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वट सावित्री व्रत में कच्चा सूत 7 बार क्यों लपेटा जाता है

वट सावित्री व्रत में कच्चा सूत 7 बार क्यों लपेटा जाता है

Vat Purnima 2025: वट सावित्री व्रत में बरगद पर 7 बार क्यों लपेटा जाता है कच्चा सूत? यहां जानें धार्मिक महत्व 

वट सावित्री व्रत 2025 में 10 जून को सुहागिन महिलाएं ज्येष्ठ अमावस्या के दिन व्रत रखकर वट वृक्ष (बरगद के पेड़) की पूजा करेंगी। यह व्रत पति की लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य और सुखी दांपत्य जीवन के लिए किया जाता है। इस व्रत की पूजा विधि में सबसे विशेष कर्म है, वट वृक्ष के चारों ओर कच्चे सूत को सात बार लपेटना। यह सिर्फ एक परंपरा नहीं, बल्कि पति-पत्नी के रिश्ते की गहराई, समर्पण और सात जन्मों के बंधन का प्रतीक है।

सात जन्मों का अटूट बंधन माना जाता है इसका प्रतीक 

वट वृक्ष के चारों ओर कच्चा सूत सात बार लपेटने का अर्थ है पति-पत्नी के बीच सात जन्मों तक का अटूट रिश्ता। यह परंपरा यह दर्शाती है कि स्त्रियां अपने वैवाहिक संबंध को सिर्फ एक जन्म तक सीमित नहीं मानतीं, बल्कि उसे सात जन्मों की पवित्रता से जोड़ती हैं।

सात बार कच्चा सूत लपेट कर स्त्रियां लेती हैं संकल्प

  • यह क्रिया एक संकल्प है, इस बात का कि पत्नी अपने पति के साथ जीवन की हर कठिनाई में खड़ी रहेगी, चाहे जैसे भी संकट आएं। कच्चा सूत उनकी दृढ़ता, समर्पण और निष्ठा का प्रतीक बन जाता है।
  • वट वृक्ष के चारों ओर सात परिक्रमा करते हुए धागा लपेटना न केवल धार्मिक दृष्टि से शुभ माना जाता है, बल्कि यह वैवाहिक जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की प्रार्थना भी होती है। यह क्रिया घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है।

संकट से रक्षा का प्रतीक 

यह भी मान्यता है कि वट वृक्ष पर सूत लपेटने से पति पर आने वाले संभावित संकटों का निवारण होता है। यह क्रिया देवी सावित्री की तरह नारी शक्ति का आह्वान है, जो हर संकट से अपने परिवार की रक्षा करने के लिए तत्पर रहती है।

वट सावित्री व्रत में हर क्रिया का एक गहरा धार्मिक और सांस्कृतिक अर्थ होता है। सात बार कच्चा सूत लपेटना केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि एक प्रेम, शक्ति, निष्ठा और सात जन्मों के अटूट रिश्ते का पवित्र प्रतीक है।

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दक्षिणमुखी घर में पूजा क्यों नहीं होती?

अपना घर बनाते समय दिशा का चुनाव बहुत महत्वपूर्ण है। वास्तु शास्त्र के अनुसार, दक्षिण दिशा को यमराज से जोड़ा जाता है और दक्षिण मुखी घर अशुभ माना जाता है।

त्रिवेणी संगम पर क्यों होता है शाही स्नान?

महाकुंभ 2025 की शुरुआत में अब 1 महीने से भी कम समय बचा है। शाही स्नान के लिए तैयारियां पूरी कर ली गई है। प्रयागराज का त्रिवेणी संगम हिंदु धर्म के सबसे बड़े समागम के लिए तैयार है।

कैसे होता है कल्पवास का 1 महीना?

प्रयागराज में महाकुंभ की शुरुआत 13 जनवरी से होने जा रही है। अखाड़ों के साधु-संतों का पहुंचना जारी है। वहीं आम लोग भी संगम नगरी प्रयागराज पहुंच रहे हैं। इनमें कई ऐसे भी है , जो त्रिवेणी संगम पर कल्पवास करने के लिए आए हैं।

कल्पवास का महत्व

प्रयागराज हिंदू धर्म के सबसे तीर्थ स्थलों में गिना जाता है। यहां माघ महीने में कल्पवास करने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। इस बार माघ माह महाकुंभ के दौरान पड़ रहा है।

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