ब्रह्म से साक्षात्कार का उपाय हैं; सर्वार्थ सिद्धि, विषकंभ, प्रीति आदि तीन योग, वेदांत में कहा गया इन्हें मोक्ष का मार्गदर्शक

वेदांत में तीन प्रमुख योग पद्धतियों का वर्णन मिलता है। इनमें सर्वार्थ सिद्धि योग, विषकंभ योग और प्रीति योग शामिल है। वेदांत में इन्हें आत्मज्ञान और मोक्ष प्राप्ति का साधन माना गया है। यदि इन योगों को जीवन में उतारा जाता है तो आत्मा का स्वरूप का अनुभव और ब्रह्म के साक्षात्कार में स्थिर हो सकते हैं। वेदांत के अनुसार, ब्रह्म या परमात्मा एकमेव अद्वितीय हैं, और इसका अनुभव करना ही मोक्ष का सर्वोत्तम उद्देश्य होता है। इस प्रक्रिया में योग विभिन्न उपायों का संयोजन करता है जिससे परमात्मा का साक्षात्कार संभव हो। आइए बारी-बारी से प्रत्येक योग को विस्तार से समझते हैं- 


सर्वार्थ सिद्धि योग- सर्वार्थ सिद्धि योग वेदांत के अनुसार ज्ञान मार्ग को स्पष्ट करने वाली एक प्रमुख पद्धति है। इसका उद्देश्य योगी को ब्रह्म के साक्षात्कार तक पहुँचाना है। इस योग में ज्ञान की प्रधानता है जिसकी मदद से योगी आत्मा के स्वरूप को समझता है और उसे वास्तविकता में स्थिर होने में मदद मिलती है। सर्वार्थ सिद्धि योग में योगी शम, दम, उपरति, तितिक्षा, श्रद्धा, और समाधान इन छह गुणों से सम्पन्न होता है। इन गुणों से उसे मन की शुद्धि और एकाग्रता प्राप्त होती है, जो ब्रह्म से साक्षात्कार के पास ले जाते हैं।


सर्वार्थ सिद्धि योग ज्ञान को प्राथमिकता देकर योगी को आत्मा के स्वरूप की प्राप्ति के लिए मार्गदर्शन देता है। इस योग की सहायता से मन की शुद्धि, विवेक और वैराग्य का विकास होता है। अंतत: ब्रह्म के साक्षात्कार में सिद्धि प्राप्त होती है। 


विषकंभ योग- विषकंभ योग ध्यान मार्ग को समझाने वाली पद्धति है। इसमें योगी अपने मन की वृत्तियों को नियंत्रित करता है और अपने विचारों को एक स्थिर बिंदु पर समर्पित करता है। ध्यान के माध्यम से योगी ब्रह्म के साक्षात्कार की दिशा में स्थिर होता है। विषकंभ योग में मन की चंचलता और विक्षेप को कम किया जाता है, जिससे योगी अपने अंतरंग स्वरूप का अनुभव कर सकता है। यह योग ध्यान के उच्च स्तर की साधना को समर्थन प्रदान करता है तथा ब्रह्म के साक्षात्कार तक पहुँचने में मदद करता है।


विषकंभ योग, योगी को मन की अशांति और विचारों के विक्षेप से बाहर लाकर उसे ब्रह्म के साक्षात्कार की दिशा में स्थिर करता है। इस योग के द्वारा ध्यान की समर्पणा और मन की एकाग्रता प्राप्त करता है, जिससे उसे अंततः आत्मा के स्वरूप में स्थिर होने का अनुभव होता है। विषकंभ योग ध्यान और मन की संयम की साधना में महत्वपूर्ण होता है। 


प्रीति योग- प्रीति योग भक्ति मार्ग को समझाने वाली पद्धति है। इसमें भक्त अपने ईष्ट देवता (जैसे भगवान, ईश्वर, या गुरु) के प्रति प्रेम और भक्ति की शक्ति का उपयोग करता है। प्रेम और समर्पण के माध्यम से भक्त अपने ईष्ट के साथ एकात्मता की स्थिति में पहुँचता है और ब्रह्म के साक्षात्कार में स्थिर होता है। प्रीति योग में भक्ति की उत्कृष्टता है, जो योगी को भगवान के प्रति अनन्य प्रेम का अनुभव कराती है। जो ब्रह्म के साक्षात्कार में स्थिर होने में सहायक होता है।

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