नरक चतुर्दशी 2024: कब है नरक चतुर्दशी? जानें तिथि, पूजा विधि, कथा, महत्व

नरक चतुर्दशी 2024 में इस दिन मनाई जाएगी, जानें तिथि, पूजा विधि, कथा, महत्व


नरक चतुर्दशी, रूप चौदस या छोटी दिवाली एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है जो दिवाली के एक दिन पहले मनाया जाता है। यह त्योहार मृत्यु के देवता यमराज को समर्पित है। इसी दिन नरकासुर नामक राक्षस को भगवान श्रीकृष्ण ने काली और सत्यभामा की सहायता से नरक पहुंचाया था। इसी लिए इसे नरक चतुर्दशी भी कहा जाता है।

इस दिन धार्मिक अनुष्ठान और उत्सव मनाने की परंपरा है। मान्यता है कि ब्रह्म मुहूर्त में भगवान कृष्ण ने राक्षस का वध करने के बाद तेल से स्नान किया था। यही कारण है कि इस दिन भोर से पहले तेल स्नान करना बहुत भाग्यशाली माना जाता है। नरक चतुर्दशी को काली चौदस, रूप चौदस, भूत चतुर्दशी और नरक निवारण चतुर्दशी भी कहा जाता है।


नरक चतुर्दशी 2024


विक्रम संवत के हिंदू कैलेंडर में नरक चतुर्दशी कार्तिक महीने की कृष्ण पक्ष की चौदस को आती है। दिवाली के 5 दिनों के त्योहार में यह दूसरा दिन होता है। साल 2024 में नरक चतुर्दशी 31 अक्टूबर, गुरुवार को है। 


नरक चतुर्दशी या रूप चतुर्दशी का महत्व 


  • इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करने का महत्व है। इस दिन अभ्यंग स्नान किया जाता है जो रूप और सौंदर्य देने वाला होता है।
  • नरक चतुर्दशी प्रकाश या ईश्वरीय अच्छाई की शक्ति द्वारा अंधकार या बुराई के विनाश का प्रतीक है।
  • भारत के ग्रामीण इलाकों में इसे फसल उत्सव की तरह मनाया जाता है।
  • इस दिन कई जगहों पर हनुमान की पूजा कर उन्हें चावल, गुड़, घी और तिल और नारियल चढ़ाया जाता है। पूजन सामग्री में प्रयुक्त चावल ताजा फसल से लिया जाता है।
  • इस दिन यम पूजा, कृष्ण पूजा और काली पूजा करने से नरक से मुक्ति मिलती है।
  • नरक चतुर्दशी के दिन दीये के प्रकाश से अंधकार को दूर करने की परंपरा भी है इसलिए इसे छोटी दीपावली भी कहते हैं।


देशभर में ऐसे मनाई जाती है नरक चतुर्दशी 


जहां भारत के ज्यादातर हिस्सों में नरक चतुर्दशी दिवाली के पहले मनाई जाती है। वहीं तमिलनाडु, कर्नाटक और गोवा में नरक चतुर्दशी दिवाली के दिन ही मनाई जाती है। दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में इसे दीपावली भोगी के नाम से मनाया जाता है।

पौराणिक कथाओं में पहला वर्णन यही है कि भगवान कृष्ण द्वारा इस दिन नरकासुर का वध किया था। इसमें देवी काली द्वारा भी उनके सहयोग का उल्लेख है। इसलिए इस दिन को काली चौदस भी कहा जाता है। यह महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान में बहुत प्रचलित है। इन्हीं मान्यताओं के अनुसार नरक चतुर्दशी मनाई जाती है। गोवा में इस दिन बुराई के प्रतीक नरकासुर के पुतले जलाए जाते हैं। 


बंगाल में कहा जाता है भूत चतुर्दशी


पश्चिम बंगाल में इस दिन को भूत चतुर्दशी भी कहा जाता है। यहां मान्यता है कि इस दिन दिवंगत लोगों की आत्माएं धरती पर अपने प्रियजनों से मिलने आती हैं। तमिलनाडु में इस दिन धन की देवी लक्ष्मी की पूजा होती है। इस दिन यहां एक विशेष आहार प्रतिबंध होता है या उपवास भी रखते हैं जिसे 'नोम्बू' कहा जाता है।


नरक चतुर्दशी को किया जाता है अभ्यंग स्नान


उबटन और तेल को लगाकर स्नान करना ही अभ्यंग स्नान कहलाता है। नरक चतुर्दशी से पहले कार्तिक कृष्ण पक्ष की अहोई अष्टमी के दिन एक लोटे में पानी भरकर रखा जाता है। नरक चतुर्दशी के दिन इस लोटे का जल नहाने के पानी में मिलाकर स्नान किया जाता है। ऐसा करने से नरक के भय से मुक्ति मिलती है। इसे प्रात:काल सूर्य उदय से पहले करने का महत्व है। इस दौरान तिल के तेल से शरीर की मालिश की जाती है। उसके बाद अपामार्ग यानि चिरचिरा को सिर के ऊपर से चारों ओर 3 बार घुमाया जाता है और उसको जल में मिलाकर उससे स्नान किया जाता है। 

यदि ऐसा न कर सके तो मात्र चंदन का लेप लगाकर सूख जाने के बाद तिल एवं तेल से स्नान कर सकते हैं। स्नान के बाद सूर्यदेव को अर्घ्य दिया जाता है जो सौंदर्य और ऐश्वर्य देने वाले हैं। इसके बाद दक्षिण दिशा में मुख करके हाथ जोड़कर यमराज को प्रणाम करें।


अभ्यंग स्नान का महत्व 


  • अभ्यंग स्नान से सौंदर्य और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है और सभी संकटों से मुक्ति मिलती है।
  • नरकासुर के वध के बाद श्रीकृष्ण ने तेल से स्नान करके शरीर और मन को शुद्ध किया था। तभी से यह प्रथा शुरू हुई।
  • नरक चतुर्दशी का पूजन अकाल मृत्यु से मुक्ति, सौंदर्य और स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए किया जाता है।

........................................................................................................
आरती श्री वैष्णो देवी मां की (Aarti of Shri Vaishno Devi Maa Ki)

जय वैष्णवी माता,मैया जय वैष्णवी माता।
हाथ जोड़ तेरे आगे,आरती मैं गाता॥

करवा चौथ तिथि: पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और महत्व

हर साल अपने सुहाग की सलामती के लिए महिलाएं करवा चौथ का व्रत रखती हैं। ये व्रत निर्जला रखा जाता है, जिसकी शुरुआत सुबह सरगी खाकर की जाती है।

एकादशी माता की आरती (Ekadashi Mata Ki Aarti)

ॐ जय एकादशी माता, मैया जय एकादशी माता।
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता॥

भागीरथ-नंदिनी जी की आरती (Bhagirath-Nandini Ji Ki Aarti)

जय जय भगीरथ-नंदिनी, मुनि-चय चकोर-चन्दिनी,
नर-नाग-बिबुध-वंदिनी, जय जह्नुबालिका।

डिसक्लेमर

'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।

यह भी जाने

संबंधित लेख