पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, पापमोचनी एकादशी पर भगवान विष्णु की आराधना और व्रत करने से व्यक्ति सभी पापों से मुक्त हो जाता है और मोक्ष की प्राप्ति करता है। यह व्रत विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभकारी माना गया है, जो अपने पाप और बुरे कर्मों से निजात पाना चाहते हैं साथ ही अपने जीवन में सुख-शांति और समृद्धि बनाए रखना चाहते हैं।
हर वर्ष पापमोचनी एकादशी फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि पर मनाई जाती है। इस वर्ष एकादशी तिथि का प्रारंभ 25 मार्च, प्रातः 05 बजकर 05 मिनट से होगा और 26 मार्च, देर रात 03 बजकर 45 मिनट पर अंत होगा। इस दिन व्रत और पूजा का विशेष महत्व है।
द्वादशी तिथि के दिन सुबह स्नान करके भगवान विष्णु की पूजा करें। ब्राह्मण या गरीब व्यक्ति को भोजन करा कर, दान दें और फ़िर व्रत का पारण करें। उस दिन भी सात्विक भोजन ही ग्रहण करें।
प्रयागराज महाकुंभ की शुरुआत हो चुकी है। 13 जनवरी को पहले दिन बड़ी संख्या में साधु संतों और श्रद्धालुओं ने पौष पूर्णिमा का स्नान किया। वहीं आज पहले शाही स्नान के मौके पर भी बड़ी संख्या में साधु संत स्नान करने पहुंचे। क्रम के मुताबिक साधु संतों ने स्नान किया। हालांकि इस दौरान लोगों के मुख्य आकर्षण का केंद्र नागा साधु रहे।
भारतीय संस्कृति और अध्यात्म के सबसे बड़ा पर्व महाकुंभ की शुरुआत हो चुकी है। दुनिया भर से करोड़ों श्रद्धालु और साधु-संत प्रयाग के संगम तट पर डुबकी लगाने के लिए पहुंच रहे हैं। हालांकि इस आयोजन का एक मुख्य आकर्षण नागा साधुओं और साध्वियों की उपस्थिति है, जिनकी जीवनशैली हमेशा चर्चा का विषय रहती है।
मकर संक्राति पर 14 जनवरी को महाकुंभ का पहला अमृत (शाही) स्नान हुआ। इस दौरान 3.5 करोड़ श्रद्धालुओं ने संगम में आस्था की डुबकी लगाई। शाही स्नान सुबह 6 बजे शुरू हुआ और शाम 6 बजे खत्म हुआ। इस दौरान 13 अखाड़े के साधु संतों ने संगम में डुबकी लगाई।
हिंदू धर्म में खरमास का विशेष महत्व है। यह वह अवधि होती है जब सूर्य देव धनु राशि में प्रवेश करते हैं और गुरु ग्रह के साथ युति बनाते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, इस अवधि में सूर्य और गुरु दोनों ही प्रभावहीन हो जाते हैं जिसके कारण शुभ कार्यों पर रोक लग जाती है।