नवीनतम लेख
नवरात्रि में जहां एक ओर हम सब देवी के नौ रूपों की आराधना करते हैं, वहीं इसी दौरान दशमहाविद्याओं की साधना कर तान्त्रिक साधक महान विद्याओं पर अधिकार हासिल करने की कोशिश करते हैं। दशमहाविद्या का मतलब है महान विद्याओं की देवी। यह महाविद्या, देवी पार्वती के दस रूपों का प्रतीक हैं। इस लेख में हम आपको मैय्या के इन स्वरूपों और दस महाविद्याओं के बारे में बताने जा रहे हैं।
1. काली या तारा जो उत्तर दिशा की स्वामिनी हैं।
2. विद्या या षोडशी या त्रिपुर सुंदरी जो ईशान दिशा की स्वामिनी हैं।
3. देवी भुवनेश्वरी जो पश्चिम दिशा की स्वामिनी हैं।
4. श्री त्रिपुर भैरवी जो दक्षिण दिशा की स्वामिनी हैं।
5. माता छिन्नमस्ता जो पूर्व दिशा की स्वामिनी हैं।
6. भगवती धूमावती जो पूर्व दिशा की स्वामिनी हैं।
7. माता बगला या बगलामुखी जो दक्षिण दिशा की स्वामिनी हैं।
8. भगवती मातंगी जो वायव्य दिशा की स्वामिनी हैं।
9. माता श्री कमला जो नैरित्य दिशा की स्वामिनी है।
इन्हें तीन रूपों उग्र, सौम्य और सौम्य-उग्र में भी विभाजित किया गया है
उग्र में काली, छिन्नमस्ता, धूमावती और बगलामुखी माता शामिल हैं।
माता के सौम्य रूप में त्रिपुरसुंदरी, भुवनेश्वरी, मातंगी और महालक्ष्मी या कमला शामिल किया गया है।
वहीं तारा तथा भैरवी को उग्र तथा सौम्य दोनों स्वरूप में पूजा गया है।
श्री देवीभागवत पुराण के अनुसार महाविद्याओं की उत्पत्ति भगवान शिव और सती के बीच एक विवाद से हुई। शिव और सती के विवाह से सती के पिता दक्ष प्रजापति खुश नहीं थे। इसलिए विवाह के बाद शिव का अपमान करने के लिए दक्ष प्रजापति ने यज्ञ का आयोजन किया और भगवान शिव को उसमें सम्मिलित होने का निमंत्रण नहीं भेजा। लेकिन फिर भी सती ने अपने पिता के द्वारा आयोजित यज्ञ में जाने की हठ की। फिर भी जब शिव नहीं मानें तो सती ने महाकाली का अवतार धारण कर लिया। जिसे देख भगवान शिव वहां से चले गए और वे बारी बारी दसों दिशाओं में गए जिससे दसों दिशाओं में माँ के दस रूप स्थापित हुए। जिन्हें दस महाविद्याएँ कहा गया है।
भगवती काली और तारा देवी उत्तर दिशा की, श्री विद्या ईशान दिशा की, देवी भुवनेश्वरी पश्चिम दिशा की, श्री त्रिपुर भैरवी दक्षिण दिशा की, माता छिन्नमस्ता पूर्व दिशा की, भगवती धूमावती पूर्व दिशा की, माता बगलामुखी दक्षिण दिशा की, भगवती मातंगी वायव्य दिशा की तथा माता श्री कमला नैरित्य दिशा की अधिकारिणी है। कहीं-कहीं 24 विद्याओं का भी वर्णन भी आता है।
दस महाविद्याओं में से एक हैं त्रिपुरा सुन्दरी। इन्हें महात्रिपुरसुन्दरी, षोडशी, ललिता, लीलावती, लीलामती, ललिताम्बिका, लीलेशी, लीलेश्वरी, ललितागौरी, पद्माक्षी रेणुका तथा राजराजेश्वरी के नाम से भी पूजा गया है। दस महाविद्याओं में सबसे प्रमुख देवी त्रिगुणना का तांत्रिक स्वरूप भी कही गई हैं।
