छठ पूजा के जरिए की जाती है प्रकृति की पूजा

छठ पूजा का प्रकृति से जुड़ा है गहरा नाता, अन्न और जल की भी होती है पूजा 


छठ पर्व भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण अंग है। इसे कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाया जाता है। छठ महापर्व का देशभर में प्रचलन बढ़ रहा है। सूर्य और छठ मैया की पूजा से जुड़ा यह पर्व कई मायनों में प्रकृति पूजा का भी प्रतीक है। व्रती इस पर्व में सूर्य देव को अर्घ्य देकर प्रकृति की शुद्धता, ऊर्जा और नवीनता का सम्मान करते हैं। यह पर्व सामाजिक समरसता, नारी सशक्तिकरण और पर्यावरणीय संरक्षण का संदेश भी देता है।


मनु के पुत्र प्रियव्रत से जुड़ी कहानी 


छठ पूजा की पौराणिक कथा का वर्णन 'ब्रह्मवैवर्त पुराण' के 'प्रकृति खंड' में मिलता है। इसमें देवी छठी की महिमा का उल्लेख है। देवी छठी को प्रकृति की देवी के रूप में पूजा जाता है और इसी कारण उन्हें छठी कहा जाता है। यह देवी बालकों की रक्षा और उनकी समृद्धि की अधिष्ठात्री देवी भी मानी जाती हैं। इस कथा के अनुसार मनु के पुत्र प्रियव्रत और उनकी पत्नी मालिनी को कोई संतान नहीं थी। पुत्र प्राप्ति के लिए उन्होंने कश्यप ऋषि द्वारा निर्देशित पुत्रैष्टि यज्ञ किया था। यज्ञ के प्रसाद स्वरूप उन्हें 'चरु' मिला। जिसे ग्रहण करने के बाद मालिनी गर्भवती हुईं लेकिन समय आने पर उन्होंने एक मृत बालक को जन्म दिया। 


यह देख प्रियव्रत और मालिनी अत्यंत दुखी हुए। प्रियव्रत अपने मृत पुत्र को लेकर श्मशान गए और वह विलाप करने लगे। उसी समय देवी छठी प्रकट हुईं और उन्होंने मृत बालक को जीवित कर दिया। देवी ने प्रियव्रत को आदेश दिया कि वह हर महीने की शुक्ल पक्ष की छठी तिथि को उनकी पूजा और यज्ञ करें। इससे उनके पुत्र की कीर्ति चारों दिशाओं में फैलेगी। बस तभी से कार्तिक शुक्ल षष्ठी को देवी षष्ठी की पूजा की परंपरा शुरू हुई जो आज तक बदस्तूर चली आ रही है।


छठ पूजा का अर्थ प्रकृति की ऊर्जा को सम्मान देना

 

छठ पर्व का महत्त्व केवल धार्मिक ही नहीं है बल्कि इसका गहरा पर्यावरणीय और प्राकृतिक संबंध है। इस पर्व में भगवान सूर्य और छठ मइया की पूजा की जाती है। जो दरअसल, प्रकृति के सबसे महत्वपूर्ण घटकों में से एक हैं। भगवान सूर्य जीवन और ऊर्जा के स्रोत हैं और इस पर्व के माध्यम से उनकी पूजा मनुष्यों के जीवन में तेज, नवीनता और ऊर्जा का संचार करती है।


वहीं, छठ महापर्व का पर्यावरणीय महत्त्व भी अनोखा है। इस पूजा में व्रती नदी, तालाब या किसी अन्य जल स्रोत में खड़े होकर सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करते हैं। जल और सूर्य का यह समन्वय हमें पर्यावरणीय संतुलन और प्रकृति की महत्ता का संदेश भी देता है। सूर्य देव की पूजा करने का अर्थ है प्रकृति की ऊर्जा को समझना और उसे सम्मान देना।


