Mahakumbh 2025: स्नान के बाद करें अलोप शंकरी देवी मंदिर का दर्शन, जानें क्यों पालकी में होती है माता की पूजा
महाकुंभ 2025 के दौरान प्रयागराज में करोड़ों श्रद्धालु पवित्र डुबकी लगाने के लिए आएंगे, और इस दौरान वे कई महत्वपूर्ण मंदिरों का दर्शन भी कर सकते हैं। इनमें से एक प्रमुख मंदिर है अलोप देवी का मंदिर, जो शक्तिपीठों में से एक है और हिंदू धर्म में अत्यधिक सम्मानित है। मंदिर को लेकर मान्यता है कि यहां देवी सती का अंतिम अंग यहीं गिरा था, जिसे "अलोप" (अदृश्य) कहा जाता है। इसके बाद देवी सती का शरीर भगवान शिव के पास नहीं रहा। इस मंदिर का दर्शन महाकुंभ के दौरान भक्तों के लिए एक विशेष आस्था का अनुभव है। चलिए मंदिर के बारे में आपको और विस्तार से बताते हैं।
अलोप देवी का मंदिर
मान्यता है कि जब माता सती का शरीर भगवान शिव के त्रिशूल पर था, तो उनके अंग 51 स्थानों पर गिरे, जिनमें से एक प्रयागराज में था। यहां माता का पंजा गिरा था, और इस कारण इसे "अलोपशंकरी" या "अलोप देवी" के नाम से जाना जाता है।
माता की पूजा का अनूठा तरीका
अलोप देवी मंदिर में कोई प्रतिमा नहीं है। यहां एक पालकी (डोली) को माता का रूप मानकर श्रद्धालु पूजा करते हैं।। जिसके कारण यह जगह चमत्कारी मानी जाती है। नवरात्रि और महाकुंभ के दौरान विशेष रूप से बड़ी संख्या में भक्त यहां आते हैं। मंगलवार और शुक्रवार को मंदिर में भक्तों की संख्या अधिक होती है। यही अनूठापन इस मंदिर को अन्य मंदिरों से विशेष और अद्वितीय बनाता है।
कहाँ स्थित है अलोप देवी मंदिर?
यह मंदिर प्रयागराज के त्रिवेणी संगम के निकट स्थित है, जहां गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों का संगम है। इसी कारण से संगम में स्नान के बाद इस मंदिर के दर्शन का विशेष महत्व है। बता दें कि माता अलोपी का मंदिर केवल शक्तिपीठ नहीं, बल्कि प्रयागराज की धार्मिक धरोहर का अभिन्न हिस्सा है, जहां दिनभर श्रद्धालु पूजा करते हैं।
नवरात्रि में मां का आशीर्वाद पाने के लिए 9 दिनों तक व्रत रखते हैं और पूरे विधि-विधान से पूजा करते हैं। मां दुर्गा की पूजा में नियमों का पालन करना बहुत जरूरी है, वरना पूजा निरर्थक हो जाती है। इन्हीं नियमों में खानपान के नियम भी शामिल हैं।
आध्यात्मिक इच्छाओं की पूर्ति, सिद्धि प्राप्ति, मोक्ष के लिए चैत्र नवरात्रि को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।
चैत्र नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है जो मां दुर्गा का स्वरूप हैं। मां ब्रह्मचारिणी ने भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाने के लिए कठिन तपस्या की थी। इसलिए उन्हें तपस्या की देवी माना जाता है।
चैत्र नवरात्रि के दूसरे दिन देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। मां दुर्गा के दूसरे रूप की पूजा करने से भक्तों को धैर्य, शांति और समृद्धि मिलती है।