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बलराम जी के जन्म की कथा, Balram Ji Ki Janam Ki Katha

त्रेता युग में शेषनाग के अवतार लक्ष्मण जी भगवान श्री राम के छोटे भाई के रूप में जन्मे और हर क्षण धर्म की रक्षा हेतु राम जी का साथ दिया। राम युग की कथाओं में वर्णित है कि एक बार लक्ष्मण जी ने आमोद विनोद यानी की हंसी ठिठोली में राम जी से कहा कि इस जन्म में आप मेरे बड़े भाई हैं और मैं आपकी हर आज्ञा का पालन करता हूं, लेकिन अगली बार मैं बड़ा भाई बनना चाहता हूं। इस पर विष्णु के अवतार श्री राम जी ने लक्ष्मण जी को वचन दिया के द्वापर युग में आप मेरे बड़े भाई के रूप में ही जन्म लेंगे। जब द्वापरयुग आया तो भगवान के इसी वचन को सर्वथा सत्य सिद्ध करने के लिए भगवान विष्णु के शेषावतार बलराम को अवतार लेने के लिए कहा. बलराम का जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को हुआ। यदुवंश में जन्म लेने वाले बलराम जी ने अपने छोटे भाई भगवान श्री कृष्ण के साथ मिलकर इस युग में धर्म रक्षा की। कृष्ण के बड़े भाई बलराम हलधर के नाम से भी विख्यात हैं। उनके जन्मदिन को हल षष्ठी या हलछठ के नाम से मनाया जाता है। इस दिन हल की जुताई से ऊगे अनाज को खाना वर्जित माना गया है। 


बलराम जन्म की पौराणिक कथा


बलराम जी के जन्म को लेकर भागवत पुराण में उल्लेख आता है कि वे भगवान विष्णु का शेषावतार है। भगवान विष्णु के हर अवतार के साथ उनके अंशावतार शेषनाग सदैव साथ होते हैं। विष्णु के आठवें अवतार में भी शेषनाग बड़े भाई बलराम जी के रूप में आए। कथा है कि जब मथुरा नरेश कंस अपनी बहन देवकी और उनके पति वासुदेव को विवाह पश्चात विदा कर रहा था, उसी समय आकाशवाणी ने देवकी और वसुदेव की आंठवी संतान के हाथों कंस वध की घोषणा की। अपने भानजे के हाथों मौत के डर से कंस ने देवकी और वासुदेव को कारगार में बंद कर दिया और एक-एक करके उनकी छह संतानों को मार दिया। सातवी संतान के रूप में शेषवतार भगवान बलराम गर्भ में आए। तभी भगवान विष्णु ने अपनी योग शक्ति से उन्हें माता रोहणी के गर्भ में स्थानांतरित कर दिया जो उस समय नंदबाबा के घर रह रही थी।


कौन हैं बलराम जी की माता रोहिणी ?


पौराणिक कथा के अनुसार बलराम जी की माता रोहिणी अपने पूर्व जन्म में कश्यप ऋषि की पत्नी कद्रू थीं। कद्रू ने सृष्टि की शुरुआत में नागों को जन्म दिया था और शेषनाग नागमाता कद्रू के बड़े पुत्र के रूप में जन्मे थे। इसी कारण इस जन्म में भी शेषनाग ने बलराम जी के रूप में रोहिणी के गर्भ से जन्म लिया। देवकी के गर्भ से संकर्षण क्रिया द्वारा बलराम जी रोहिणी के गर्भ में पहुंचे थे। इस कारण ही बलरामजी का नाम संकर्षण भी पड़ा।

यदुवंश में जन्म लेने वाले परम पराक्रमी और बलराम मल्लयुद्ध, कुश्ती और गदायुद्ध में निपुण थे। उनका शस्त्र हल है जिसके कारण उनका एक नाम हलधर भी है। हलायुध और बलभद्र भी बलराम जी के ही नाम है। इनके कृष्ण सहित सगे सात भाई और एक बहन सुभद्रा थीं। बलराम जी का विवाह देवी रेवती से हुआ था। वासुदेव और रोहिणी के पुत्र बलराम जी के दो पुत्र  निषस्थ, उल्मुख तथा उनकी पुत्री का नाम वत्सला था।

 

