भीम की उत्पत्ति (Bheem Ki Utpatti)

नागलोक में अमृतपान करने से भीम को मिला हजार हाथियों के बराबर बल, हिडिंब राक्षस का वध कर हिडिंबा से किया गंधर्व विवाह 


महाभारत, बाहुबल और पराक्रम जैसे शब्दों का प्रयोग जब एक साथ किया जाता है, इनके साथ एक नाम भी जुड़ता है, वह नाम है महाबली भीम का। तो आइए भक्त वत्सल के इस आर्टिकल में जानते हैं कहानी हजार हाथियों के बल वाले गदाधारी भीम की।


हनुमान जी की तरह पवनदेव के अंशावतार थे भीम

भीमसेन 5 पांडवों में दूसरे नंबर पर थे। वे माता कुंती के पुत्र थे। उनका जन्म पवन देव की कृपा से हुआ था और वे हनुमान जी की तरह पवन देव के अंशावतार थे। भीम जन्‍म से ही बड़े बलवान थे और उनकी शारीरिक बनावट भी अन्य पांडवों और कौरवों से ज्यादा बड़ी और सुडौल थी। उनका अस्त्र गदा है। इसलिए उन्हें गदाधारी भीम भी कहा गया है। बचपन से ही दुर्योधन और अन्य कौरव भीम के बल से ईर्ष्या करते थे। महाभारत के अनुसार पांडवों के जन्म के कुछ दिन बाद पांडु का निधन हो गया। उस समय पांडु अपनी पत्नी कुंती और माद्री के साथ वन में निवास करते थे। पांडु की मृत्यु के बाद उनके भाई धृतराष्ट्र ने कुंती, माद्री सहित पांचों पुत्रों को हस्तिनापुर बुला लिया। जहां धृतराष्ट्र और उनकी पत्नी गांधारी अपने 99 पुत्र और एक पुत्री के साथ रहते थे। 


कौरवों ने विष की थी भीम को मारने की कोशिश 

एक कथा के अनुसार एक समय कौरव और पांडव गंगा तट पर खेल रहे थे। खेलने के बाद जब सभी भोजन करने लौटें तो दुर्योधन ने भीम के भोजन में विष मिला दिया। भीम विष के प्रभाव से बेहोश हो गए। तभी दुर्योधन और दुःशासन ने भीम को गंगा नदी में फेंक दिया। यह बात पांडवों को पता नहीं थी। भीम गंगा में डूबने की बजाय नागलोक पहुंच गए। जहां नागलोक के सांपों ने भीम पर हमला करना चाहा। लेकिन तभी नागराज वासुकी भीम के पास पहुंचे। उनके साथ आर्यक नाग भी थे जो भीम के नाना के नाना थे। उन्होंने भीम को अपना परिचय देते हुए एक विशेष रस दिया जिसमें विष का असर खत्म हो जाता था। उस रस में हजार हाथियों का बल था। भीम ने वह पी लिया और वहीं आराम करने लगे।


उस रस को पचने में आठ दिन लगे। आठवें दिन नागलोक के नागों ने भीम को गंगा किनारे हस्तिनापुर के पास सकुशल छोड़ दिया। वैसे तो भीम परम बलवान थे ही लेकिन अब उनमें हमेशा के लिए हजारों हाथियों का बल आ गया था। हस्तिनापुर पहुंचने के बाद भीम ने पांडवों को सारी कथा सुनाई जिसे पांडवों ने गुप्त रखा। भीम ने समय-समय पर अपने दुश्मनों को पछाड़ने के लिए इस बल का उपयोग किया।


द्रौपदी के अलावा भीम की तीन और पत्नियां थीं 

पांडवों में सबसे पहले भीम का ही विवाह हु राक्षस हिडिंब की बहन हिडिंबा के साथ हुआ था। लाक्षागृह कांड के बाद जब पांडव वन में भटक रहे थे तभी हिडिंब ने उन पर हमला कर दिया। भीम ने उसका वध कर दिया। उसके बाद सभी पाण्डव माता कुंती के साथ वन की ओर चल पड़े तो हिडिंबा भी उनके पीछे-पीछे उनके साथ चलने लगी। जब युधिष्ठिर ने हिडिंबा से इसका कारण पूछा तो उसने कहा कि वो भीमसेन को अपना पति मान चुकी है और अब जहां भीम होंगे वहीं वो भी रहेगी।


उसने कुंती और युधिष्ठिर से भीम के साथ रहने की आज्ञा मांगी। साथ ही कहा कि किसी भी विपत्ति के समय वो पांडवों की सहायता करेंगी। ये सुनकर युधिष्ठिर ने भीम को हिडिंबा की बात मानने को कहा। भीम ने बड़े भाई युधिष्ठिर की बात मानते हुए हिडिंबा के साथ गंधर्व विवाह किया। युधिष्ठिर की आज्ञा अनुसार हिडिम्बा प्रतिदिन सूर्यास्त के पूर्व तक दिनभर भीमसेन की सेवा करतीं और रात होते ही भीमसेन अपने भाइयों के पास आ जाते थे।


यह क्रम भीम ने हिडिंबा को पुत्र की प्राप्ति होने तक ही जारी रखा। विवाह के 1 वर्ष पश्चात हिडिंबा ने घटोत्कच को जन्म दिया। जन्म के समय उसके सिर पर एक भी बाल नहीं होने के कारण उसका नाम घटोत्कच रखा गया। घटोत्कच जन्म से ही बड़ा मायावी और बलवान था। उसने माता कुंती और युधिष्ठिर के सामने हाथ जोड़कर प्रार्थना की और कहा कि उसे सभी पांडव अपनी सेवा में रख ले। लेकिन कुंती ने उससे कहा, कि समय आने पर तुम्हारी सेवा अवश्य ली जाएगी। तब घटोत्कच ने कहा कि आप मुझे जब याद करेंगे मैं हाजिर हो जाऊंगा और वहां से मौजूदा राज्य उत्तराखंड की ओर लौट गया। वह सीधे फिर महाभारत के युद्ध में ही पांडवों की सहायता करने के लिए लौटा।


भीम की दूसरी पत्नी द्रौपदी थी जिसे अर्जुन ने स्वयंवर में जीता था। भीम की तीसरी पत्नी बलंधरा थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार भीमसेन ने अपने बल और पराक्रम से स्वयंवर जीतकर बलंधरा से विवाह किया था। बलंधरा और भीम के पुत्र का नाम सुतसोम था। भीम की चौथी पत्नी का नाम काली था। जो मद्र देश की राजकन्या थीं। 


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