Teja Dashmi 2024: तेजाजी महाराज ने वचन के लिए दे दी थी अपनी जान, जानिए क्या है भगवान शिव के अवतार से जु़ड़ी कहानी

प्राचीन समय में राजस्थान की धरती पर एक वीर योद्धा ने जन्म लिया, जिसकी बहादुरी और न्यायप्रियता की कहानी आज भी हमें प्रेरित करती है। तेजाजी महाराज राजस्थान के ऐसे वीर योद्धा और वचन निभाने वाले राजा हुए जिनकी याद में भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को तेजा दशमी का पर्व मनाया जाता है। इस साल यह पर्व 13 सितंबर को मनाया जाएगा। राजस्थान, मध्यप्रदेश समेत कई राज्यों में इस दिन को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन तेजाजी महाराज के मंदिरों में मेला लगता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार वीर तेजाजी भगवान शिव के अवतार थे। वे जिस घोड़ी पर सवार रहते थे उसका नाम लीलण था। उनके साथ में अस्त्र भाला, तलवार और धनुष-बाण रहते थे। इनके चबूतरे को तेजाजी का थान और भवन को तेजाजी का मंदिर कहते हैं। इनके लोक गीतों को तेजा गायन कहा जाता है। किवदंतियों के मुताबिक तेजाजी महाराज की बहादुरी और त्याग की भावना ने उन्हें एक लोकनायक बना दिया था. लेकिन राजस्थान जैसे राज्य में इतनी गहरी छाप छोड़ने वाले तेजाजी आखिर कौन थे, क्या वे सच में भगवान शिव के अवतार थे या फिर ये केवल एक मिथक है। तेजा जी से जुड़ी हर एक जानकारी जानेंगे भक्तवत्सल के इस लेख में....


तेजा दशमी से जुड़ी पौराणिक कथा


तेजा दशमी के बारे में कुछ और जानकारी देने से पहले इनकी कथा या कहानी को जानना बहुत जरूरी है। तेजाजी महाराज के जन्म को लेकर कई कथाएं हैं। एक प्रचलित कथा के अनुसार, प्राचीन समय में राजस्थान की धरती पर एक वीर योद्धा ने जन्म लिया, जिनका नाम था तेजा। वीर तेजाजी महाराज का जन्म नागौर जिले के खरनाल गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम तहाड़ा था, जो खरनाल के रहने वाले थे। तेजाजी की माता का नाम रामकंवरी था। तेजाजी के माता और पिता भगवान शिव के उपासक थे। माना जाता है कि माता राम कंवरी को नाग-देवता के आशीर्वाद से पुत्र की प्राप्ति हुई थी। जन्म के समय तेजाजी की आभा इतनी मजबूत थी कि उन्हें तेजा बाबा नाम दिया गया था। वे बचपन से ही साहसी थे और जोखिम भरे काम करने से भी नहीं डरते थे। एक बार वे अपने साथी के साथ बहन को लेने उसके ससुराल गए। उस दिन भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि थी। बहन के ससुराल जाने पर तेजा को पता चलता है कि मेणा नामक डाकू अपने साथियों के साथ बहन की ससुराल की सारी गायों को लूटकर ले गया है।

 

तेजाजी अपने साथी के साथ जंगल में मेणा डाकू से गायों को छुड़ाने के लिए चल दिए। इस दौरान रास्ते में एक बांबी के पास भाषक नाम का सांप घोड़े के सामने आ गया और तेजा को डंसने के लिए आगे बढ़ने लगा। सांप को देखकर तेजाजी ने उससे बात की और ये वचन दिया कि अपनी बहन की गायों को छुड़ाने के बाद मैं वापस यहीं आऊंगा, तब मुझे डंस लेना। ये सुनकर सांप ने रास्ता छोड़ दिया। तेजाजी डाकू से अपनी बहन की गायों को आजाद करवाने के चक्कर में डाकूओं से युद्ध करते हैं और बुरी तरह घायल और लहुलुहान होकर सांप के पास जाते हैं। तेजा को घायल अवस्था में देखकर नाग कहता है कि तुम्हारा पूरा शरीर खून से अपवित्र हो गया है। मैं डंक कहां मारुं? तब तेजाजी उसे अपनी जीभ पर काटने के लिए कहते हैं। इसके बाद वो सांप अपने असली रूप में यानी "नाग देवता" के रूप में प्रकट हुआ और उसने तेजा जी को ये आशीर्वाद दिया कि यदि कोई सर्पदंश से पीड़ित व्यक्ति तुम्हारे नाम का धागा बांधेगा तो उस पर जहर का असर नहीं होगा। उसके बाद नाग तेजाजी की जीभ पर डंक मार देता है और उनकी मृत्यू हो जाती है। इसके बाद से हर साल भाद्रपद शुक्ल दशमी को तेजाजी के मंदिरों में श्रृद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। जिन लोगों ने सर्पदंश से बचने के लिए तेजाजी के नाम का धागा बांधा होता है, वे मंदिर में पहुंचकर धागा खोलते हैं। 


तेजाजी महाराज 2024 की पूजा कैसे करें? 


1. सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ-सुथरे कपड़े पहनें।

2. तेजाजी महाराज की मूर्ति या चित्र को स्थापित कर उनकी पूजा करें।

3. तेजाजी महाराज को फूल, फल,  चूरमा, कच्चा दूध और नारियल चढ़ाएं।

5. तेजाजी महाराज के नाम का धागा बांधें और सर्पदंश से रक्षा के लिए प्रार्थना करें।

6. पूजा के बाद तेजाजी महाराज की आरती करें और प्रसाद वितरित करें।

7. तेजा दशमी के दिन, व्रत रखें और शाम को ही भोजन करें।

8. तेजाजी महाराज के मंदिर में जाकर पूजा करें और उनका आशीर्वाद लें।

9. तेजा दशमी के दिन सर्पदंश से पीड़ित व्यक्तियों की सेवा करें और उन्हें तेजाजी महाराज के नाम का धागा बांधने में मदद करें।

10. तेजा दशमी के दिन तेजाजी महाराज की याद में अन्न दान और वस्त्र दान करें।


तेजा दशमी का महत्व 


1. वचनबद्धता और साहस की प्रतीक: तेजाजी महाराज की कहानी हमें वचनबद्धता और साहस के मूल्यों को सिखाती है।

2. सर्पदंश से रक्षा: तेजाजी महाराज के नाम का धागा बांधने से सर्पदंश से रक्षा होती है।

3. न्याय और समाज सेवा: तेजाजी महाराज की कहानी हमें न्याय और समाज सेवा के मूल्यों को सिखाती है।

4. राजस्थानी संस्कृति का प्रतीक: तेजा दशमी राजस्थानी संस्कृति और धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

5. लोकनायक की याद: तेजा दशमी तेजाजी महाराज की याद में मनाया जाता है, जो एक लोकनायक थे और उनकी कहानी आज भी हमें प्रेरित करती है।

6. धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व: तेजा दशमी का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है, क्योंकि यह पर्व राजस्थानी समाज में विशेष महत्व रखता है।


तेजा दशमी कैसे और कहां मनाई जाएगी?


तेजा दशमी राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में धूमधाम से मनाई जाती है। इस दौरान भक्त तेजाजी महाराज के स्थान या मंदिरों में जाकर उन्हें चूरमा, कच्चा दूध और नारियल चढ़ाते हैं। उनसे आशीर्वाद मांगते हैं और अच्छे भाग्य के लिए प्रार्थना करते हैं। 


तेजा दशमी पर लगता है मेला 


भाद्रपद शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को तेजा दशमी कहा जाता है। हर साल तेजा दशमी के दिन लोक देवता वीर तेजाजी महाराज का मेला आयोजित होता है। राजस्थान के विभिन्न शहरों और गांवों में तेजाजी के थान और मंदिरों में यह मेला आयोजन होता है। तेजाजी की जन्मस्थली खरनाल गांव में लाखों लोग मेले में शामिल होते हैं। अजमेर जिले के ब्यावर और सुरसुरा में भी भव्य मेलों का आयोजन होता है। लोग गाजे-बाजे के साथ झंडे और नारियल, चूरमे का प्रसाद चढ़ाते हैं। 


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बिल्वाष्टकम् (Bilvashtakam)

त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रियायुधं, त्रिजन्मपापसंहारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥1॥

अनंत पूजा और विश्वकर्मा पूजा का विशेष संगम

17 सितंबर को एक खास दिन है, जब अनंत चतुर्दशी व्रत, अनंत पूजा और बाबा विश्वकर्मा पूजा एक साथ मनाए जाएंगे। यह दिन भगवान विष्णु और भगवान विश्वकर्मा की विशेष आराधना का अवसर है। इन दोनों पूजा विधियों के धार्मिक महत्व और अनुष्ठानों पर आइए विस्तार से नजर डालते हैं

श्री विष्णु दशावतार स्तोत्रम् (Shri Vishnu Dashavatar Stotram)

प्रलयपयोधिजले धृतवानसि वेदम्।

बिन पानी के नाव (Bin Pani Ke Naav)

बिन पानी के नाव खे रही है,
माँ नसीब से ज्यादा दे रही है ॥

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