नवरात्रि में संधि पूजा का महत्व

Chaitra Navratri 2025: संधि पूजा का महत्व और विधि, इसमें 108 दीये जलाने की परंपरा


नवरात्रि के अष्टमी-नवमी तिथि के संधि काल में की जाने वाली संधि पूजा का विशेष महत्व है। इस पूजा में देवी महागौरी और मां सिद्धिदात्री की आराधना की जाती है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, इस पूजा के दौरान 108 दीये जलाने से शुभ फल प्राप्त होते हैं। जानें, संधि पूजा की विधि, महत्व और इससे जुड़ी मान्यताएं।


संधि पूजा का महत्व और विधि


जिस तरह दिन और रात के बीच के समय को संध्याकाल कहा जाता है, उसी प्रकार जब एक तिथि समाप्त होकर दूसरी तिथि प्रारंभ होती है, तो उसे ‘संधि काल’ कहा जाता है। नवरात्रि में जब अष्टमी तिथि समाप्त होने और नवमी तिथि प्रारंभ होने के बीच का समय आता है, तो इसे संधि काल माना जाता है। इस विशेष काल में देवी महागौरी और मां सिद्धिदात्री की आराधना की जाती है, जिसे संधि पूजा कहा जाता है।


संधि पूजा के लाभ


  • देवी मां की कृपा से आरोग्य, सुख-समृद्धि और शत्रुनाश का आशीर्वाद मिलता है।
  • यह पूजा आध्यात्मिक ऊर्जा को जागृत करती है और जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाती है।
  • संधि पूजा करने से आत्मिक बल प्राप्त होता है और व्यक्ति की सभी बाधाएं दूर होती हैं।


संधि पूजा की विधि


  • 108 दीयों का प्रज्वलन: यह दीये देवी मां के समक्ष जलाए जाते हैं और इन्हें बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है।
  • 108 कमल के फूल: देवी को अर्पित किए जाते हैं, जिससे जीवन में शुभता और शांति बनी रहती है।
  • पान-सुपारी और श्रृंगार सामग्री: देवी मां को 108 पान और सुपारी के साथ श्रृंगार सामग्री चढ़ाई जाती है।
  • नैवेद्य अर्पण: संधि पूजा में 56 भोग का नैवेद्य अर्पित किया जाता है।
  • हवन और मंत्र जाप: इस दौरान विशेष मंत्रों का जाप और हवन किया जाता है, जिससे संधि पूजा का प्रभाव और अधिक बढ़ जाता है।


संधि पूजा के दौरान बोले जाने वाले प्रमुख मंत्र


ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
 दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता।
 नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः।
 सर्वस्मृताः शुभाम ददासि।।
दुर्गे देवि नमस्तुभ्यं सर्वकामार्थसाधिके।
 मम सिद्धिमसिद्धिं वा स्वप्ने सर्वं प्रदर्शय।।


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