नवीनतम लेख
सनातन धर्म के लोगों की भगवान कृष्ण से खास आस्था जुड़ी है। कृष्ण जी को भगवान विष्णु का ही एक अवतार माना जाता है, जो धैर्य, करुणा और प्रेम के प्रतीक हैं। देवी रुक्मिणी श्री कृष्ण की मुख्य पत्नी थी, जिन्हें धन की देवी लक्ष्मी का अवतार माना जाता है। रुक्मिणी अष्टमी का दिन देवी रुक्मिणी को समर्पित है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन द्वापर युग में देवी रुक्मिणी का जन्म हुआ था। वे विदर्भ नरेश भीष्मक की पुत्री थीं।
रुक्मिणी अष्टमी पर श्री कृष्ण और देवी रुक्मिणी की साथ में पूजा करने से साधक को विशेष फल की प्राप्ति होती है। साथ ही व्यक्ति को धन-वैभव, ऐश्वर्य, सुख-संपत्ति तथा संतान की प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है। कहा जाता है कि रुक्मिणी अष्टमी के दिन व्रत रख कर देवी रुक्मिणी की पूजा अर्चना करने से मां लक्ष्मी मेहरबान होती हैं। ऐसे में आइये जानते है रुक्मिणी अष्टमी पर किस विधि से देवी की पूजा करना चाहिए।
पंचांग के अनुसार, इस साल पौष माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि का प्रारंभ 22 दिसंबर को दोपहर 02 बजकर 31 मिनट से हो रहा है, जो अगले दिन 23 दिसंबर को शाम 05 बजकर 07 मिनट तक जारी रहेगी। ऐसे में इस साल 22 दिसंबर को रुक्मिणी अष्टमी का पर्व मनाया जाएगा और उदया तिथि के अनुसार रुक्मिणी अष्टमी का व्रत 23 दिसंबर को रखा जाएगा।
अभिजित मुहूर्त- दोपहर 12 बजे से 12:41 बजे तक।
गोधूलि मुहूर्त- शाम 5:27 बजे से 5:55 बजे तक।
पूजा सामग्री:
पूजा विधि:
मंत्र:
दान:
'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।