बिहार केे प्रसिद्ध दुर्गा शक्ति स्थल

कहीं चिता पर बना है मंदिर तो कहीं कालीदास से जुड़ा है किस्सा, जानिए बिहार के 10 प्रसिद्ध दुर्गा मंदिर की अनोखी कहानी….


दुर्गा पूजा यानी नवरात्र की शुरुआत होने वाली है. ऐसे में लोगों के सिर पर नवरात्र के पावन पर्व का भक्तिमय रंग और पर्व की उमंग दोनों ही परवान चढ़ने लगे हैं। चारों तरह की नवरात्रि में सचमुच शारदीय नवरात्र ही सबसे भव्य और खास नवरात्र होती है। वैसे तो साल में चार बार नवरात्रि मनाई जाती है लेकिन शारदीय नवरात्र में भक्तों का उत्साह देखते ही बनता है. इस दौरान देश-विदेश के बड़े मंदिरों और शक्तिस्थलों समेत राज्य और शहर के छोट-छोटे मंदिरों में भी साज सज्जा और आकर्षण का खास महत्व है, आज भक्तवत्सल के इस विशेष लेख में हम आपको माता रानी के बिहार के विशेष मंदिरों के बारे में जानकारी दे रहे हैं।



1. चिता पर बना है श्यामा माई मंदिर

 


बिहार के दरंभगा जिले में दरभंगा राज के किले का ये मंदिर देवी काली को समर्पित है। इसे महाराजा रामेश्वर सिंह की चिता पर ही बनाया गया है। इसके पीछे एक खास वजह दरभंगा के राज परिवार के साधक राजाओं में से एक रामेश्वर सिंह ही थे। मां काली के प्रति उनकी अटूट श्रद्धा पूरे दरभंगा राज में विख्यात थी। इसी कारण उनके मरने के बाद साल 1933 में उनके वंशज महाराजा कामेश्वर सिंह ने इस भव्य दिखने वाली और जागृत शक्ति मंदिर की स्थापना की और उनके ही नाम पर इसका नाम रामेश्वरी श्यामा माई मंदिर रखा। शमशान में होने के बावजूद यहां हर तरह के शुभ कार्य पूर्ण होते हैं। 



2. शती के दाहिनी जंघा पर बना है बड़ी पटनदेवी मंदिर 



बिहार की राजधानी पटना स्थित बड़ी पटन देवी मंदिर महत्त्वपूर्ण शक्तिपीठों में से एक है। कहा जाता है कि देवी सती की दाहिनी जांघ का भाग यहीं पर गिरा था। साथ ही उत्खनन के दौरान यहीं से महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती की तीन प्रतिमाएं भी मिल चुकी हैं, जिन्हें यहीं पर स्थापित किया गया है। ये सभी सभी प्रतिमाएं काले पत्थर की बनी हुई हैं। इस स्थल को बड़ी पटनदेवी के नाम से जाना जाता है।


3. छोटी पटनदेवी पटना


मुख्य पटनदेवी से तीन किमी की दूरी पर छोटी पटनदेवी मंदिर स्थित है। यह भी एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यहां देवी सती का पट और वस्त्र गिरे था। जहां वस्त्र गिरे था वहां पर मंदिर बनाया गया और माहालक्ष्मी, महाकाली और महासरस्वती की प्रतिमाएं स्थापित की गईं।


4. यहां गिरा है माता शती का कंगन


 

मघरा गांव जो बिहार के बिहारशरीफ जिले से पश्चिम एकंगरसराय पथ पर स्थित है यहां पर प्राचीन शीतला मंदिर नाम का एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ है। कहा जाता है कि यहां पर देवी सती के हाथ का एक कंगन गिरा था। मान्यता है कि इस शीतला मंदिर में जल अर्पित करने से कई प्रकार की बीमारियां भी छू मंतर हो जाती हैं।


