माता शबरी का पावन धाम

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Shabari Jayanti Dham: कहां है माता शबरी का पावन धाम, जानें शबरी जंयती का महत्व


फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को शबरी जयंती के रूप में मनाया जाता है। इसमें न सिर्फ भगवान बल्कि उनके परम भक्त की भी पूजा और व्रत किया जाता है। इस साल 2025 में शबरी जयंती 19 फरवरी को सुबह 7 बजकर 32 मिनट से शुरू होकर 20 फरवरी को सुबह 9 बजकर 58 मिनट तक रहेगी। ऐसे में उदयातिथि के अनुसार 20 फरवरी को शबरी जयंती मनाई जाएगी। रामायण काल में भगवान राम के वनवास के दौरान जिस माता शबरी ने उन्हें अपने चखे हुए बेर खिलाए थे। सनातन परंपरा में जिस मां शबरी को ईश भक्ति का बड़ा पर्याय माना जाता है, वर्तमान में उनका पावन धाम कहां पर स्थित है और उनकी पूजा करने पर क्या फल मिलता है, आइए इसे विस्तार से जानते हैं।



कहां है माता शबरी का पावन धाम?


पौराणिक मान्यता के अनुसार रामायण काल में जिस स्थान पर श्रमणा यानि माता शबरी का अपने प्रभु श्री राम से मिलन हुआ था, वह स्थान वर्तमान में छत्तीसगढ़ में शिवरीनारायण के नाम से प्रचलित है। बता दें कि प्राचीन शिवरीनारायण नगर बिलासपुर से 64 कि.मी. की दूरी पर महानदी के तट पर स्थित है। माता शबरी भील समुदाय के शबर जाति से संबंध रखती थीं। ऐसी मान्यता है कि शबरी का विवाह एक भील से तय हुआ था और विवाह से पहले जब सैकड़ों जानवरों की बलि देने की तैयारी की जाने लगी तो उन्हें बहुत बुरा लगा और वे विवाह से एक दिन पहले घर छोड़कर भाग गईं थीं। जिसके बाद दंडकारण्य में मतंग ऋषि ने उन्हें अपने आश्रम में शरण दी। अपने अंत समय में मतंग ऋषि ने शबरी से कहा कि एक दिन इसी आश्रम में भगवान राम और लक्ष्मण उनसे मिलने आएंगे, इसलिए वे उनका यहीं इंतजार करें। इसके बाद जब भगवान राम उनके पास गए तो उन्होंने बड़े प्रेम से उन्हें मीठे बेर खिलाए।



शबरी ने क्यों खिलाए भगवान राम को चखे हुए बेर


ऐसी मान्यता है कि भगवान राम के वनवास काल में जब जंगल में उनकी मुलाकात शबरी से हुई तो शबरी ने अपने आराध्य को भोजन के लिए बेर लाकर दिए। पौराणिक कथा के अनुसार माता शबरी नहीं चाहती थीं कि उनके प्रभु खट्टा बेर खाएं, इसलिए उन्होंने प्रभु श्री राम को चख-चख कर मीठे बेर ही खाने को दिए। कहा जाता है कि भगवान राम अपने भक्त की इस भक्ति से प्रसन्न हुए और अंत समय में माता शबरी वैकुंठ को प्राप्त हुईं।



शबरी जयंती की पूजा विधि


  • शबरी जयंती के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं।
  • इसके बाद प्रभु श्रीराम और माता शबरी का स्मरण करें।
  • मंदिर की साफ-सफाई करने के बाद भगवान राम और माता शबरी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।
  • अब पूजा में भगवान राम को फल-फूल, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य आदि अर्पित करें।
  • भोग के रूप में आप भगवान राम को बेर चढ़ा सकते हैं, क्योंकि शबरी ने भी राम जी को बेर ही खिलाए थे, जिससे वह अत्यंत प्रसन्न हुए थे।
  • इस दिन पर श्री रामचरित मानस का पाठ करना भी अत्यंत लाभकारी माना जाता है। इससे साधक और उसके परिवार पर राम जी की कृपा दृष्टि सदा बनी रहती है।


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