यानी जुआ खेलना! द्रुत कीड़ा को भारत के शास्त्रों और पुराणों मे 64 कलाओं में स्थान दिया गया है। ऋग्वेद और श्रीमद्भागवत महापुराण सहित अनेक ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है। वहीं महाभारत के युद्ध के पीछे भी जुए की अहम भूमिका मानी जाती है।


शिव-पार्वती ने की थी दिवाली पर जुए की शुरुआत


एक कथा अनुसार यह क्रीड़ा (खेल) दीपावली के दिन मां पार्वती व भगवान शिव के बीच संपन्न हुई थी जिसमें मां पार्वती की जीत हुई व भगवान शिव को भी इससे अत्यंत प्रसन्नता हुई। तभी से दीपावली की संध्या को जुआ खेलना शुभ माना गया है। इसके परिणाम से वर्ष भर के शुभ-अशुभ फल का आंकलन किया जाता है। वर्ष भर परिवार के किस सदस्य कि किस्मत चमकेगी, किसके हाथों से शुभ कार्य करना या कोई नई शुरुआत करना शुभ होगा इसका अंदाजा लगाया जाता है।

यह परंपरा सदियों पुरानी है। ईसा से भी कई वर्ष पूर्व पहले भी इसके साक्ष्य पाए गए है। शास्त्रों एवं पुराणों में भी इसका वर्णन मिलता है। लेकिन वर्तमान आधुनिक युग में जुए के कई प्रकार है। कसीनो, कार्ड, गेम आदि के जरिए इसका क्रेज बढ़ रहा है जो लोगों को आर्थिक नुकसान देता है और उनके दुखों का कारण बनता है। वास्तव में यह खेल अपनी किस्मत आजमाने व परिवार के किस व्यक्ति के हाथों वर्ष भर शुभ कार्य किए जा सकते हैं इसका अंदाजा लगाने के लिए खेला जाए तो शुभ होता है। यह मनोरंजन का भी अच्छा साधन है किंतु तभी तक जब तक यह किसी के लिए बड़े आर्थिक नुकसान या अन्य किसी प्रकार से किसी व्यक्ति या परिवार के दुखों का कारण ना बने।


यह है परंपरा 


दीपावली की रात्रि को परिवार के सारे सदस्य पूजा पाठ करने के बाद चौसर के माध्यम से खेलते हैं जिसका मकसद अपनी किस्मत आजमाना होता है। इस खेल से परिवार के सदस्य इस बात का अंदाजा लगाते हैं कि परिवार के किस सदस्य का लक वर्ष भर अच्छा चलने वाला है। लेकिन जो लोग अनैतिक तरीके से इस खेल को खेलते है उनके लिए महाभारत का प्रसंग एक शिक्षाप्रद उदाहरण है।

महाभारत में हम देखते हैं कि किस प्रकार पांडव द्रुत क्रीड़ा मे अपना राज पाठ, सारा धन वैभव हारे। युधिष्ठिर ने अपना सब कुछ दाव पर लगा दिया। उनका धन, वैभव, पद, प्रतिष्ठा, मान सम्मान, भाई यहां तक पत्नी भी द्रुत की वजह से ही अपमानित हुई। वे हार गए और फिर पूरे परिवार को ही जंगलों में अपना जीवन व्यतीत करना पड़ा। अत्यंत घोर कष्टों को सहन करना पड़ा। ऐसे में हमें समझना होगा कि शास्त्रों में जो रस्में जो परंपराएं दी गई है वह आपके भले के लिए दी गई है। उन्हें अन्यत्र तरीके से समझना और उनका दुरुपयोग करना गलत भी है और दुष्परिणाम के कारक भी। गरुड़ पुराण के अनुसार किसी का अमंगल करने या फिर लोभ की भावना से खेला गया जुआ व्यक्ति को नरक की अनेक यातनाएं देने का कारक बनता है।


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