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छठ पूजा एक प्राचीन हिंदू महापर्व है। जिसे मुख्य रूप से बिहार, झारखंड पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है। यह पर्व सूर्य देवता की उपासना का है और इसे प्रकृति, जल, सूर्य और जीवन के संतुलन का प्रतीक माना गया है। यह पर्व मनुष्यों को सामाजिक जीवन के मूल्यों और संतुलन को भी सिखाता है। तो आइए इस आलेख में हम आपको छठी मैया की उत्पत्ति और इस पर्व के महत्व के बारे में विस्तार से बताते हैं।
छठी मईया को षष्ठी देवी के रूप में भी जाना जाता है। कहा जाता है कि छठी मईया भगवान सूर्य की बहन हैं। छठी मैया अपने व्रतियों को संतान की रक्षा और उनके दीर्घायु होने का वरदान देती हैं। ये देवी सृष्टि की संरक्षिका मानी जाती हैं। पौराणिक कथा के अनुसार छठी मैया ब्रह्मा जी की मानस पुत्री मानी जाती हैं। सृष्टि की रचना के समय ब्रह्मा ने खुद को दो भागों में विभाजित किया था एक भाग पुरुष और दूसरा प्रकृति था। छठी मईया को संतान और प्रजनन की देवी माना जाता है जो संतान की सुरक्षा और विकास में सहायक होती हैं।
छठ पर्व चार दिनों तक चलने वाला एक दिव्य अनुष्ठान है जिसमें व्रती सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सूर्य देव को अर्घ्य देते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस पूजा से सूर्य देव की कृपा प्राप्त होती है। जिससे संतान सुख, आरोग्यता और परिवार में समृद्धि आती है।
मुख्य रूप से छठ पूजा सूर्य देव की उपासना का पर्व है। यह पर्व विशेष रूप से उन क्षेत्रों में मनाया जाता है जो कृषि प्रधान हैं। जैसे बिहार और पूर्वांचल। चूकि, सूर्य देव को हिंदू धर्म में जीवन और ऊर्जा के स्रोत के रूप में पूजा जाता है। वे स्वास्थ्य, समृद्धि, और संतुलन के प्रतीक माने जाते हैं। छठ पूजा के समय व्रती जल और सूर्य को साक्षी मानकर भगवान सूर्य की आराधना करते हैं और उनके आशीर्वाद से अपने जीवन में सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।
कर्ण और सूर्य देव की कहानी: महाभारत काल की एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार सूर्य पुत्र कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे। वे प्रतिदिन घंटों तक पानी में खड़े होकर सूर्यदेव को अर्घ्य दिया करते थे। कर्ण की सूर्य पूजा ही उनकी वीरता और शक्ति का स्रोत माना गया है। इसलिए ऐसा भी कहा जाता है कि छठ पूजा की शुरुआत कर्ण द्वारा की गई थी।
द्रौपदी ने किया था छठ व्रत: महाभारत के एक अन्य प्रसंग में एक कथा के अनुसार जब पांडव जुए में अपना सारा राज्य हार गए थे तब द्रौपदी ने छठ का व्रत रखा था। उनकी इस तपस्या से भगवान सूर्य प्रसन्न हुए और अंततः पांडवों को उनका खोया हुआ राज्य वापस मिल गया।
राम और सीता ने की थी पूजा: वहीं, एक और पौराणिक कथा के अनुसार भगवान राम और माता सीता ने वनवास से लौटने के उपरांत कार्तिक मास की षष्ठी तिथि पर सूर्य देव की आराधना की थी। इस पूजा के बाद ही उनका अयोध्या आना सफल माना गया और उन्होंने सूर्य देव से आशीर्वाद प्राप्त किया।
बता दें कि छठ पूजा 04 दिनों तक चलने वाला पर्व होता है, जिसमें विभिन्न अनुष्ठान और नियमों का पालन किया जाता है। इस पर्व के दौरान लोग पूरी पवित्रता से नियमों का पालन करते हुए पर्व की विधियां पूर्ण करते हैं। इन चार दिनों को अलग अलग नामों से जाना जाता है, जो इस प्रकार हैं।
पहला दिन (नहाय-खाय): छठ पूजा का पहला दिन नहाय-खाय के रूप में मनाया जाता है। इस दिन व्रती नदी या तालाब में स्नान करने के बाद शुद्ध भोजन ग्रहण करते हैं। पहला दिन शुद्धिकरण का दिन होता है।
दूसरा दिन (खरना): इस दिन व्रती पूरे दिन उपवास रखते हैं और शाम को मिट्टी के चूल्हे पर प्रसाद के रूप में गुड़ और चावल की खीर बनाते हैं। इस प्रसाद को ग्रहण कर उपवास खोला जाता है और इसके बाद पुनः उपवास रखा जाता है।
तीसरा दिन (संध्या अर्घ्य): इस दिन व्रती निर्जला उपवास रखते हैं और शाम को सूर्यास्त के समय नदी या तालाब में प्रवेश कर सूर्य देव को अर्घ्य प्रदान करते हैं।
चौथा दिन (प्रातः अर्घ्य): चौथे और अंतिम दिन सुबह सूर्योदय के समय पुनः अर्घ्य प्रदान किया जाता है। इसके बाद व्रत समाप्त होता है और व्रती अपने परिवार और समाज के लोगों को प्रसाद बांटते हैं और पारण करते हैं।
छठ पूजा का वैज्ञानिक पक्ष
छठ पूजा केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है इसमें कई वैज्ञानिक तत्व भी हैं। इस पूजा के दौरान सूर्य की किरणों से शरीर को ऊर्जा मिलती है। सूर्य की किरणें ना सिर्फ मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होती हैं बल्कि यह शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को भी मजबूत बनाती हैं। इस पर्व में जल और सूर्य का महत्व यह दिखाता है कि हमारे पूर्वज प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखने में कितने सफल थे।
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