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सुंदरकांड के नाम के पीछे का कारण

सुंदरकांड के नाम के पीछे का कारण

Sunderkand 2025: जानिए क्यों पड़ा सुंदरकांड का नाम सुंदरकांड, इसमें माता सीता से मिले थे भगवान हनुमान 

गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरितमानस के सुन्दरकाण्ड में श्री हनुमान जी की भक्ति, शक्ति, साहस, सेवा और समर्पण की अनुपम कथा का वर्णन किया गया है। रामचरितमानस का पंचम कांड अर्थात सुंदरकांड न केवल कथा की दृष्टि से अत्यंत प्रेरणादायक माना गया है बल्कि इसका आध्यात्मिक रूप भी अत्यंत प्रभावशाली है।

सुन्दर पर्वत के निकट मिले थे मां सीता और भक्त हनुमान

हनुमान जी ने माता सीता से अशोक वाटिका में जो भेंट की थी और वह जगह लंका में ‘सुंदर पर्वत’ के करीब स्थित था। इसलिए इस कांड को ‘सुंदरकांड’ कहा जाता है। मगर रामचरितमानस या वाल्मीकि रामायण में ‘सुंदर पर्वत’ का स्पष्ट वर्णन नहीं मिलता है, फिर भी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यह नामकरण इसी भेंट स्थल के कारण माना जाता है।

सुंदरकांड में आठ बार किया गया है ‘सुंदर’ कथा का प्रयोग 

रामचरितमानस के पांचवे कांड को ‘सुंदर’ इसलिए कहा गया क्योंकि इसमें वर्णित हर दृश्य और कथा सौंदर्य से भरपूर है। कथावाचक रसराज जी महाराज के अनुसार, सुंदरकांड में 'सुंदर' कथा का प्रयोग आठ बार किया गया है, जो इस कांड के भावनात्मक और आध्यात्मिक विशेषताओं को दर्शाता है। आइये उनमें से कुछ को जानें : 

  • हनुमान जी ने समुद्र पर छलांग लगाई थी, जो केवल एक शारीरिक पराक्रम नहीं, बल्कि विश्वास, समर्पण और शक्ति का सुंदर भी प्रतीक है।
  • सुंदरकांड में उस दृश्य का वर्णन है जब श्री हनुमान ने भगवान राम की अँगूठी सीता जी को दी थी। यह दृश्य भावनात्मक रूप से अत्यंत कोमल है।
  • सीता जी के अपने आंसुओं और वेदना से भरा हुआ संदेश भगवान राम भेजा था, जो मानवीय संवेदनाओं का सुंदर दृश्य है।
  • सुन्दरकाण्ड में हनुमान जी का लंका में प्रवेश, राक्षसों से युद्ध, और उनका अद्भुत पराक्रम ये सभी  घटनाएँ अत्यंत सुंदर ढंग से प्रस्तुत की गई हैं।
  • हनुमान जी की माता सीता के प्रति भक्ति और सम्मान, सुंदरकांड को विशेष भावनात्मक गहराई प्रदान करता है।

सुंदरकांड में बताया गया है भक्ति और साहस का महत्त्व  

सुंदरकांड में हनुमान जी की भक्ति, सेवा का भाव, आत्मबल और निर्भयता का वर्णन किया गया है तथा प्रभु राम पर उनका अटूट विश्वास भी दर्शाया गया है। इसलिए यह कांड हमें सिखाता है कि यदि भक्ति और साहस हो, तो असंभव भी संभव हो सकता है। 

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