त्रिपुर भैरवी जयन्ती के उपाय

त्रिपुर भैरव जयंती पर होता है अंहकार का नाश, इस दिन करें ये उपाय 


मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा के दिन मनाई जाने वाली त्रिपुर भैरवी जयंती एक महत्वपूर्ण धार्मिक अवसर है, जो माता काली के शक्तिशाली स्वरूप त्रिपुर भैरवी की महिमा को दर्शाता है। इस दिन विधि-विधान से माता काली की पूजा करने से भक्तों को सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है और उनके अहंकार का नाश हो जाता है। त्रिपुर भैरवी जयंती के दिन विधि-विधान से माता काली की पूजा करने से भक्तों को कई लाभ प्राप्त होते हैं। 


इस दिन पूजा करने से व्यक्ति के सभी कष्ट और अहंकार नष्ट हो जाते हैं। इसके अलावा, माता त्रिपुर भैरवी की पूजा करने से व्यक्ति को शक्ति, साहस और आत्मविश्वास प्राप्त होता है। आइए जानते हैं कि त्रिपुर भैरवी जयंती के दिन क्या करना चाहिए? साथ ही जानेंगे इस दिन माता की पूजा करने से क्या होता है? 


कौन है माता त्रिपुर भैरवी? 


माता त्रिपुर भैरवी 10 महाविद्याओं में से छठी महाविद्या है, जो सौम्य कोटि की देवी मानी जाती हैं। उन्हें मां कालिका का ही स्वरूप माना जाता है और दुर्गा सप्तशती के अनुसार, उन्होंने ही महिषासुर नामक दैत्य का वध किया था। माता त्रिपुर भैरवी का संबंध महादेव के उग्र स्वरूप काल भैरव से है, और उनकी चार भुजाएं और तीन नेत्र हैं। वे लाल वस्त्र पहने हुए मां मुंड माला धारण करती हैं और कालभैरव की तरह उन्हें भी दंडाधिकारी कहा जाता है।


कब है त्रिपुर भैरवी जयंती? 


पंचांग के अनुसार हर वर्ष मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि पर त्रिपुर भैरवी जयंती मनाई जाती है। साल 2024 में इस तिथि की शुरूआत 14 दिसंबर को शाम 4 बजकर 58 मिनट पर होगी जो 15 दिसंबर को रात 2 बजकर 31 मिनट तक जारी रहेगी। ऐसे में त्रिपुर भैरवी जयंती 15 दिसंबर को मनाई जाएगी।


त्रिपुर भैरवी जयंती के दिन क्या करना चाहिए? 


त्रिपुर भैरवी जयंती के दिन विधि-विधान से माता त्रिपुर सुंदरी की पूजा की जाती है। ऐसे में आप इस पूजा विधि से माता की पूजा कर उन्हें प्रसन्न कर सकते हैं- 


पूजा सामग्री:


  • मां त्रिपुर भैरवी की मूर्ति या तस्वीर
  • चौकी (बाजोट)
  • गंगा जल या गोमूत्र
  • चांदी, तांबे या मिट्टी के घड़े
  • जल
  • कलश
  • श्रीगणेश, वरुण, नवग्रह, षोडश मातृका, सप्त घृत मातृका की मूर्तियां या तस्वीरें
  • व्रत और पूजन के लिए आवश्यक सामग्री
  • आवाहन, आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधित द्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, दक्षिणा आदि


पूजा विधि:


  • सबसे पहले चौकी (बाजोट) पर माता की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें।
  • इसके बाद गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें।
  • चौकी पर चांदी, तांबे या मिट्टी के घड़े में जल भरकर उस पर कलश रखें।
  • उसी चौकी पर श्रीगणेश, वरुण, नवग्रह, षोडश मातृका, सप्त घृत मातृका की स्थापना भी करें।
  • इसके बाद व्रत, पूजन का संकल्प लें और वैदिक एवं सप्तशती मंत्रों द्वारा माता सहित समस्त स्थापित देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें।
  • इसमें आवाहन, आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधित द्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, दक्षिणा आदि शामिल हैं।
  • इसके प्रसाद वितरण कर पूजन संपन्न करें।
  • माता त्रिपुर भैरवी के नाम पर दान करें और गरीबों की मदद करें।


त्रिपुर भैरवी माता की पूजा करने से क्या होता है? 


  • त्रिपुर भैरवी की उपासना से सभी बंधन दूर हो जाते हैं। यह बंदीछोड़ माता है।
  • इन्हें षोडशी भी कहा जाता है। षोडशी को श्रीविद्या भी माना जाता है।
  • यह साधक को युक्ति और मुक्ति दोनों ही प्रदान करती है।
  • इसकी साधना से षोडश कला निपुण सन्तान की प्राप्ति होती है।
  • जल, थल और नभ में उसका वर्चस्व कायम होता है।


त्रिपुर भैरवी पूजा के लाभ


  • आजीविका और व्यापार में इतनी वृद्धि होती है कि व्यक्ति संसार भर में धन श्रेष्ठ यानि सर्वाधिक धनी बनकर सुख भोग करता है।
  • जीवन में काम, सौभाग्य और शारीरिक सुख के साथ आरोग्य सिद्धि के लिए इस देवी की आराधना की जाती है।
  • इसकी साधना से धन सम्पदा की प्राप्ति होती है, मनोवांछित वर या कन्या से विवाह होता है। षोडशी का भक्त कभी दुखी नहीं रहता है।

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