भुवनेश्वरी दुनिया के सारे ऐश्वर्य की देवी हैं। यह आदिशक्ति दुर्गा माता की दस महाविद्याओं का एक परम स्वरूप हैं। भुवनेश्वरी देवी के चार हाथ हैं। चार हाथों में से एक में गदा, एक में माला, एक आशीर्वाद मुद्रा में और एक हाथ शासन पीठ मुद्रा में हैं।
भैरवी दशमहाविद्याओं में से एक हैं जो माता पार्वती की अवतार और भगवान शिव के भैरवनाथ अवतार की पत्नी हैं।
पार्वती के धूमावती अवतार को लेकर पौराणिक कथा हैं। इसके अनुसार जब सती ने पिता के यज्ञ में कूदकर स्वयं को भस्म कर लिया तो उनके जलते हुए शरीर के धूएं से धूमावती का अवतार हुआ।
दस महाविद्याओं में मां बगलामुखी का विशेष महत्व हैं। इन्हें माता पीताम्बरा भी कहते हैं। यह भगवती पार्वती का उग्र स्वरूप है, जो संसार की सभी तरंगों की देवी हैं। भगवती बगलामुखी के प्रादुभार्व की कथा के अनुसार जब संसार को नष्ट करने वाला एक भयंकर तूफान आया तो संसार को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने सौराष्ट्र के हरिद्रा सरोवर पर भगवती का तप किया। भगवान की तपस्या से प्रसन्न होकर श्रीविद्या बगलामुखी रूप में अवतार लिया। बगलामुखी को ब्रह्मास्त्र के नाम से भी जाना जाता है। मां बगलामुखी नवयौवना रुप में पीले रंग की साड़ी में सोने के सिंहासन पर विराजती हैं। मां के तीन नेत्र और चार हाथ हैं। सिर पर सोने का मुकुट है और स्वर्ण आभूषणों से सजी मैय्या बहुत सुंदर लगती हैं।
महाविद्याओं की यह देवी भगवान विष्णु से उत्पन्न हुई है, जो देवी के सौम्य, जगत जननी रूप का पर्याय हैं। कमला लक्ष्मी का ही एक नाम है।
काली, कालिका या महाकाली मृत्यु, काल और परिवर्तन की देवी हैं। यह आदिशक्ति दुर्गा माता का भयंकर विकराल रूप है । असुरों के संहार के लिये मां ने यह रूप धारण किया है। काली पूजा का प्रचलन बंगाल, ओडिशा और असम में सबसे अधिक है। विश्व प्रसिद्ध माता वैष्णों देवी में दाईं पिंडी माता महाकाली का ही रूप है।
दस महाविद्याओं में पूजी जाने वाली महाविद्या तारा का अर्थ होता है तारने वाली। पार्वती की स्वरूपा तारा देवी का सबसे प्रसिद्ध मंदिर शम्शान तारापीठ में है। इनके तीन सर्वाधिक प्रसिद्ध रूप एकजता, उग्रतारा और नीलसरस्वती है।
छिन्नमस्ता महाविद्या सभी चिंताओं का अंत करने वाली है। इसलिए माता को चिंतपूर्णी भी कहा जाता है। चिंतपूर्णी मंदिर हिमाचल प्रदेश में है। वही देवी छिन्नमस्ता का एक प्रसिद्ध मंदिर रजरप्पा भी है। सहारनपुर की शिवालिक पहाडियों के मध्य प्राचीन शाकम्भरी देवी शक्तिपीठ भी छिन्नमस्ता देवी का रूप है।
मतंग शिव का एक नाम है। इनकी शक्ति को ही मातंगी कहा गया है। हरे वर्ण और चन्द्रमा को मस्तक पर धारण करने वाली मैय्या मातंगी ने अपनी चार भुजाओं में एक तोता, वीणा, खड्ग और वेद धारण किया है। मां मातंगी तांत्रिकों की सरस्वती हैं। मां के तीन नेत्र हैं। रत्नों से जड़े सिंहासन पर बैठी देवी मातंगी के संग विराजमान तोता वाणी और वचन का प्रतीक माना जाता है।
'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।