मसान होली की पौराणिक कथा

जब शिव ने भूत-प्रेतों संग खेली थी होली, जानें मसान होली की पौराणिक कथा


मसान होली दो दिवसीय त्योहार माना जाता है। मसान होली चिता की राख और गुलाल से खेली जाती है। काशी के मणिकर्णिका घाट पर साधु-संत इकट्ठा होकर शिव भजन गाते हैं और नाच-गाकर जीवन-मरण का जश्न मनाते हैं और साथ ही श्मशान की राख को एक-दूसरे पर मलते हैं और हवा में उड़ाते हैं। इस दौरान पूरी काशी शिवमय हो जाती है और हर तरफ हर-हर महादेव का नाद सुनाई देता है।

पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव ने विवाह के बाद पहली बार मसान होली खेली थी। यहीं से इसकी शुरुआत हुई थी। आइए जानते हैं मसान होली से जुड़ी पौराणिक कथा।

भगवान शिव और पार्वती के विवाह में शामिल हुए खास मेहमान


भगवान शिव को तपस्वी माना जाता है, लेकिन देवी पार्वती की कठोर तपस्या, आस्था और समर्पण को देखकर भगवान शिव ने देवी पार्वती से विवाह का निमंत्रण स्वीकार कर लिया। भगवान शिव ने अपने विवाह में भूत, यक्ष, गंधर्व और आत्माओं को भी आमंत्रित किया था।

भगवान शिव के बारे में कहा जाता है कि वे अपने भक्तों में कभी भेदभाव नहीं करते। अगर कोई उन्हें पूरी श्रद्धा और प्रेम से याद करता है, तो भगवान शिव उसे आश्रय अवश्य देते हैं। इसी वजह से स्नेहवश भगवान शिव ने अपने विवाह में सभी देवताओं, दानवों, भूत-प्रेतों आदि को शामिल किया।

ये सभी लोग शिव-पार्वती के विवाह में खास मेहमान माने जाते हैं। शिव का रौद्र रूप देखकर ये सभी डर गए, लेकिन जब पार्वती ने शिव से सौम्य रूप में आकर इस विवाह को संपन्न कराने को कहा, तो शिव ने एक सुंदर राजकुमार का रूप धारण कर लिया। इसके बाद भगवान शिव और पार्वती का विवाह हो गया।

विवाह के बाद भगवान शिव और पार्वती काशी घूमने आए थे


विवाह के बाद भगवान शिव और पार्वती पहली बार काशी घूमने आए थे। इस दिन को रंगभरी एकादशी माना जाता है। रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शिव ने माता पार्वती को गुलाल लगाकर होली मनाई थी। शिव और पार्वती की इस होली को देखकर शिव गण दूर से ही खुशी से देखते रहे।

अगले दिन भोलेनाथ के भक्तों, जिनमें भूत, यक्ष, पिशाच और अघोरी साधु शामिल थे, ने भगवान शिव से उनके साथ भी होली खेलने का आग्रह किया। भगवान शिव जानते थे कि शिव के ये खास भक्त जीवन के रंगों से दूर रहते हैं, इसलिए उनकी बातों को ध्यान में रखते हुए भगवान शिव ने श्मशान में पड़ी राख को हवा में उड़ा दिया। इसके बाद सभी खास शिव गण मिलकर श्मशान की राख को भगवान शिव पर लगाकर होली खेलने लगे।

माता पार्वती दूर खड़ी होकर शिव और उनके भक्तों को देखकर मुस्कुरा रही थीं। तभी से माना जाता है कि काशी में श्मशान की राख से होली खेलने की परंपरा शुरू हुई।

मसान होली का क्या महत्व है?


श्मशान घाट पर होली खेलना मृत्यु का जश्न मनाने जैसा माना जाता है। मसान की होली इस बात का प्रतीक है कि जब व्यक्ति अपने डर पर काबू पा लेता है और मृत्यु के डर को पीछे छोड़ देता है, तो वह जीवन का भरपूर आनंद लेता है।
वहीं चिता की राख को अंतिम सत्य माना जाता है। इससे हमें यह सीख मिलती है कि व्यक्ति चाहे जितना भी अहंकार, लालच आदि बुराइयों से घिरा हो, आखिरकार उसकी जीवन यात्रा श्मशान घाट पर ही समाप्त होगी।
एक अन्य कथा के अनुसार भगवान शिव ने यमराज को भी पराजित किया था, इसलिए मसान की होली का महत्व मृत्यु पर विजय पाने के लिए कहीं अधिक है।

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श्री गंगा चालीसा (Shri Ganga Chalisa)

जय जय जय जग पावनी, जयति देवसरि गंग ।
जय शिव जटा निवासिनी, अनुपम तुंग तरंग ॥

जिसकी लागी लगन भोलेनाथ से (Jiski Lagi Lagan Bholenath Se)

जिसकी लागी लगन भोलेनाथ से,
वो डरता नहीं किसी बात से,

होलिका दहन का शुभ मुहूर्त

हिंदू कैलेंडर के अनुसार होली का त्योहार फाल्गुन माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन से पहले होलिका दहन किया जाता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।

उगादी त्योहार क्यों मनाया जाता है

उगादि दक्षिण भारत में एक महत्वपूर्ण नववर्ष उत्सव होता है। "उगादि" शब्द संस्कृत के "युग" अर्थात् "युग की शुरुआत" और "आदि" अर्थात् "आरंभ" से मिलकर बना है, जिसका अर्थ होता है नए युग का आरंभ।

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