छठ पूजा में दूध मिश्रित गंगाजल और हल्दी, सुपारी के साथ अर्घ्य देने की पूरी विधि
छठ पूजा बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में प्रमुखता से मनाया जाने वाला पर्व है। जिसमें सूर्य देव और छठी मैया की पूजा की जाती है। इस पूजा में सूर्य देव को अर्घ्य देने के लिए दूध मिश्रित गंगाजल का उपयोग किया जाता है जो एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। यह अर्घ्य शुद्धता और श्रद्धा के प्रतीक के रूप में सूर्य देव को समर्पित होता है। इसमें गंगाजल, कच्चा दूध, हल्दी, चावल, सुपारी, पुष्प और अर्घ्य पात्र की आवश्यकता होती है। सही विधि से अर्घ्य देने पर छठी मैया की कृपा प्राप्त होती है और जीवन की समस्त बाधाएं दूर होती हैं।
छठ पूजा में अर्घ्य देने की सामग्री
छठ पूजा के दौरान अर्घ्य देने के लिए आवश्यक सामग्री का अपना विशिष्ट धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। इस पावन पूजा में सूर्य देव को अर्पित अर्घ्य विशेष प्रकार से तैयार किया जाता है।
सामग्री की सूची और उनका महत्व
- गंगाजल:- पवित्र गंगा का जल धार्मिक रूप से शुद्धता का प्रतीक है। इसे छठ पूजा में विशेष महत्व दिया जाता है क्योंकि यह सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने का कार्य करता है।
- कच्चा दूध:- दूध शुद्धता और भक्ति का प्रतीक माना गया है। सूर्य देव को दूध मिश्रित अर्घ्य देने से व्रती की सभी बाधाएं दूर होती हैं।
- सुपारी:- इसे पूजा में श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक माना गया है। सुपारी का उपयोग व्रती के संकल्प और समर्पण को मजबूत करता है।
- हल्दी और चावल:- हल्दी पवित्रता और चावल शांति और समृद्धि के प्रतीक माने जाते हैं। अर्घ्य में इनका प्रयोग व्रती के जीवन में शांति और सुख लाने में सहायक माना जाता है।
- दीपक और अगरबत्ती:- पूजा के दौरान वातावरण को शुद्ध और सकारात्मक बनाने के लिए दीपक और अगरबत्ती का उपयोग होता है। इससे मानसिक शांति मिलती है।
- पुष्प:- सूर्य देव को अर्पित करने के लिए ताजे फूलों का उपयोग किया जाता है। ये फूल व्रती के समर्पण और आस्था का प्रतीक होते हैं।
- अर्घ्य पात्र का चयन:- यह एक ऐसा पात्र होता है जिसमें दूध और गंगाजल मिश्रित अर्घ्य रखा जाता है। जिसे सूर्य देव को अर्पित किया जाता है।
अर्घ्य देने की विधि
छठ पूजा में सूर्य देव को अर्घ्य देने की पूरी विधि निम्नलिखित है।
- सूर्य देव की आराधना: सबसे पहले व्रती शुद्ध स्नान करके अपने मन और शरीर को शुद्ध करते हैं और सूर्य देव के सामने श्रद्धापूर्वक खड़े होते हैं।
- दूध और गंगाजल का मिश्रण: एक पात्र में कच्चे दूध और गंगाजल को मिलाकर अर्घ्य के लिए तैयार किया जाता है। इस मिश्रण को छठ पूजा का विशेष अर्घ्य माना जाता है।
- सुपारी, हल्दी और चावल का उपयोग: अर्घ्य पात्र में कुछ चावल, हल्दी और एक सुपारी डालकर इसे पवित्र किया जाता है। यह सामग्री सूर्य देव को अर्पित की जाती है, जो व्रती की आस्था को और भी प्रबल बनाती है।
- सूर्य देव को अर्घ्य अर्पण: व्रती सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सूर्य देव को दूध मिश्रित गंगाजल का अर्घ्य अर्पित करते हैं। व्रती धीरे-धीरे अर्घ्य पात्र को ऊपर उठाते हैं और सूर्य की दिशा में अर्घ्य अर्पित करते हैं। यह कार्य सूरज की आराधना के साथ मनोकामना पूर्ति के लिए किया जाता है।
- प्रार्थना और मंत्रोच्चार: अर्घ्य देते समय व्रती सूर्य देव का ध्यान करते हुए प्रार्थना और मंत्रोच्चार करते हैं। ऐसा करने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और व्रती को मानसिक शांति प्राप्त होती है।
अर्घ्य देने में ध्यान रखने योग्य बातें
- अर्घ्य के लिए गंगाजल और कच्चा दूध पूरी तरह से शुद्ध होना चाहिए।
- व्रती को स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहनने चाहिए।
- अर्घ्य देते समय व्रती को पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ सूर्य देव का ध्यान करना चाहिए।
- पहले दूध का अर्घ्य और उसके बाद गंगाजल का अर्घ्य देना चाहिए, जिससे पूजा विधि शास्त्र अनुसार पूरी हो सके।
दूध से अर्घ्य देने की कहानी
छठ पूजा में दूध का अर्घ्य देने की परंपरा के पीछे एक पुरानी कथा जुड़ी हुई है। इस परंपरा का मूल भगवान कृष्ण और उनके पुत्र से संबंधित है। शास्त्रों के अनुसार भगवान कृष्ण ने अपने पुत्र को श्राप दिया था जिसके कारण वह पीड़ित हो गया। इस श्राप से मुक्ति पाने के लिए उसने कृष्ण से उपाय के बारे में पूछा। तब भगवान कृष्ण ने उसे छठ पूजा में सूर्य देव को दूध का अर्घ्य अर्पित करने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि ऐसा करने से वह श्राप से मुक्त हो जाएगा। कृष्ण के पुत्र ने छठ पूजा के अवसर पर सूर्य देव को दूध का अर्घ्य दिया और श्राप से मुक्त हो गया। तब से छठ पूजा में सूर्य देव को दूध का अर्घ्य देने की परंपरा शुरू हुई। माना जाता है कि ऐसा करने से सभी कष्ट और बाधाएं दूर हो जाती हैं।