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अर्जुन की उत्पत्ति (Arjun Ki Utpatti)

गंगा के श्राप के कारण अपने ही पुत्र के हाथों मारे गए थे अर्जुन, उनके नर अवतार से जुड़ी कर्ण वध की कहानी 


महाभारत के सबसे बड़े योद्धा, दुनिया का सबसे कुशल धनुर्धर, सौलह कलाओं के अवतार भगवान कृष्ण स्वयं जिनके सारथी बने। वो धनंजय, पांडुनंदन, पार्थ, कौंतेय, गांडीवधर, सव्यसाची, श्वेतवाहन, गुड़ाकेश, कुन्तिसुत, विजयरथ, बृहन्नला, कपिध्वज पार्थ और अर्जुन कहलाएं। जी हां। अर्जुन। युद्ध कौशल का दुसरा नाम और वीरता का प्रतीक। महाभारत यह चरित्र पराक्रम की परछाईं हैं। आज भी जब वीर योद्धाओं की बात होती है वहां अर्जुन का जिक्र जरूर होता है। 


तो आइए भक्त वत्सल के इस आर्टिकल में जानते हैं  महाभारत के अमर योद्धा अर्जुन की कहानी…


अर्जुन को महाभारत के युद्ध का मुख्य किरदार कहना गलत नहीं होगा। देवराज इन्द्र और कुन्ती के पुत्र अर्जुन के पराक्रम ने इस युद्ध गाथा को अमर कर दिया। वे पांडवों में तीसरे स्थान पर थे। महाराज पाण्डु इनके आध्यात्मिक पिता थे। महाराज पाण्डु की दो पत्नियां थी, कुन्ती और माद्री। दुर्वासा ऋषि के वरदान से धर्मराज, वायुदेव तथा इंद्र ने कुंती को तीन पुत्रों का वरदान दिए। अर्जुन इनमें से इंद्र द्वारा दिए वरदान से जन्मे थे।


अंगराज कर्ण, धर्मराज युधिष्ठिर, गदाधारी भीमसेन, नकुल और सहदेव इनके भाई है। अर्जुन बचपन से ही एक धनुर्विद्या में माहिर थे और गुरु द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य थे। अपने धनुष बाण और अचूक निशाने के दम पर अर्जुन ने दुनिया जीती वहीं स्वयंवर में द्रौपदी को भी जीता था। कुरुक्षेत्र में श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच हुई धर्म और अधर्म में अंतर की बातें आज हम गीता के रूप में पढ़ते और सुनते हैं। योद्धा होने के अलावा, अर्जुन संगीत और नृत्य में भी महारथी थे।


अर्जुन के चार विवाह हुए


स्वयंवर में द्रौपदी से विवाह - अज्ञातवास के दौरान महर्षि वेदव्यास के कहने पर पाण्डव पांचाल देश चले गए। जहाँ राजा द्रुपद ने अपनी कन्या द्रौपदी के स्वयंवर का आयोजन किया था। अर्जुन इस स्वयंवर में ब्राह्मण के रूप में पहुंचे। जब समस्त राजा स्वयंवर की शर्त के अनुसार मछली की आंख का निशाना नहीं लगा सके तो अर्जुन ने एक ही बार में लक्ष्य भेद कर द्रौपदी को जीता। 


सुभद्रा से भागकर शादी - सुभद्रा भगवान कृष्ण-बलराम की बहन थी। कृष्ण के कहने पर अर्जुन ने सुभद्रा को द्वारका से भगाकर शादी कर ली। सुभद्रा और अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु महान योद्धा के रुप में याद किए जाते हैं। अभिमन्यु महाभारत के युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए। अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित ने इस वंश को आगे बढ़ाया।


उलूपी से विवाह - अर्जुन की तीसरी पत्नी नागराज वासुकी की दत्तक पुत्री और कौरव्य नाग की पुत्री उलूपी थी। अर्जुन और उलूपी के पुत्र का नाम इरावान था। 


चित्रांगदा से विवाह - अर्जुन ने मणिपुर के राजा चित्रवाहन की इकलौती बेटी चित्रांगदा से भी विवाह किया था। चित्रांगदा के गर्भ से अर्जुन को बब्रुवाहन नामक एक तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति हुई थी। इसी पुत्र के मन को काबू कर गंगा ने अपने श्राप के अनुसार अपने ही पुत्र से अर्जुन का वध करवाया था। हालांकि बाद में श्रीकृष्ण ने बब्रुवाहन के मन का भ्रम दूर करते हुए अर्जुन को फिर से जीवित कर दिया था।


अर्जुन और उनका विलक्षण गांडीव धनुष 


अर्जुन जितने महान थे, उतना ही विलक्षण था उनका धनुष। अर्जुन के धनुष का नाम गांडीव था। उन्हें अपना गांडीव धनुष खांडवप्रस्थ के वन से मिला था। वहीं अर्जुन के तरकश में कभी बाण खत्म नहीं होते थे। अर्जुन के गांडीव धनुष की टंकार मतलब प्रत्यंचा की आवाज इतनी तेज थी कि उससे पूरी रणभूमि गूंज उठती थी। अर्जुन के पास पाशुपतास्त्र, नारायणास्त्र और ब्रह्मास्त्र जैसे महान अस्त्र थें।


गंगा ने अर्जुन को श्राप दिया था


जब अर्जुन ने महाभारत के युद्ध में गंगा पुत्र भीष्म पितामह का वध कर दिया तो इस पर मां गंगा अर्जुन पर गुस्सा हो गई। उन्होंने अर्जुन को श्राप दिया कि अर्जुन की मौत भी अपने बेटे के हाथों ही होगी। इसके बाद समय आने पर अर्जुन के बेटे बब्रुवाहन का दिमाग भ्रमित हो गया और उसने अपने ही पिता अर्जुन का वध कर दिया था।


अर्जुन की मृत्यु होने के बाद मां गंगा वहां प्रकट हुईं और अर्जुन की मौत पर जोर-जोर से हंसने लगीं। तभी श्री कृष्ण ने अर्जुन को पुनः जीवित किया और अर्जुन के पुत्र बब्रुवाहन को मां गंगा के सम्मोहन से बाहर निकाला। श्री कृष्ण ने भीष्म की मृत्यु को धर्म रक्षा के लिए जरूरी बताते हुए मां गंगा को भी शांत किया।


अर्जुन के पुनर्जन्म की कहानी 


पुनर्जन्म में भगवान विष्णु के नर नारायण अवतार के दौरान अर्जुन नारायण के जुड़वां भाई नर थे। नर और नारायण का अवतार दंभोद्भवा नामक असुर के वध के लिए हुआ था।  दंभोद्भवा ने भगवान सूर्य की तपस्या करके उनसे एक हजार कवच प्राप्त कर लिए। इनमें से हर एक कवच को तोड़ने के लिए एक हजार साल की तपस्या जरूरी थी और वरदान था कि कवच के टूटते ही इसे तोड़ने वाले की भी मृत्यु हो जाएगी।


नर और नारायण ने बारी-बारी से तपस्या कर दंभोद्भवा के 999 कवच तोड़ दिए। फिर भी एक कवच बच गया। नर नारायण से जान बचाने के लिए यह असुर सूर्य लोक में जाकर छुप गया। सूर्य देव ने इसकी रक्षा की और यही असुर महाभारत काल में कवच के साथ सुर्य पुत्र कर्ण के रूप में पैदा हुआ। जिसे अर्जुन ने मारा।


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