हिंदू धर्म में अमावस्या तिथि को अत्यंत शुभ और पवित्र माना गया है। वर्षभर में 12 अमावस्या तिथियां आती हैं, लेकिन माघ मास में पड़ने वाली मौनी अमावस्या को विशेष आध्यात्मिक महत्ता प्राप्त है। यह दिन स्नान, दान, और पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। मौनी अमावस्या पर गंगा स्नान, दान, और मौन व्रत का पालन करने से अद्भुत पुण्य फल की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं, इस दिन मौन साधना का महत्व और इससे जुड़े नियम।
पंचांग के अनुसार:
मौनी अमावस्या का दिन पितरों की तृप्ति और मोक्ष प्राप्ति के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।
इस वर्ष महाकुंभ के दूसरे अमृत स्नान का संयोग मौनी अमावस्या पर बन रहा है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार, सागर मंथन के दौरान अमृत कलश से कुछ बूंदें प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक, और उज्जैन में गिरी थीं। इन स्थलों पर स्नान करने से अमृत स्नान का पुण्य प्राप्त होता है। जो भक्त इन पवित्र स्थलों तक नहीं पहुंच सकते, वे घर में गंगाजल मिलाकर स्नान कर सकते हैं।
इस दिन मौन व्रत रखने से आत्मिक शुद्धि और मानसिक शांति प्राप्त होती है।
1) गंगा स्नान से आरंभ:
प्रातःकाल गंगा या किसी पवित्र नदी में स्नान करना अत्यंत शुभ माना गया है।
2) ध्यान और जप:
स्नान के बाद भगवान शिव या विष्णु का ध्यान करें और उनका नाम जपें।
3) पूरा दिन मौन व्रत:
इस दिन अधिक से अधिक समय तक मौन रहें और अनावश्यक बातचीत से बचें।
4) संध्या के बाद मौन समाप्त:
तिथि समाप्त होने के बाद मौन व्रत खोलें और भगवान राम या अपने इष्ट देवता का स्मरण करें।
Disclaimer:
यह लेख धार्मिक मान्यताओं और लोक विश्वासों पर आधारित है। पाठकों से निवेदन है कि इसे अपनी श्रद्धा और आस्था के अनुसार अपनाएं।
गंगा के किनारे, सूरज की पहली किरणों के साथ, धुंधली सुबह में एक दृश्य उभरता है। यह किसी भी सामान्य दिन से बिल्कुल अलग प्रतीत होता है। राख में लिपटे नग्न शरीर, जटाजूट और आंखों में एक अनोखी चमक। यह दृश्य महाकुंभ मेले की भव्यता को दर्शाता है। नागा साधुओं के चार प्रकारों में से ही एक प्रयाग के नागा साधु होते हैं।
हिंदू धर्म में मंगलवार का दिन हनुमान जी को समर्पित होता है। इस दिन रामजी के साथ हनुमान जी की भी पूजा की जाती है। साथ ही मंगल देव की उपासना की जाती है। मंगल ग्रह ऊर्जा के कारक हैं। इन्हें ग्रहों का सेनापति भी कहा जाता है।
जो लोग अखाड़ों के बारे में नहीं जानते, उन्हें यह जानकर हैरानी हो सकती है कि नागा साधु कई प्रकार के होते हैं। खूनी नागा, खिचड़िया नागा, बर्फानी नागा और नागा। नागाओं को लेकर तमाम तरह की कहानियां भी प्रचलित हैं, जो श्रद्धालुओं को काफ़ी हैरान करते हैं।
भारत की आध्यात्मिक संस्कृति में नागा साधु एक विशेष स्थान रखते हैं। आपने कुंभ मेले में इन्हें शाही स्नान करते, युद्ध कला का प्रदर्शन करते और परंपरागत तरीके से जीवन जीते हुए जरूर देखा होगा। इनकी जड़ें भारतीय सनातन धर्म में गहराई तक फैली हुई हैं। ये अनुशासन, संयम और साधना के लिए विख्यात हैं।