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नरक चतुर्दशी हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह दिवाली से एक दिन पहले मनाया जाता है। यह त्योहार भगवान कृष्ण और राक्षस नरकासुर के बीच ऐतिहासिक युद्ध को दर्शाता हैं।
दिवाली की भव्यता से पहले एक और महत्वपूर्ण दिन है जो हमें बुराई पर अच्छाई की जीत की याद दिलाता है। उस दिन को हम नरक चतुर्दशी या छोटी दिवाली के नाम से जानते हैं। इसे छोटी दिवाली के साथ-साथ रूप चौदस और काली चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन लोग अपने घर की सफाई करते हैं और दीप जलाकर खुशियां मनाते हैं।
कहा जाता है इस दिन घर में मां लक्ष्मी के आगमन की तैयारियां होती हैं। लेकिन नरक चतुर्दशी को मनाने के पीछे की खास वजह है। क्या आप जानते हैं कि नरक चतुर्दशी के पीछे क्या कहानी है। इसका नाम नरक चतुर्दशी का क्यों पड़ा। आइए इस रहस्यमयी कथा को इस लेख में उजागर करें...
प्रतिवर्ष कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को नरक चतुर्दशी मनाई जाती है। नरक चतुर्दशी का पर्व धनतेरस के एक दिन बाद और दिवाली से एक दिन पहले होता है। इस बार यानी साल 2024 में चतुर्दशी तिथि की शुरुआत 30 अक्टूबर को सुबह 01 बजकर 15 मिनट से हो रही है और समापन अगले दिन 31 अक्टूबर को दोपहर में 03 बजकर 52 मिनट पर होगा। ऐसे में उदयातिथि के मुताबिक, नरक चतुर्दशी का पर्व 31 अक्टूबर 2024 को मनाया जाएगा।
नरक चतुर्दशी को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित है। उन्हीं में से एक कथा के अनुसार, एक बार भौमासुर नाम का एक राक्षस जिसे नरकासुर भी कहा जाता है। उसके अत्याचारों से तीनों लोकों में हाहाकार मचा हुआ था। उसने अपनी शक्तियों के कारण कई देवताओं पर भी विजय पा ली थी। क्योंकि उसकी मृत्यु केवल किसी स्त्री के हाथ ही हो सकती थी। इसलिए उसने हजारों कन्याओं का हरण कर लिया था। इस पर इंद्रदेव भगवान कृष्ण के पास संसार की रक्षा की प्रार्थना लेकर पहुंचते हैं। इंद्रदेव की प्रार्थना स्वीकार करते हुए भगवान श्रीकृष्ण अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ गरुड़ पर आसीन होकर नरकासुर राक्षस का संहार करने पहुंचे। भगवान श्रीकृष्ण ने सत्यभामा को अपना सारथी बनाया और उनकी सहायता से नरकासुर का वध कर डाला। नरकासुर का वध करने के बाद भगवान श्रीकृष्ण और सत्यभामा ने उसके द्वारा हरण की गई लगभग 16,100 कन्याओं को मुक्त कराया। जब ये कन्याएं अपने घर वापस लौटी तो उन्हें समाज और उनके परिवार ने अपनाने से इनकार कर दिया। सभी कन्याओं को आश्रय देने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने उन सभी को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया। इनके साथ ही श्रीकृष्ण की 8 मुख्य पटरानियां भी थीं। इस मान्यता की वजह से ही श्रीकृष्ण की 16,108 रानियां मानी जाती हैं। चतुर्दशी तिथि पर ही भगवान श्रीकृष्ण नरकासुर का वध किया था। इसके बाद नरकासुर की माता ने घोषणा की कि उसके पुत्र के मृत्यु के दिन को मातम के तौर पर न मनाकर एक उत्सव के रूप में मनाया जाए। यही वजह है कि इस दिन छोटी दिवाली मनाई जाती है। चतुर्दशी को ही नरकासुर का वध हुआ था इसलिए इस तिथि को नरक चतुर्दशी भी कहा जाता है।
नरक चतुर्दशी को लेकर यमराज और यमदूतों से जुड़ी पौराणिक कथा भी है। एक दिन यमराज ने यमदूतों से पूछा था कि क्या तुम्हें कभी भी किसी प्राणी के प्राण हरण करते समय दुख हुआ है। यमदूतों ने कहा कि एक बार हमें दुख हुआ था। हेमराज नाम का एक राजा था। जब उसके यहां एक पुत्र का जन्म हुआ तो ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की थी कि ये बच्चा अल्पायु है। विवाह के बाद इसकी मृत्यु हो जाएगी। ये बात सुनकर राजा ने पुत्र को अपने मित्र राजा हंस के यहां भेज दिया। राजा हंस ने बच्चे का पालन सबसे अलग रखकर किया। जब राजकुमार बड़ा हुआ तो एक दिन एक राजकुमारी उसे दिखाई दी और दोनों ने गंधर्व विवाह कर लिया।
विवाह के चार दिन बाद राजकुमार की मृत्यु हो गई। पति की मृत्यु से दुखी होकर राजकुमारी, राजा हेमराज और उनकी रानी रोने लगे। साथ ही विधाता को कोसने लगे। जब हम उस राजकुमार के प्राण हरण करने पहुंचे तो इन सभी का विलाप देखकर हमें बहुत दुख हुआ था। ये बात बताने के बाद यमदूतों ने यमराज से पूछा कि क्या कोई ऐसा उपाय है, जिससे किसी प्राणी की अकाल यानी असमय मृत्यु न हो। यमराज ने यमदूतों से कहा कि जो लोग कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी की रात दक्षिण दिशा में मेरा या मेरे यमदूतों का ध्यान करते हुए दीपक जलाते हैं, उन्हें अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। इसी कथा की वजह से नरक चतुर्दशी की रात यमराज के लिए दीपदान किया जाता है।
1. सुबह जल्दी उठें।
2. स्नान करें।
3. साफ कपड़े पहनें।
4. घर की सफाई करें।
1. भगवान कृष्ण और सत्यभामा की तस्वीर रखें।
2. फूल, फल और मिठाई चढ़ाएं।
3. दीये जलाएं।
4. धूप और अगरबत्ती जलाएं।
5. भगवान कृष्ण और सत्यभामा की पूजा करें।
6. यमराज की पूजा करें। उन्हें फल और फूल चढ़ाएं।
7. घर के बाहर दीये जलाएं।
8. परिवार और मित्रों के साथ मिलें।
9. मिठाइयां और फल बांटें।
10. गरीबों को दान दें।
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