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21 ब्रह्मांडों के देवता ब्रह्मा जी की उत्पति कैसे हुई, चार मुख होने के पीछे का रहस्य क्या है, जानिए उनके 59 पुत्रों के बारे में (21 Brahmaandon ke Devata Brahma Jee kee Utpati kaise Huee, Chaar Mukh Hone ke Peechhe ka Rahasy kya Hai, Jaanie unake 59 Putro

सृष्टि के सृजन कर्ता के रूप में सनातन धर्म के अनुसार ब्रह्मा जी का स्थान सभी देवों में सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश में से सृष्टि के सृजन और संतुलन का कार्य ब्रह्म देव के हाथों में है। लेकिन यहां प्रश्न उठता है कि आखिर जिसने पूरी सृष्टि को रचा है उनकी रचना किसने की और आखिर ब्रह्मा जी की उत्पत्ति कैसे हुई ? तो आइए जानते हैं ब्रह्मा जी के जन्म के रहस्य को।


पौराणिक कथाओं के अनुसार ब्रह्मा जी की उत्पत्ति भगवान विष्णु की नाभि से निकले कमल के द्वारा हुई है। स्वयंभू कहलाने वाले ब्रह्मा जी ने प्रकट होते ही चारों ओर देखा इसी कारण उनके 4 मुख हुए। इसलिए उन्हें 'चतुर्मुख' कहा जाता है। मान्यता है कि उनके प्रत्येक मुख ने एक वेद का निर्माण हुआ है। शिवपुराण की कथा अनुसार, ब्रह्मा जी ने स्वयं अपने पुत्र नारद जी से अपनी उत्पत्ति की कथा बताते हुए कहा कि विष्णु जी की उत्पत्ति के बाद शिव और शक्ति ने मुझे अपने दाहिने अंग से उत्पन्न कर विष्णु की नाभि कमल में डाल दिया और उसी कमल से मैं उत्पन्न हुआ। 


ब्रह्मा जी के नाम का अर्थ 

शास्त्रानुसार जो निर्गुण मतलब तीनों गुणों -सत्व, रज और तम से बेअसर हैं और जो निराकार और सर्वव्यापी है वहीं ब्रह्म है। ब्रह्मा जी में ये सभी गुण हैं अतः उन्हें ब्रह्मा नाम मिला। इसके अलावा स्वयंभू, विधाता, चतुरानन भी ब्रह्मा जी के ही नाम है।

ब्रह्मा जी के हाथों में वरमुद्रा अक्षर सूत्र, वेद और कमण्डल है। हंस उनका वाहन है। शास्त्रों में ब्रह्माजी की 5 पत्नियों का उल्लेख है जिनके नाम सावित्री, गायत्री, श्रद्धा, मेधा और सरस्वती है। उनकी एक पुत्री का नाम भी देवी सरस्वती है। सभी देवता ब्रह्मा जी के पौत्र है। इस कारण उन्हें पितामह भी कहा जाता है। त्रिदेवों में भगवान ब्रह्मा को 21 ब्रह्मांड का स्वामी कहा गया है। ब्रह्मा जी के एक दिन में 14 इंद्रों के शासन का कार्यकाल समाप्त हो जाता है। 


ब्रह्मा जी के मानस पुत्रों की कहानी

 ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना के बाद जीव रचना की शुरुआत में अपने शरीर के अलग-अलग अंगों से जिन पुत्रों को उत्पन्न किया वे ब्रह्मा के मानस पुत्र कहलाए। ब्रह्म देव ने मन से मारिचि, नेत्र से अत्रि, मुख से अंगिरा ,कान से पुलस्त्य, नाभि से पुलह, हाथ से कृतु, त्वचा से भृगु, प्राण से वशिष्ठ, पांव के अंगूठे से दक्ष, छाया से कंदर्भ, गोद से नारद, इच्छा से सनक, सनन्दन, सनातन, सनत कुमार, शरीर से शतरूपा और मनु तथा ध्यान से चित्रगुप्त को उत्पन्न किया। 

इनके अलावा विश्वकर्मा, अधर्म, अलक्ष्मी, आठवसु, चार कुमार, 14 मनु, 11 रुद्र, पुलस्य, पुलह, अत्रि, क्रतु, अरणि, रुचि, भृगु, कर्दम, पंचशिखा, वोढु, अपान्तरतमा, प्रचेता, हंस, यति आदि मिलाकर कुल 59 पुत्रों का पुराणों में उल्लेख है। भगवान ब्रह्मा ने ही सभी गंधर्व, राक्षस, यक्ष, पिशाच, देव, नाग, सुपर्ण, असुर, किम्पुरुष और मनुष्यों की रचना की है।

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