छोटी-बड़ी और देव दिवाली में अंतर

Diwali 2024: छोटी-बड़ी और देव दिवाली क्यों मनाई जाती है, जानें इनमें अंतर और इनसे जुड़ी पौराणिक कथाएं


छोटी दिवाली अमावस्या के एक दिन पहले यानी कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। वहीं, बड़ी दिवाली अमावस्या को और देव दिवाली मुख्य दीपावली त्योहार के 15 दिन बाद यानी कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है। 


दिवाली का त्योहार एक दिन का नहीं बल्कि, पांच दिनों का एक महोत्सव है। इसमें छोटी दिवाली और बड़ी दिवाली शामिल हैं। छोटी दिवाली अमावस्या के एक दिन पहले यानी कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को, बड़ी दिवाली अमावस्या को और देव दिवाली मुख्य दिवाली के 15 दिन बाद यानी कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है। तीनों दिन अलग-अलग महत्व और परंपराओं के साथ जुड़े हुए हैं। 

दिवाली की तीन दिव्य रातें हमें बुराई पर अच्छाई की जीत, ज्ञान की विजय और आध्यात्मिक विकास की ओर ले जाती हैं। ये दिन हमें अपने जीवन को सकारात्मक दिशा में बदलने का अवसर प्रदान करते हैं। इन दिनों में पूरा देश दीयों की रोशनी से जगमगा उठता है। ऐसे में चलिए जानते हैं कि छोटी-बड़ी और देव दिवाली में क्या अंतर है। साथ ही जानेंगे इनके धार्मिक महत्व के बारे में...


छोटी दिवाली


हर साल छोटी दिवाली कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन मनाई जाती है। इसे नरक चतुर्दशी, रूप चौदस और काली चौदस के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन नरकासुर नामक राक्षस का वध किया गया था। इस असुर के कैद से सोलह हजार एक सौ स्त्रियों को आजाद करवाया था। साथ ही देव लोक को भी राक्षस के कब्जे से मुक्ति करवाया था। इस खुशी में नरक चतुर्दशी का त्योहार को मनाया जाता है। देवता और आजाद हुईं स्त्रियां ने इस दिन खुशियां मनाई थीं। उन्होंने इस दिन दीपक जलाकर त्योहार मनाया था। इसके अलावा इस दिन यम के नाम से दीपक जलाने से व्यक्ति को मृत्यु के बाद नरक जाने से मुक्ति मिलती है।


छोटी दिवाली का धार्मिक महत्व 


छोटी दिवाली पर अभ्यंग स्नान से तन-मन की शुद्धि होती है। इस दिन लोग सूर्योदय से पूर्व शरीर पर तिल का तेल लगाते हैं और फिर उबटन से साफ करते हैं। ऐसा माना जाता है कि स्नान करने के बाद विष्णु मंदिर या कृष्ण मंदिर में भगवान के दर्शन अवश्य करने चाहिए। इससे पाप कटता है और रूप सौन्दर्य की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति इस दिन यम के नाम दीप जलाता है उसे मृत्योपरांत नरक नहीं भोगना पड़ता है। 



बड़ी दिवाली


कार्तिक मास के अमावस्या तिथि को बड़ी दिवाली का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन रात में माता लक्ष्मी, गणेश और सरस्वती जी की पूजा होती है। साथ ही बंगाल में माता काली की पूजा होती है। बहुत सी जगह पर यह मान्यता है कि इस दिन माता लक्ष्मी धरती पर आती हैं और उनके स्वागत में दीये जलाए जाते हैं। दीपावली या बड़ी दिवाली को लेकर यह भी मान्यता है कि इस दिन भगवान श्रीराम 14 वर्षों के वनवास से अयोध्या वापस लौटे थे। इसी खुशी में पूरी अयोध्या नगरी को दीपक की रोशनी से जगमग किया गया था। पूरे देशभर में इस त्योहार को बहुत धूमधाम से मनाया जाता है।


बड़ी दिवाली का धार्मिक महत्व 


बड़ी दिवाली का धार्मिक महत्व हिंदू धर्म में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। इस दिन की पूजा से समृद्धि, ज्ञान और सुख प्राप्त होता है। इस दिन को भगवान गणेश और देवी लक्ष्मी की पूजा के लिए मनाया जाता है।


देव दिवाली 


कार्तिक मास की पूर्णिमा को देव दिवाली मनाई जाती है। इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध कर देवताओं को राक्षसों के भय से मुक्ति दिलाई थी। त्रिपुरासुर ने देवताओं से युद्ध कर स्वर्ग पर कब्जा कर लिया था, जिसके बाद देवता शिव जी के पास अपनी रक्षा के लिए गए थे। भगवान शिव ने राक्षस का वध कर स्वर्ग को पुनः देवताओं को सौंपा था। इस खुशी में देवतागणों ने गंगा के तट पर स्नान कर दीप जलाए थे। और राक्षस के वध की खुशी मनाई थी। तभी से कार्तिक पूर्णिमा के दिन नदी के किनारे दीपदान करते हैं। इस दिन भगवान विष्णु, तुलसी, माता लक्ष्मी, भगवान शिव और पार्वती की पूजा करने का विधान बताया गया है।


देव दिवाली का धार्मिक महत्व 


देव दिवाली को लेकर धार्मिक मान्यता है कि इस दिन पवित्र नदियों में स्नान, दान पुण्य करने और दीपदान करने से कई तरह की फल की प्राप्ति होती है। इस दिन लोग गंगा में डुबकी लगाते हैं। उसके बाद दीपदान करते हैं। 


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