प्रकृति से प्राप्त अन्न की पूजा 


छठ पूजा के दौरान अनाज, पानी, उषा और सूर्य की पूजा होती है। यह सभी प्राकृतिक तत्व पर्यावरण संरक्षण और संवर्द्धन का प्रतीक माने जाते हैं। इस प्रकार छठ पूजा केवल धार्मिक आस्था तक सीमित नहीं है बल्कि इसका सीधा संबंध प्रकृति और पर्यावरण से भी है।


शुद्धता और पवित्रता अनिवार्य 


छठ पर्व की शुरुआत 'नहाय-खाय' परंपरा से होती है। इस परंपरा का उद्देश्य जीवन में शुद्धता और पवित्रता बनाए रखना है। व्रती पहले दिन पवित्र नदी या तालाब में स्नान करते हैं और शुद्ध भोजन ग्रहण करते हैं। इसके बाद व्रती 36 घंटे तक निर्जल रहते हैं और सूर्य देव की पूजा करते हैं।

अस्ताचलगामी सूर्य (डूबते सूर्य) को अर्घ्य अर्पित करते समय व्रती पानी में खड़े होकर भगवान सूर्य की आराधना करते हैं। इस प्रक्रिया में शुद्ध जल और सूर्य की किरणों का संयोग होता है। जो जीवन और प्रकृति की पवित्रता का प्रतीक है। इस व्रत में आत्मसंयम, धैर्य और दृढ़ निश्चय की भावना जागृत होती है। इससे जीवन में स्थिरता और समर्पण भी बढ़ता है। 


अनोखी है उदयगामी सूर्य की पूजा 


छठ पर्व के दूसरे दिन व्रती उदयगामी सूर्य और उषा की पूजा करते हैं। इस पूजा के माध्यम से व्रती जीवन में नई ऊर्जा, तेज़ और आशा की प्राप्ति करते हैं। उषा यानी सुबह की देवी का पूजन इस बात का प्रतीक है कि हर नया दिन एक नई शुरुआत है जो हमें जीवन में सकारात्मकता और उन्नति की ओर प्रेरित करता है। सुहागिन महिलाएँ इस पर्व में अपने परिवार और समाज की समृद्धि की कामना करती हैं। वे पीहर और ससुराल की समृद्धि के लिए छठी मईया से आशीर्वाद मांगती हैं। 


नारी सशक्तिकरण और सामाजिक समरसता


वर्तमान परिदृश्य में छठ पूजा नारी सशक्तिकरण का भी प्रतीक माना जाता है। इस पर्व में महिलाएँ प्रमुख भूमिका निभाती हैं और परिवार के कल्याण के लिए उपवास रखती हैं। यह पर्व महिलाओं की शक्ति, धैर्य और समर्पण को दर्शाता है। छठ पर्व के दौरान महिलाएँ अपने परिवार की समृद्धि और सुरक्षा के लिए पूर्ण समर्पण के साथ पूजा करती हैं। साथ ही, छठ पर्व सामाजिक समरसता और एकजुटता का प्रतीक भी माना जाता है। इस पर्व की तैयारी में नदी घाटों की सफाई और पूजा की व्यवस्थाएँ सामूहिक रूप से की जाती हैं। यह सामूहिक प्रयास लोगों के बीच आपसी सहयोग और भाईचारे को बढ़ावा देता है।


सांस्कृतिक धरोहर से कम नहीं छठ गीत


छठ पर्व के दौरान गाए जाने वाले लोकगीतों का भी विशेष महत्त्व है। ये गीत धार्मिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक दृष्टि से अत्यंत समृद्ध होते हैं। इन गीतों में छठी मईया और सूर्य देव की महिमा का बखान होता है। ये लोकगीत ग्रामीण क्षेत्रों में अत्यंत लोकप्रिय हैं और इनसे पूरे माहौल में भक्ति और श्रद्धा का संचार होता है। छठ गीतों के माध्यम से व्रती अपनी भावनाओं और आस्था को व्यक्त करते हैं। छठ के गीतों में क्षेत्रीय संस्कृति की मिठास और सामाजिक संबंधों की गहराई भी दिखाई देती है। 


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