विनायक चतुर्थी की पौराणिक कथाएं

जानिए क्या है पृथ्वी परिक्रमा की कथा, जिसके बिना अधूरी है विनायक चतुर्थी की कथा 


हर माह के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि का व्रत किया जाता है। इस खास अवसर पर गणपति की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। साथ ही विशेष प्रकार का व्रत भी किया जाता है। धार्मिक मत है कि ऐसा करने से जीवन के सभी दुख-दर्द दूर होते हैं। इस दिन पूजा के दौरान व्रत कथा का पाठ जरूर करना चाहिए। इससे पूजा संपूर्ण होती है और जातक को जीवन की सभी बाधाओं से मुक्ति भी मिलती है। तो आइए इस आलेख में विनायक चतुर्थी की व्रत कथा को विस्तार से जानते हैं। 


विनायक चतुर्थी व्रत कथा


पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव और माता पार्वती नर्मदा नदी के पास चौपड़ का खेल खेल रहे थे। उसी समय प्रश्न खड़ा हुआ कि खेल में किसकी जीत होगी और कौन हार का सामना करेगा? इसके बाद शिव जी ने घास-फूस से एक बालक को बनाया और उसमें प्राण डाल दिए। इसके पश्चात महादेव ने उस बालक को खेल के हार-जीत का निर्णय करने के लिए कहा। चौपड़ का खेल 03 बार खेला गया और तीनों बार ही माता पार्वती जीत गईं, परंतु बालक ने गलती से महादेव को विजेता बता दिया। बालक के इस फैसले को सुनकर माता पार्वती क्रोधित हुईं, जिसकी वजह से उन्होंने उस बालक को अपाहिज होने का श्राप दे दिया। इसके बाद बालक ने माता पार्वती से अपनी गलती की माफी मांगी। 


इस पर माता पार्वती ने कहा कि यहां गणेश जी की पूजा के लिए नागकन्या आएंगी, उनके कहे अनुसार तुम व्रत करना। इस व्रत से तुम श्राप से मुक्त हो जाओगे। बालक ने विधिपूर्वक गणेश जी की पूजा की। इससे गणेश जी प्रसन्न हुए और गणेश जी ने बालक को भगवान शिव-पार्वती के पास जाने का वरदान दिया। इसके बाद वह बालक कैलाश पर्वत पर पहुंच गया और कैलाश पर्वत पर पहुंचने की अपनी कथा उसने भगवान शिव को सुनाई। चौपड़ वाले दिन से माता पार्वती शिवजी से विमुख हो गई थीं अत: देवी के रुष्ट होने पर भगवान शिव ने भी बालक के बताए अनुसार 21 दिनों तक श्री गणेश का व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से माता पार्वती के मन से भगवान शिव के लिए जो नाराजगी थी, वह समाप्त हो गई। 

 

तब यह व्रत विधि भगवान शंकर ने माता पार्वती को बताई। यह सुनकर माता पार्वती के मन में भी अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा जागृत हुई। तब माता पार्वती ने भी 21 दिन तक श्री गणेश का व्रत किया तथा दूर्वा, फूल और लड्डूओं से गणेश जी का पूजन-अर्चन किया। व्रत के 21वें दिन कार्तिकेय स्वयं माता पार्वती जी से आ मिले। उस दिन से श्री गणेश चतुर्थी का यह व्रत समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला व्रत माना जाता है। इस व्रत को करने से मनुष्य के सारे कष्ट दूर होकर मनुष्य को समस्त सुख-सुविधाएं प्राप्त होती हैं। 


पृथ्वी की परिक्रमा करने की कथा


पौराणिक एवं प्रचलित श्री गणेश कथा के अनुसार एक बार देवता कई विपदाओं में घिरे थे। तब वह मदद मांगने भगवान शिव के पास आए। उस समय शिव के साथ कार्तिकेय तथा गणेश जी भी बैठे थे। देवताओं की बात सुनकर शिव जी ने कार्तिकेय व गणेश जी से पूछा कि तुम में से कौन देवताओं के कष्टों का निवारण कर सकता है। तब कार्तिकेय व गणेश जी दोनों ने ही स्वयं को इस कार्य के लिए सक्षम बताया। इस पर भगवान शिव ने दोनों की परीक्षा लेते हुए कहा कि तुम दोनों में से जो सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके आएगा वही देवताओं की मदद करने जाएगा।

 

भगवान शिव के मुख से यह वचन सुनते ही कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर बैठकर पृथ्वी की परिक्रमा के लिए निकल गए, परंतु गणेश जी सोच में पड़ गए कि वह चूहे के ऊपर चढ़कर सारी पृथ्वी की परिक्रमा करेंगे तो इस कार्य में उन्हें बहुत समय लग जाएगा। तभी उन्हें एक उपाय सूझा। गणेश अपने स्थान से उठें और अपने माता-पिता की सात बार परिक्रमा करके वापस बैठ गए। परिक्रमा करके लौटने पर कार्तिकेय स्वयं को विजेता बताने लगे। तब शिव जी ने श्री गणेश से पृथ्वी की परिक्रमा ना करने का कारण पूछा। तब गणेश जी ने कहा  'माता-पिता के चरणों में ही समस्त लोक हैं।' यह सुनकर भगवान शिव ने गणेश जी को देवताओं के संकट दूर करने की आज्ञा दी। 

इस प्रकार भगवान शिव ने गणेश जी को आशीर्वाद दिया कि चतुर्थी के दिन जो तुम्हारा पूजन करेगा और रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देगा उसके तीनों ताप यानी दैहिक ताप, दैविक ताप तथा भौतिक ताप दूर होंगे। इस व्रत को करने से व्रतधारी के सभी तरह के दुख दूर होंगे और उसे जीवन के भौतिक सुखों की प्राप्ति होगी। चारों तरफ से मनुष्य की सुख-समृद्धि बढ़ेगी। पुत्र-पौत्रादि, धन-ऐश्वर्य की कमी नहीं होगी। 


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एक नदी से बह रहे हैं आदियोगी,

मैया बधाईं है बधाईं है (Maiya Badhai Hai Badhai Hai)

मैया बधाई है बधाई है,
बाबा बधाई है बधाई है,

श्री दुर्गा चालीसा

नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥
निरंकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूं लोक फैली उजियारी॥

जय गणेश जय मेरें देवा (Jai Ganesh Jai Mere Deva)

वक्रतुण्ड महाकाय,
सूर्यकोटि समप्रभ,

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