Shabari Jayanti Katha: माता शबरी की भक्ति और मोक्ष की कहानी, जानें शबरी से मिलने उनकी कुटिया क्यों गए थे भगवान राम?
फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को शबरी जयंती मनाई जाती है, जो भगवान राम और उनकी भक्त शबरी के बीच के पवित्र बंधन का प्रतीक है। शबरी की श्रीराम के प्रति अटूट श्रद्धा और भक्ति ने उन्हें मोक्ष प्राप्ति का वरदान दिलाया। इस दिन भगवान राम ने शबरी के चखे हुए बेर खाए थे, जो उनके आपसी समर्पण और प्रेम का प्रतीक है। शबरी जयंती इसी पवित्र बंधन का जश्न मनाती है।
शबरी जयंती 2025 कब है?
पंचांग के अनुसार, फाल्गुन महीने की कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को शबरी जयंती का पर्व मनाया जाता है। वर्ष 2025 में यह तिथि 19 फरवरी को प्रातः 7:32 पर प्रारंभ होगी और 20 फरवरी को प्रातः 9:58 तक रहेगी। उदया तिथि के अनुसार, इस वर्ष शबरी जयंती 20 फरवरी को मनाई जाएगी और इसी दिन व्रत भी रखा जाएगा।
कौन थीं माता शबरी?
माता शबरी का वास्तविक नाम श्रमणा था, जो भील समुदाय की शबर जाति से संबंध रखती थीं। उनके पिता भीलों के राजा थे। उन्होंने माता शबरी के विवाह के लिए एक भील कुमार का चयन किया था। लेकिन उस समय विवाह में जानवरों की बलि देने का नियम था, जिसे शबरी ने स्वीकार नहीं किया। माता शबरी ने जानवरों को बचाने के लिए विवाह करने से इनकार कर दिया, जो उनकी दयालुता और साहस का प्रतीक है। इसलिए वह विवाह से पूर्व अपने घर से चली गईं और जंगल में ऋषियों के लिए लकड़ी और खाने के लिए फल तोड़कर लाती थीं।
ऋषियों ने शबरी का त्याग क्यों किया?
सभी ऋषि शबरी से अत्यंत प्रसन्न थे, लेकिन जब उन्हें यह पता चला कि शबरी अछूत हैं, तो उन्होंने उनका त्याग कर दिया।
ऋषि मतंग ने कही थी यह बात
अंत में ऋषि मतंग ने उन्हें अपनाया और उन्हें शिक्षा दी, जिससे शबरी की भक्ति और मजबूत हुई। ऋषि मतंग ने शबरी को बताया कि एक दिन भगवान राम उनके पास आएंगे और उन्हें इस संसार से मुक्त कर देंगे।
भगवान राम क्यों आए शबरी की कुटिया
इसके बाद शबरी ने अपनी कुटिया को प्रतिदिन फूलों से सजाया और मीठे फल चुनकर भगवान राम की प्रतीक्षा की। वह नहीं चाहती थीं कि भगवान राम के मुख में खट्टे बेर जाएं। वर्षों तक प्रतीक्षा करते हुए जब शबरी वृद्ध हो चुकी थीं, तब भगवान राम माता सीता की खोज करते हुए उस वन में पहुंचे, जहां शबरी की कुटिया थी।
भगवान राम और शबरी की भेंट
जब भगवान राम तालाब से जल लेने के लिए आगे बढ़े तो ऋषियों ने उन्हें रोक दिया और कहा कि इस तालाब से एक अछूत स्त्री जल लेकर जाती है। ऋषियों ने इस तालाब का त्याग कर दिया था, लेकिन भगवान राम ने ऋषियों की बात को नकार दिया और कहा कि कोई भी स्त्री अछूत नहीं हो सकती क्योंकि वह एक मानव को जन्म देती है। भगवान राम की इस बात से ऋषियों को अपनी भूल का बोध हुआ। भगवान राम ने शबरी की कुटिया का पता पूछा और शबरी के पास पहुंच गए।
भगवान राम का आशीर्वाद
जब भगवान राम शबरी की कुटिया में पहुंचे तो शबरी ने उन्हें पहचान लिया और उनके चरणों में नत हो गईं। शबरी ने भगवान राम और लक्ष्मण को अपनी कुटिया में ले गईं और उनकी सेवा करने लगीं। शबरी ने भगवान राम को अपने द्वारा चखे गए बेर अर्पित किए, जो उनके प्रेम और स्नेह का प्रतीक थे। लक्ष्मण ने भगवान राम से कहा कि ये जूठे बेर हैं, लेकिन भगवान राम ने कहा कि ये बेर जूठे नहीं हैं, बल्कि माता शबरी के प्रेम और स्नेह की मिठास से भरे हुए हैं। इस पवित्र मिलन के बाद शबरी ने भगवान राम का आशीर्वाद ग्रहण किया और अपना शरीर त्याग दिया। भगवान राम ने शबरी को मोक्ष प्रदान किया।
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