Ram Shabri Samwad: जब बरसों के इंतजार के बाद शबरी की कुटिया में पहुंचे श्रीराम, जानें उनके बीच का संवाद
जब बरसों के इंतजार के बाद श्रीराम शबरी की कुटिया में पहुंचे, तो उनके बीच एक अनोखा संवाद हुआ। यह संवाद न केवल भगवान राम और शबरी के बीच के प्रेम और समर्पण को दर्शाता है, बल्कि हमें भगवान के प्रति अपने जीवन में समर्पण और भक्ति की महत्ता को समझने का अवसर प्रदान करता है। भगवान राम और शबरी का संवाद तो बहुत बड़ा है, जिसकी कुछ बातें इस लेख में हम आपके साथ साझा करेंगे।
शबरी जयंती 2025 कब है?
पंचांग के अनुसार, फाल्गुन महीने की कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को शबरी जयंती का पर्व मनाया जाता है। वर्ष 2025 में यह तिथि 19 फरवरी को प्रातः 7:32 पर प्रारंभ होगी और 20 फरवरी को प्रातः 9:58 तक रहेगी। उदया तिथि के अनुसार, इस वर्ष शबरी जयंती 20 फरवरी को मनाई जाएगी और इसी दिन व्रत भी रखा जाएगा।
भगवान राम और शबरी के बीच का संवाद
जब श्रीराम शबरी के आश्रम में पहुंचे, तो शबरी का मन प्रसन्न हो गया। उन्होंने श्रीराम और लक्ष्मण को अपने घर में देखा और उनके चरणों में लिपट गईं। शबरी प्रेम में मग्न होकर बार-बार चरण-कमलों में सिर नवा रही थीं। फिर उन्होंने जल लेकर आदरपूर्वक दोनों भाइयों के चरण धोए और उन्हें सुंदर आसनों पर बैठाया। शबरी ने रसीले और स्वादिष्ट कंद, मूल और फल लाकर श्रीराम को अर्पित किए। श्रीराम ने प्रेम सहित उन्हें ग्रहण किया और बार-बार उनकी प्रशंसा की।
शबरी ने हाथ जोड़कर कहा, "हे प्रभु, मैं किस प्रकार आपकी स्तुति करूं? मैं नीच जाति की और अत्यंत मूढ़बुद्धि हूं। मैं आपकी कृपा की पात्र नहीं हूं, लेकिन आपकी दया से मुझे आपके दर्शन हुए हैं।"
श्रीराम ने शबरी से कहा, "हे भामिनि! मैं तुम्हें अपनी नवधा भक्ति के बारे में बताऊंगा। ये नवधा भक्ति हैं -
- संतों का सत्संग
- मेरी कथाओं में प्रेम
- अभिमान रहित होकर गुरु के चरण-कमलों की सेवा
- कपट त्याग कर मेरे गुणों का गान
- मेरे (राम) मंत्र का जाप और मुझमें दृढ़ विश्वास
- इंद्रियों का नियंत्रण, शील, सांसारिक कार्यों से वैराग्य और निरंतर संत धर्म का पालन
- जगत को समभाव से मुझमें समाहित देखना और संतों को मुझसे भी श्रेष्ठ मानना
- जो कुछ मिले उसमें संतोष करना और स्वप्न में भी दूसरों के दोष न देखना
- सरलता और निष्कपट व्यवहार, हृदय में मेरा विश्वास, और किसी भी स्थिति में न हर्ष न दैन्य का अनुभव करना
श्रीराम ने कहा, "हे भामिनि! मेरे दर्शन का परम अनुपम फल यह है कि जीव अपने सहज स्वरूप को प्राप्त हो जाता है। अब यदि तुम गजगामिनी जानकी की कुछ खबर जानती हो तो बताओ।"
शबरी ने कहा, "हे रघुनाथ! आप पंपा नामक सरोवर जाइए, वहां आपकी सुग्रीव से मित्रता होगी। हे देव! हे रघुवीर! वह सब वृत्तांत बताएगा।"
श्रीराम ने शबरी की बात सुनी और उनके चरणों में सिर नवाया। शबरी ने प्रेम सहित भगवान की कथा सुनाई और अपने जीवन का अंतिम समय भगवान के चरणों में बिताया। शबरी ने अपने शरीर का योगाग्नि से त्याग किया और उस दुर्लभ हरिपद में लीन हो गईं, जहां से लौटना नहीं होता।
श्रीराम ने उस वन को भी छोड़ दिया और आगे बढ़े। दोनों भाई अतुलनीय बलशाली और मनुष्यों में सिंह के समान थे। प्रभु विरही की भांति विषाद करते हुए अनेक कथाएं और संवाद करते हुए आगे बढ़े।
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