संकष्टी चतुर्थी भगवान गणेश को समर्पित एक महत्वपूर्ण व्रत है, जिसे संकटों को दूर करने और सफलता प्राप्त करने के लिए रखा जाता है। भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी 2025 विशेष रूप से चैत्र मास में मनाई जाती है और इस दिन गणपति बप्पा की विधिपूर्वक पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यता है कि इस व्रत को करने से व्यक्ति के सभी कष्ट दूर होते हैं और उसे सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।इस दिन भगवान गणेश और चंद्रमा की विशेष पूजा की जाती है। शास्त्रों में बताया गया है कि जो भक्त इस व्रत को विधिपूर्वक करते हैं, उनके जीवन में आने वाली बाधाएं समाप्त हो जाती हैं और उन्हें अपार सफलता प्राप्त होती है। इस लेख में हम जानेंगे भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी 2025 की तिथि, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और व्रत से जुड़े नियम।
हिंदू पंचांग के अनुसार, भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी 2025 की तिथि और शुभ मुहूर्त इस प्रकार हैं:
इस दिन भगवान गणेश की पूजा विशेष विधि से की जाती है। संकष्टी चतुर्थी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद निम्नलिखित विधि से पूजा करें:
पूजा के लिए इन सामग्रियों का उपयोग करें – गणेश मूर्ति, दीपक, चंदन, अक्षत (चावल), लाल पुष्प, दूर्वा घास, नारियल, तिल-गुड़ के लड्डू, मोदक, धूप, कर्पूर, गंगाजल, मौली, सुपारी, फल और पंचामृत।
व्रत के लाभ:
व्रत के नियम:
ग्रहों के राजकुमार माने जाने वाले ग्रह बुध सौर मंडल के सबसे छोटे ग्रह हैं, ये सूर्य के सबसे निकटतम ग्रह हैं। इनकी सूर्य से दूरी लगभग ५८० लाख किलोमीटर हैं तथा इनका क्षेत्र ७४८ लाख किलोमीटर। नवग्रहों में राजकुमार माने गए ग्रह बुध हरे रंग के बताए गए हैं तथा ज्योतिष में इनका सम्बन्ध बुद्धि, समृद्धि, शांति, व्यापार, अकाउंट, गणित, त्वचा और ज्योतिष से बताया गया है।
देवाधिदेव महादेव की पूजा दो स्वरूप में होती है। एक जो आपने देखा होगा कि वे कैलाश पर्वत पर समाधि की मुद्रा में या माता पार्वती के साथ बैठे हुए हैं और दूसरा शिवलिंग के रूप में जिसकी पूजा हम सभी करते है।
हिन्दू धर्म में हम जिन जिन देवताओं की पूजा करते हैं उन सब की अपनी एक अलग छवि और आभा मंडल है जो भक्तों का मन मोह लेती है। लेकिन भोलेपन के स्वामी भगवान भोलेनाथ शिव इस मामले में भी विरले ही हैं।
सृष्टि के सृजन कर्ता के रूप में सनातन धर्म के अनुसार ब्रह्मा जी का स्थान सभी देवों में सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश में से सृष्टि के सृजन और संतुलन का कार्य ब्रह्म देव के हाथों में है।