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हिंदू धर्म में मकर संक्रांति को सूर्यदेव की उपासना और शनिदोष से मुक्ति के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है। इस दिन सूर्यदेव अपने पुत्र शनिदेव के घर आते हैं। वैदिक ज्योतिष के अनुसार, साल में 12 संक्रांतियां होती हैं। क्योंकि, सूर्य हर महीने राशि बदलते हैं। जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तो मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है। इस दिन नदी में स्नान और सूर्यदेव की पूजा और अर्घ्य का विशेष महत्व होता है। तो आइए, इस आर्टिकल में सूर्य को अर्घ्य देने की विधि और नियम को विस्तार से जानते हैं।
सूर्यदेव की पूजा के अलावा मकर संक्रांति पर तिल और उसके दान का खास महत्व माना जाता है। तिल का संबंध शनिदेव से है। इसलिए, इसका दान शनिदोष को कम करता है। इस दिन सूर्यदेव शनि की राशि मकर में एक माह के लिए प्रवेश करते हैं। जिससे शनि का अशुभ प्रभाव कम हो जाता है। काले तिल के दान से शनिदोष से मुक्ति मिलती ही है। साथ ही सूर्यदेव की कृपा भी प्राप्त होती है।
मकर संक्रांति के शुभ दिन आप आदित्य ह्रदय स्तोत्र का पाठ करें। इसके अलावा श्रीनारायण कवच और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना भी बेहद शुभ माना जाता है। वहीं, पूजा के बाद तिल, उड़द दाल, चावल, खिचड़ी, गुड़, गन्ना और सब्जी का दान करना लाभकारी होता है। भविष्य पुराण की माने तो मकर संक्रांति पर सूर्यदेव की उपासना करने से व्यक्ति बुद्धिमान, मेधावी और समृद्धशाली बनता है।
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