5. इसलिए खास है मंगला गौरी मंदिर


 गया-बोध गया मार्ग पर स्थित पर्वत पर मां मंगला गौरी मंदिर है। मान्यता है कि यहां देवी सती का स्तन गिरा था। ऊंचाई पर मंदिर अवस्थित होने के कारण पथरीले जगह को सीढ़ीनुमा बनाया गया है। इस मंदिर पर चढ़ने के लिए 115 सीढ़ियां बनाई गई है। यहां पर मनुष्य अपने जीवन काल में ही अपना श्राद्ध कर्म कर सकता है। इस मंदिर परिसर में कई देवी-देवताओं की मूर्तियां भी हैं।



6. यहां गिरा था माता सती का सिर



पटना से नवादा के रास्ते में नवादा में मौजूद रोह कौआकोल मार्ग पर रुपौ गांव में चामुंडा मंदिर है। मान्यता है कि देवी सती का सिर यहीं पर कट कर गिरा था। इस मंदिर में देवी चामुंडा की प्राचीन मूर्ति भी है। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार, चण्ड-मुण्ड के वध के बाद ही देवी दुर्गा चामुण्डा के नाम से प्रसिद्ध हुईं।


7. आंख वाली उग्रतारा मां का मंदिर


 


बिहार के सहरसा से 17 किमी दूर उग्रतारा शक्तिपीठ है। यहां देवी सती की बाईं आंख गिरी थी। इसके साथ ही महर्षि वशिष्ठ ने देवी की घोर उपासना इसी जगह पर की थी। मंदिर का निर्माण मधुबनी के राजा नरेन्द्र सिंह की पत्नी रानी पद्मावती ने लगभग पांच सौ वर्ष पहले करवाया था।


8. काली भक्त कालीदास से जुड़ा है उच्चैठ




बिहार के मधुबनी जिले के बेनीपट्टी गांव में मां काली का उच्चैठ भगवती नामक सिद्धपीठ है। इस मंदिर से कालीदास के जीवन के कई अध्याय जुड़े हैं, यहीं महान कवि कालिदास को माता काली ने वरदान दिया था जिसके बाद मूर्खों के राजा के नाम से प्रसिद्ध कालिदास महान कवि के रूप में पूरे जगत में विख्यात हुए थे।


9. जानकी जमनस्थल मंदिर, सीतामढ़ी




बिहार के सीतामढ़ी जिले के मुख्यालय से 05 किलोमीटर पश्चिम पुनौरा गांव में एक भव्य मंदिर है जिसे माता सीता का जन्म स्थल माना जाता है. जब मिथिलाराज में भीषण अकाल पड़ गया था तब राजा जनक को स्वयं ही खेत में हल चलाने की सलाह दी गई थी। राजऋषि जनक जब हल चला रहे थे तब जमीन से मिट्टी का एक पात्र टकराया जिसमें माता शिशु अवस्था में प्राप्त हुईं. इस जगह पर यहां जानकी कुंड नाम का एक विशाल सरोवर भी मिलता है जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां स्‍नान करने से संतान की प्राप्ति होती है. इस जगह पर ही मां सीता का विवाह भी हुआ था और इसका साक्षी प्राचीन पीपल का पेड़ आज भी मौजूद है।


10. अंबिका भवानी मंदिर



यह एक पवित्र स्थल है जो छपरा-पटना प्रमुख मार्ग पर स्थित है। भारत में एक ऐसा मंदिर है जिसमें कोई मूर्ति नहीं है। इसे देवी सती के जन्मस्थान और अंतिम विश्राम स्थल के रूप में माना जाता है। ऐसा दावा किया जाता है कि देवी सती के पिता दक्ष प्रजापति ने यहां कभी शासन किया था। जब भगवान विष्णु ने देवी सती के अंगों को चक्र से अलग कर दिया, तो जिस स्थान पर उनके अंग गिरे वह स्थान शक्तिपीठ बन गए, लेकिन मां सती का शरीर की भस्म यहीं रह गई। यहां एक प्राचीन कुआं भी है जो कई तरह के रहस्यों से भरा हुआ है। 

डिसक्लेमर

'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।

संबंधित लेख