मोहिनी अवतार ( Mohini Avatar)

भगवान विष्णु के मोहिनी अवतार को लेकर पुराणों में दो कथाएं, एक समुद्र मंथन तो दूसरी भस्मासुर से जुड़ी, भगवान शिव से हुआ विवाह


देवताओं और मानवों पर जब-जब कोई परेशानी आई। भगवान ने किसी न किसी अवतार में आ कर उनका कष्ट दूर किया है। ऐसी ही एक विपत्ति देवताओं पर तब आई थी। स्थिति ऐसी थी कि अगर भगवान मदद न करते तो दानव अमर हो जाते और संसार के स्वामी बन जाते। लेकिन इस बार भी श्री हरि विष्णु ने संसार के प्राणियों की रक्षा की। इस बार भगवान वैशाख महीने की एकादशी को मोहिनी अवतार में जन्म लिया। इसी कारण इस दिन को मोहिनी एकादशी के नाम से मनाया जाता है। तो जानिए भक्त वत्सल के इस आर्टिकल में भगवान विष्णु के मोहिनी अवतार के बारे में।


समुद्र मंथन के समय भगवान ने लिया मोहिनी अवतार 


पौराणिक कथाओं के मुताबिक जब देवताओं और राक्षसों ने मिलकर समुद्र मंथन किया तो उसमें से बहुत से बहुमूल्य पदार्थ प्राप्त हुए। इनमें वो अमृत कलश भी शामिल था जिसे भगवान धन्वंतरि अपने हाथों में लेकर प्रकट हुए थे। अमृत को देखकर दानवों में उसे पाने की होड़ मच गई। वो देवताओं से अमरत्व का अधिकार छीनना चाहते थे। इसे लेकर असुरों ने देवताओं से विवाद शुरू कर दिया और उनसे अमृत कलश छीन लिया।


सभी देवता घबरा गए क्योंकि अगर दानव अमृत पी लेते तो अमर हो जाते और संसार पर अत्याचार करते। ऐसे में एक बार फिर भगवान विष्णु ने अवतार लिया और धरती को दानवों से बचाया। भगवान इस बार सुंदर मोहिनी का रूप लेकर आए। उनके दिव्य स्वरूप को देखकर समस्त संसार मोहित हो गया। तो दानव उनके सम्मोहन से कैसे बच पाते। 


देवताओं में बांटा समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत 


मोहिनी रूप में अवतरित हुए भगवान विष्णु जी ने असुरों को अपनी बातों में उलझा कर उनसे अमृत कलश ले लिया। भगवान ने देवताओं और असुरों को बारी-बारी खुद के हाथों से अमृत वितरित करने का लालच दिया। दानव इस लालच में आ गए और मोहिनी का कहा मानने को राजी हो गए।


भगवान विष्णु के एकमात्र महिला अवतार मोहिनी का जादू दानवों पर ऐसा चला कि वो अपनी सुध-बुध खो बैठे। तब श्री हरि ने सभी देवताओं को अमृत पान करा दिया और दानवों को अपनी मोहिनी कलाओं में उलझा रखा। तभी एक दानव इस बात को समझ गया और उसने छल से अमृत पान कर लिया था।


इस राक्षस को सूर्य और चंद्र देव ने पहचान लिया लेकिन तब तक वो अमृत पी चुका था। मतलब अमर हो गया था। इसलिए जब भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से उसका सिर और धड़ काट दिया तो भी उसकी मृत्यु नहीं हुई। दो भागों में बंटे इसी अमर दैत्य को आज दुनिया राहु और केतु के नाम से जानती है।


मोहिनी अवतार ने बचाए भगवान शिव के प्राण 


पुराणों में एक और मोहिनी की कथा भी है। एक समय भस्मासुर नाम का दुष्ट राक्षस संसार पर राज करने के लिए भगवान शिव से शक्तियां प्राप्त करना चाहता था। इसलिए उसने भगवान शिव की घोर तपस्या की। भस्मासुर की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव उसके सामने प्रकट हुए और वरदान मांगने को कहा। भस्मासुर ने भी अन्य दानवों की तरह अमरता का वरदान मांगा। लेकिन भगवान शिव ने उसे इस वरदान को छोड़कर और कुछ भी मांगने को कहा। तब उसने हमेशा जीवित रहने के इरादे से ऐसी शक्ति मांगी कि वो जिस के सिर पर हाथ रख दे वो वहीं भस्म हो जाए।


भगवान शिव ने उसे यह वरदान दे दिया। तब भस्मासुर ने भगवान पर ही अपनी शक्ति को आजमाना चाहा। भस्मासुर भगवान शिव को भस्म करने के लिए आगे बढ़ा तो भगवान शिव वहां से भाग गए। भस्मासुर शिव का पीछा करने दौड़ा। शिव के भस्मासुर की आंखों से ओझल हो जाने के बाद भगवान विष्णु सुंदर मोहिनी स्त्री के रूप में उसके सामने प्रकट हुए। 


उसे देखकर भस्मासुर ने शिव का पीछा करना छोड़ दिया। वो मोहिनी पर मोहित हो गया और विवाह का प्रस्ताव दिया। इस पर मोहिनी ने उसके सामने नृत्य प्रतियोगिता में हुबहू उसके जैसा नृत्य करते हुए उसे प्रसन्न करने की शर्त रखी। यह बात भस्मासुर ने स्वीकार कर ली। 


जब मोहिनी और भस्मासुर नाच रहे थे तो भस्मासुर पूरी तरह नृत्य में खो गया। मोहिनी जैसा नचाती, वो  भी वैसा नाचता। तभी मोहिनी रूप धारण किए भगवान विष्णु ने अपने सिर पर हाथ रखा तो भस्मासुर ने भी वैसा ही किया और अपना हाथ अपने सिर पर रख लिया। शिव के वरदान के अनुसार भस्मासुर एक पल में ही भस्म हो गया। 


मोहिनी और भगवान शिव का संबंध 


कुछ पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव ने विष्णु के स्त्री रूप मोहिनी से विवाह किया था। इनके एक पुत्र भी हुए। जिनका नाम भगवान अयप्पा है। भगवान अयप्पा को आपने अक्सर योग मुद्रा में, गले में एक गहना पहने देखा होगा। इस गहने के कारण उनका एक नाम मणिकंदन भी है। जिसका अर्थ होता है गले में पहने जाने वाली घंटी। 


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