भारत के इन स्थानों पर नहीं मनाई जाती दीवली

देश के इन राज्यों में नहीं होती दीवाली की पूजा, जानिए क्या है दीवाली ना मानने के पीछे का राज्य


दीपावली, जिसे दिवाली भी कहा जाता है, हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्योहार है। इसे अंधकार पर प्रकाश की, बुराई पर अच्छाई की और अज्ञानता पर ज्ञान की विजय के रूप में मनाया जाता है। इसके पीछे विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक कथाएँ जुड़ी हुई हैं। दीपावली एक ऐसा धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक त्यौहार है जिसे हर समाज हर वर्ग अपने -अपने तरीके से मनाता है।

पौराणिक कथाओं में  सबसे प्रचलित कथा  दीपावली उस दिन मनाई जाती है जब भगवान राम 14 वर्ष के वनवास के बाद अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौटे थे। उनके स्वागत में अयोध्यावासियों ने पूरे नगर को दीपों से सजाया था।

इस दिन भगवान विष्णु ने नरकासुर नामक दानव का वध करना और 16,000 स्त्रियों को मुक्त कराया था। जैन धर्म के अनुयायी इस दिन को भगवान महावीर के निर्वाण दिवस के रूप में भी मनाते हैं। लेकिन भारत में कुछ ऐसी जगहें भी है जहां दिवाली मनाने से परहेज किया जाता है।


केरल


यहां दीवाली के दिन भगवान विष्णु के अवतार भगवान वामन की पूजा की जाती है, जिन्होंने राजा बलि को पराजित किया था। पौराणिक मान्यता के अनुसार, राजा बलि एक शक्तिशाली और दानी राजा थे, जिन्होंने अपने राज्य में सुख-समृद्धि लाई थी। लेकिन उन्हें अपनी शक्ति का अभिमान हो गया तो भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर राजा बलि का अहंकार दूर किया। फिर भगवान विष्णु ने राजा बलि को वरदान दिया कि वे प्रतिवर्ष दशहरे के दिन पृथ्वी पर आएंगे और लोगों को आशीर्वाद देंगे। 

तभी से केरल में दीवाली के दिन भगवान वामन की पूजा की जाती है और राजा बलि की याद में अनुष्ठान किए जाते हैं। यह परंपरा केरल की संस्कृति और पौराणिक मान्यताओं का हिस्सा है। केरल में दीवाली न मनाने के पीछे मुख्य कारण यही है कि केरल की संस्कृति में दीपावली का त्योहार नहीं है।


कर्नाटक में दिवाली शोक दिवस के रूप में मनाई जाती है 


कर्नाटक के मेलकोट के मंड्यम अयंगर (एक पुजारी वर्ग) दिवाली को शोक दिवस के रूप में मनाते हैं। क्योंकि 18 वीं शताब्दी में, मंड्यम अयंगर मैसूर (अब मैसूर) के वोडेयार राजाओं के प्रति निष्ठा रखते थे। उन्होंने अपने पड़ोसी टीपू सुल्तान से लड़ने में वोडेयारों की मदद करने के लिए अंग्रेजों के साथ गुप्त रूप से गठबंधन करने का काम किया। टीपू को इस सौदे की भनक लग गई और 1790 में नरक चतुर्दशी के दिन, उसने मेलकोट पर हमला किया और समुदाय के कम से कम 800 निहत्थे सदस्यों को मार डाला। उसके बाद पूरे समुदाय ने कभी दिवाली नहीं मनाई।


तमिलनाडु


तमिलनाडु के त्रिची के पास थोप्पुपट्टी और सामपट्टी गांव सालों से दिवाली के उत्सव से दूर रहे हैं, क्योंकि आतिशबाजी से उनके पवित्र बरगद के पेड़ की शाखाओं में रहने वाले चमगादड़ों को परेशानी होती है। वे बरगद के पेड़ को पवित्र मानते हैं क्योंकि यह उनके गांव के देवता मुनियप्पा-सामी का घर है। वेट्टांगुडी पक्षी अभयारण्य के पास के ग्रामीण लोग प्रवासी पक्षियों के लिए दिवाली के दौरान कभी पटाखे नहीं जलाते हैं। ऐसा नियम पालन करने वन संरक्षण अधिकारी पक्षियों की ओर से उन्हें मिठाई बांटते हैं।


राजस्थान


इसके अलावा राजस्थान के मंडोर में भी दीपावली विशेष उत्साह से नहीं मनाई जाती है। मान्यताओं के अनुसार मंडोर नामक स्थान पर मंदोदरी ने रावण से विवाह किया था। इस हेतु वे रावण को अपना दामाद मानते हैं। 


उत्तराखंड


उत्तराखंड के कांगड में बैजनाथ गाँव में रावण को महान शिवभक्त माना गया है। किंवदंती के अनुसार रावण ने उनके गाँव में शिव की तपस्या के दौरान दस सिर अर्पित किए थे। इसलिए दीपावली का उत्सव विशेष उत्साह से नहीं मनाया जाता है।


महाराष्ट्र 


इसी तरह महाराष्ट्र के गढ़चिरौली के गोंड आदिवासी रावण के सीताहरण प्रसंग को स्वीकार नहीं करते। मान्यता अथवा किंवदंती अनुसार रावण गोंड वंशीय राजा था जिस पर आर्यवंश अर्थात राम ने हमला किया था । उनके अनुसार सीता अपहरण कभी हुआ ही नहीं था । मूल संस्कृत रामायण महाकाव्य के रचियता वाल्मीकि ने रावण को बुरा नहीं बताया है यह केवल तुलसीदास कृत रामचरितमानस में में पृथक जोड़ा गया जो कि प्रचलित हो गई।


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