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हिंदू धर्म में देव दिवाली का पर्व विशेष धार्मिक महत्व है। इसे त्रिपुरारी पूर्णिमा के नाम से भी जानते हैं। मान्यता है कि भगवान शिव ने त्रिपुरासुर राक्षस का वध कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही किया था। तब देवताओं ने प्रसन्न होकर दिवाली मनाई। इसका वर्णन महाभारत के कर्ण पर्व में विस्तार से मिलता है। देव दिवाली का पर्व इस वर्ष 15 नवंबर को मनाया जाएगा, जिसमें दीपदान, पवित्र स्नान और भगवान विष्णु की आराधना की जाती है। यह देवताओं की दिवाली है। इस दिन दीप जलाकर देव स्थल पर रखने से जीवन में समृद्धि और शांति आती है।
देव दिवाली का पर्व भगवान शिव द्वारा त्रिपुरासुर राक्षस का वध करने की कथा है। महाभारत के कर्णपर्व में इसका विस्तृत वर्णन मिलता है। त्रिपुरासुर, तारकासुर का पुत्र था त्रिपुरासुर के तीन भाई थे। जिनका नाम था तरकाक्ष, कमलाक्ष, और विद्युन्माली। इन तीनों ने घोर तपस्या की थी। ब्रह्मा ने उन्हें तीन अलग-अलग नगर बसाने का वरदान दिया था। इन तीनों ने मय दानव से सोने, चांदी, और लोहे के तीन नगर बनवाए। ये तीनों नगर 'पुर' या 'त्रिपुर' कहलाए।
सहस्रों वर्षों बाद इन तीनों नगरों के मिलने पर देवताओं की प्रार्थना से प्रेरित भगवान शिव ने एक बाण से तीनों पुरों को नष्ट किया। इस तरह त्रिपुरासुर का वध हुआ और देवताओं को इस दानव के अत्याचारों से मुक्ति मिली। देवताओं ने खुश होकर भगवान शिव को त्रिपुरारी नाम दिया। त्रिपुरासुर का वध कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही हुआ था।
त्रिपुरासुर ने अपने वरदान के बाद तीनों नगरों का निर्माण किया और त्रिलोकी में अत्याचार फैलाना शुरू कर दिया। त्रिपुरासुर के अत्याचार से देवता बहुत परेशान हो गए और उन्होंने भगवान शिव से सहायता की प्रार्थना की। भगवान शिव ने अंततः अभिजित नक्षत्र के समय एक ही बाण से तीनों नगरों का विनाश कर त्रिपुरासुर का वध किया। इस विजय की खुशी में देवताओं ने दिवाली मनाई, जिसे देव दिवाली के रूप में जाना गया। तभी से हर साल कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दिवाली मनाने की परंपरा है।
इस वर्ष देव दिवाली का पर्व 15 नवंबर 2024 को मनाया जाएगा। पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 15 नवंबर को सुबह 6:19 बजे से होगी और इसका समापन 16 नवंबर को सुबह 2:58 बजे होगा। पूजन के लिए प्रदोष काल का मुहूर्त शाम 5:10 से 7:47 तक रहेगा। ये 2 घंटे 37 मिनट का होगा। इस मुहूर्त में दीपदान और पूजा करना अत्यधिक शुभ और फलदायी माना गया है।
देव दिवाली के दिन दीपदान का विशेष महत्व होता है। इस दिन दीपक जलाकर देव स्थान पर रखना अत्यंत शुभ माना जाता है। दीपदान से घर में सुख-शांति और समृद्धि का आगमन होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन जल में दीपदान करने से पितरों की आत्मा को शांति प्राप्त होती है। विशेष रूप से गंगा या अन्य पवित्र नदियों में दीपदान करने का पुण्य कई गुना बढ़ जाता है।
देव दिवाली की पूजा विधि के अनुसार व्यक्ति को सूर्योदय से पहले स्नान करना चाहिए। यदि संभव हो तो पवित्र गंगा नदी में स्नान करें। स्नान के बाद घर के देवस्थान पर या किसी पवित्र स्थान पर दीप जलाएं। फिर भगवान विष्णु, शिव और माता लक्ष्मी की आराधना करें और "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप करें। इसके बाद तिल या घी का दीपक जलाकर जल में दीपदान करें। इस दिन अन्न, वस्त्र, या भोजन का दान करने का भी विशेष महत्व होता है।
देव दिवाली का पर्व धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। बल्कि, यह सामाजिक एकता और समृद्धि का प्रतीक भी है। इस दिन दान-पुण्य और सेवा कार्य का विशेष महत्व होता है। कार्तिक पूर्णिमा पर किए गए दान और पुण्य कार्यों का प्रभाव जीवन में सुख-समृद्धि लाने में सहायक होता है। देव दिवाली का यह पर्व अपने साथ धर्म, संस्कृति और परंपराओं को जोड़ने का एक अनूठा अवसर प्रदान करता है, जिसे श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है।
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