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दिवाली का त्योहार पूरे देशभर में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन माता लक्ष्मी के साथ अन्य देवी-देवताओं की पूरे विधि-विधान से पूजा की जाती है। इसके बाद माता लक्ष्मी की आरती की जाती है। इस लेख में जानते हैं कि दिवाली के दिन माता लक्ष्मी की कौन सी आरती की जाती है। साथ ही जानेंगे आरती करते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।
या श्री: स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मी:पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धि:।श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जातां त्वां नता: स्म परिपालय देवि विश्वम्॥
अर्थ: जो पुण्यात्माओं के घरों में स्वयं ही लक्ष्मीरूप से, पापियों के यहां दरिद्रतारूप से, शुद्ध अन्त:करणवाले पुरुषों के हृदय में बुद्धिरूप से, सत्पुरुषों में श्रद्धारूप से तथा कुलीन मनुष्य में लज्जारूप से निवास करती हैं। उन महालक्ष्मी को हम नमस्कार करते हैं। देवि! आप सम्पूर्ण विश्व का पालन कीजिये।
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निशिदिन सेवत, हरि विष्णु विधाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता।
सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
दुर्गा रुप निरंजनी, सुख सम्पत्ति दाता।
जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी, भवनिधि की त्राता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
जिस घर में तुम रहतीं, सब सद्गुण आता।
सब सम्भव हो जाता, मन नहीं घबराता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता।
खान-पान का वैभव, सब तुमसे आता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
शुभ-गुण मन्दिर सुन्दर, क्षीरोदधि-जाता।
रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
महालक्ष्मीजी की आरती, जो कोई जन गाता।
उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
मान्यता है कि देवी मां के पूजन के समय किसी भी तरह की त्रुटि या कमी रह जाती है तो आरती के माध्यम से उसकी पूर्ति हो जाती है। स्कन्द पुराण में कहा गया है-
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं यत् पूजनं हरेः।सर्व सम्पूर्णतामेत कृते नीराजने शिवे।
इसका अर्थ है कि पूजन मंत्रहीन और क्रियाहीन होने पर भी अपने आराध्य की आरती कर लेने से उसमें सारी पूर्णता आ जाती है। वहीं अन्य ग्रंथों में 'प्रकाश' को ज्ञान का प्रतीक माना गया है। परमात्मा प्रकाश और ज्ञान रूप में ही हर जगह विद्यमान हैं। ज्ञान प्राप्त होने से अज्ञान रुपी मनोविकार दूर होते हैं और सांसारिक शूल मिटते हैं। इसलिए आरती के माध्यम से प्रकाश की पूजा को भगवान की पूजा भी माना गया है।
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