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जब जब संसार को जरूरत पड़ी भगवान विष्णु ने अवतार लिया। हर युग में भगवान ने तीनों लोकों की रक्षा की। इन सब अवतारों में समय का एक बहुत बड़ा अंतर था। इसका कारण यह भी था कि जब तक पाप चरम पर न हो भगवान अवतरित नहीं हुए। सही समय आने पर भगवान ने जन्म लिया।
भगवान के एक-एक अवतार ने धरती को उस समय पापियों से मुक्त कर दिया था। लेकिन एक समय ऐसा भी आया जब भगवान को एक ही समय में बहुत कम अंतराल पर तीन अवतार लेने पड़े । यह सब तब हुआ था जब इन्द्र के अहंकार से नाराज दुर्वासा ऋषि के श्राप से लक्ष्मी जी समुद्र में चली गई। इन्द्र लोक का सारा यश वैभव चला गया।
देवताओं के आह्वान पर भगवान विष्णु ने लक्ष्मी जी को समुद्र की गहराई से निकालने के लिए देव दानवों से समुद्र मंथन करवाया। इस काम में भगवान ने सबसे पहले कच्छप अवतार लेकर मंदराचल पर्वत को अपनी पीठ पर उठाया। वहीं समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत के बंटवारे के लिए भगवान ने मोहिनी रूप में अवतार लिया। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसी दौरान भगवान ने एक और अवतार लिया भगवान धन्वंतरि का। तो आइए जानते हैं धन्वंतरि भगवान के बारे में और भी विस्तार से।
समुद्र मंथन में सहायता करने और देवताओं को अमरत्व प्रदान करने के लिए भगवान विष्णु धन्वंतरि के रूप में प्रकट हुए। धन्वंतरि भगवान ही अपने हाथों में अमृत कलश लेकर समुद्र से बाहर आए थे। उन्हें समुद्र मंथन से निकले चौदह रत्नों में भी स्थान दिया गया है। पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु ने धन्वंतरि भगवान के रूप में कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को अवतार लिया था। तभी से इस दिन को धनतेरस के रूप में पूजा जाता है।
पुराणों में धन्वंतरि भगवान के दो जन्मों का उल्लेख मिलता है। पहला समुद्र मंथन के समय विष्णु भगवान के अंश रूप में हुआ। इस जन्म में उन्हें देवता नहीं माना गया। इस जन्म में वे धन्वंतरि प्रथम के नाम से जाने गए ।
भगवान विष्णु की इच्छा से धनवंतरी जी का दूसरा जन्म द्वापर युग में धन्वंतरि द्वितीय के नाम से हुआ। द्वापर युग में काशी के राजा धन्व ने पुत्र प्राप्ति के लिए भगवान शिव की आराधना करते हुए कठोर तप किया। तब शिवजी के आशीर्वाद से राजा को धनवंतरी पुत्र रूप में प्राप्त हुए। इस जन्म में उन्हें सभी सिद्धियां प्राप्त हुईं जो देवताओं को होती हैं। इस जन्म में धन्वंतरि भगवान ने ऋषि भारद्वाज से आयुर्वेद की विद्या ग्रहण की। मत्स्यपुराण के अनुसार चिकित्सा पद्धति संबंधित ज्ञान धन्वंतरि जी को भास्कर मुनि से भी प्राप्त हुआ। वैदिक काल में देवताओं के वैद्य अश्विनी कुमार थे, जबकि पौराणिक काल में धन्वंतरि देवताओं के चिकित्सक बनें।
भगवान धन्वंतरि की चार भुजा हैं। दो भुजाओं में शंख और कलश है। तीसरे हाथ में आयुर्वेद संहिता और चौथे हाथ में औषधि लिए भगवान धन्वंतरि विष्णु जी जैसे स्वरूप में है।
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