विचित्र तरीके से हुआ था बलराम का विवाह 


कहा जाता है कि बलराम की पत्नी रेवती उनसे उम्र में कई युग बड़ी थीं। वो सतयुग में जन्मी थी और बलराम जी से सत्ताईस गुना ज्यादा लम्बी थीं। गर्ग संहिता के अनुसार रेवती के पिता ककुद्मी सतयुग में अपनी पुत्री के साथ ब्रह्मा जी के दर्शन करने पहुंचे। उन्होंने रेवती के लिए ब्रह्म देव से एक योग्य वर की इच्छा प्रकट की। ब्रह्मदेव ने उन्हें कहा कि जितना समय आपने अपनी बात कहने में लगाया है उतने समय में पृथ्वी पर 27 युग बीत चुके हैं और द्वापर अपने अंतिम चरण में है। आपकी पुत्री का वरण शेषावतार बलराम ही कर सकते हैं। ब्रह्म देव की आज्ञा से जब रेवती पृथ्वी पर बलराम से मिली तो दोनों की लम्बाई में बड़ा अंतर था। तब बलरामजी ने अपने हल से रेवती की ऊंचाई कम कर दी और उनसे विवाह किया।


बलराम जी के पराक्रम की कहानियां 


गदायुद्ध में विशेष प्रतिभा रखने वाले बलराम जी इस कला में दुर्योधन और भीमसेन के गुरु थे। बलरामजी और श्रीकृष्ण जी ने धर्म की रक्षा हेतु मिलकर कई युद्ध लड़े थे। मथुरा पहुंचकर सबसे पहले कंस की मल्लशाला में श्रीकृष्ण ने चाणूर का और बलरामजी ने मुष्टिक का वध किया था। 

वहीं बलराम जी ने अपने बल से धरती हिला दी थी, जब एक बार खेल में कौरवों से बलरामजी जीत गए तो कौरवों ने हार मानने से इन्कार कर दिया। क्रोधित होकर बलरामजी अपने हल से हस्तिनापुर को खींचकर गंगा में डुबोने लगें, जिसके बाद एक आकाशवाणी हुई जिसमें बलराम जी को विजेता घोषित किया और उनका क्रोध शांत हुआ। 

हलधर बलराम जी के पराक्रम की एक कथा और है जिसके अनुसार भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी जाम्बंती के पुत्र साम्ब और दुर्योधन और भानुमती की पुत्री लक्ष्मणा एक दूसरे से प्रेम करते थे, दोनों ने गंधर्व विवाह कर लिया। यह बात कौरवों से बर्दाश्त नहीं हुई और कौरव सेना ने साम्ब को बंदी बना लिया। तभी बलराम जी ने अपने बल से कौरवों का नाश शुरू कर दिया। उनका क्रोध देखकर कौरवों ने बलराम से माफी मांगी और साम्ब और लक्ष्मणा को सम्मान विदा किया।

 एक कथा रासलीला के समय कि है जब बलराम जी ने रासलीला के आनंद को और बढ़ाने के लिए यमुना नदी को सबके समीप आने का निवेदन किया लेकिन यमुना जी ने उनका निवेदन नहीं माना। इस पर  बलराम जी क्रोधित हो गए और हल से बलपूर्वक यमुना को खींचने लगें। साथ ही यमुना को सैंकड़ों टुकड़ो में बांटने का श्राप देने लगें। घबरा कर यमुना ने क्षमा याचना की तो बलराम ने यमुना को क्षमा कर दिया। लेकिन हल के निशान से यमुना कई धाराओं में बंट गई और आज तक छोटे-छोटे अनेक टुकड़ों में बहती हैं।

बलशाली हलधर बलराम जी को एक बार अपने बल का घमंड हो गया था। जिसे श्रीकृष्‍ण ने हनुमान जी की मदद से दूर किया। भगवान के आदेश अनुसार  एक दिन हनुमान जी ने द्वारका के बगीचे में उत्पात मचा दिया। द्वारका के सैनिकों ने घबराकर बलरामजी को इसकी सुचना दी। बलरामजी और हनुमानजी का युद्ध हुआ जिसमें बलरामजी कमजोर पड़ने लगे। अपने आप को हारता देख बलराम जी ने अपना हल निकालने का निश्चय किया, जिसके बाद वहां रुकमणी के संग भगवना कृष्ण वहां पहुंचे और उन्हें हनुमान जी का असली परिचय कराकर राम अवतार के बारे में याद कराया। जिसके बाद बलराम जी का अहंकार नष्ट हो गया।


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