दिवाली 2024: मां लक्ष्मी की संपूर्ण आरती

Diwali 2024: माता लक्ष्मी की आरती के समय इन बातों का रखें ध्यान, यहां पढ़ें पूरी आरती 


दिवाली का त्योहार पूरे देशभर में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन माता लक्ष्मी के साथ अन्य देवी-देवताओं की पूरे विधि-विधान से पूजा की जाती है। इसके बाद माता लक्ष्मी की आरती की जाती है। इस लेख में जानते हैं कि दिवाली के दिन माता लक्ष्मी की कौन सी आरती की जाती है। साथ ही जानेंगे आरती करते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए। 


दिवाली आरती करने से पहले ये मंत्र बोलें


या श्री: स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मी: 
पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धि:।
श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा 
तां त्वां नता: स्म परिपालय देवि विश्वम्॥


अर्थ: जो पुण्यात्माओं के घरों में स्वयं ही लक्ष्मीरूप से, पापियों के यहां दरिद्रतारूप से, शुद्ध अन्त:करणवाले पुरुषों के हृदय में बुद्धिरूप से, सत्पुरुषों में श्रद्धारूप से तथा कुलीन मनुष्य में लज्जारूप से निवास करती हैं। उन महालक्ष्मी को हम नमस्कार करते हैं। देवि! आप सम्पूर्ण विश्व का पालन कीजिये।


दिवाली पर लक्ष्मी जी की आरती


 ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।

तुमको निशिदिन सेवत, हरि विष्णु विधाता॥

           ॐ जय लक्ष्मी माता॥


 उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता।

सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता॥

           ॐ जय लक्ष्मी माता॥


 दुर्गा रुप निरंजनी, सुख सम्पत्ति दाता।

जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता॥

           ॐ जय लक्ष्मी माता॥


 तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता।

कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी, भवनिधि की त्राता॥

            ॐ जय लक्ष्मी माता॥


 जिस घर में तुम रहतीं, सब सद्गुण आता।

सब सम्भव हो जाता, मन नहीं घबराता॥

           ॐ जय लक्ष्मी माता॥


 तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता।

खान-पान का वैभव, सब तुमसे आता॥

           ॐ जय लक्ष्मी माता॥


 शुभ-गुण मन्दिर सुन्दर, क्षीरोदधि-जाता।

रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता॥

           ॐ जय लक्ष्मी माता॥


महालक्ष्मीजी की आरती, जो कोई जन गाता।

उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता॥

           ॐ जय लक्ष्मी माता॥


दिवाली पर लक्ष्मी जी की आरती के समय इन नियमों का पालन करें


  • अपने आराध्य की आरती के दौरान यदि आरती के नियमों का पालन किया जाए तो पूजा का संपूर्ण फल मिलता है। 
  • मां लक्ष्मी की आरती के लिए आप तांबे,पीतल या फिर चांदी की थाली ले सकते हैं। इसके बाद थाली में रोली, कुमकुम, अक्षत, ताजे पुष्प और प्रसाद के लिए कुछ मीठा रख लें। 
  • मिट्टी, चांदी, तांबे अथवा पीतल के दीपक में शुद्ध घी का आरती के लिए पांच या सात बत्तियों वाला दीपक जलाया जाता है। कपूर से भी आरती कर सकते हैं। 
  • शुभ फल की प्राप्ति के लिए आरती करते समय थाली या दीपक को अपने इष्टदेवी-देवता के समक्ष इस प्रकार घुमाया जाना चाहिए कि घुमाते हुए ॐ जैसी आकृति बन जाए। 
  • आरती की थाली को अपनी बाईं ओर से दाईं ओर चलाते हुए सबसे पहले भगवान के श्री चरणों की तरफ चार बार घुमाएं। उसके बाद उनकी नाभि की तरफ दो बार और मुख की तरफ ले जाकर एक बार घुमाएं। 
  • इसी तरह कुल सात बार से ज्यादा आरती को दोहराना चाहिए। आरती के बाद शंख या लोटे में रखे जल से आरती करके सभी पर छिड़काव करना बहुत शुभ माना गया है। 
  • मान्यता है कि इससे जीवन के सभी विकार दूर हो जाते हैं। सुख-समृद्धि आती है। आरती के बाद दोनों हाथों से आरती ग्रहण करने के पीछे यह तर्क माना गया है कि ईश्वर की शक्ति उस ज्योति में समा जाती है जिसको भक्त अपने मस्तक पर ग्रहण करके धन्य हो जाते हैं।


आरती के बाद करें ये मंत्रोच्चार 


मान्यता है कि देवी मां के पूजन के समय किसी भी तरह की त्रुटि या कमी रह जाती है तो आरती के माध्यम से उसकी पूर्ति हो जाती है। स्कन्द पुराण में कहा गया है- 

मन्त्रहीनं क्रियाहीनं यत् पूजनं हरेः।
सर्व सम्पूर्णतामेत कृते नीराजने शिवे।


इसका अर्थ है कि पूजन मंत्रहीन और क्रियाहीन होने पर भी अपने आराध्य की आरती कर लेने से उसमें सारी पूर्णता आ जाती है। वहीं अन्य ग्रंथों में 'प्रकाश' को ज्ञान का प्रतीक माना गया है। परमात्मा प्रकाश और ज्ञान रूप में ही हर जगह विद्यमान हैं। ज्ञान प्राप्त होने से अज्ञान रुपी मनोविकार दूर होते हैं और सांसारिक शूल मिटते हैं। इसलिए आरती के माध्यम से प्रकाश की पूजा को भगवान की पूजा भी माना गया है। 


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