Parshuram Mahabharat Story: भगवान परशुराम के 3 शिष्य बने थे कौरवों के सेनापति, जिन्होंने पांडवों को दी थी कड़ी चुनौती
भगवान परशुराम, जो भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाते हैं, वे न केवल धर्म के रक्षक थे बल्कि एक महान युद्ध आचार्य भी थे। उन्होंने कई महान योद्धाओं को शस्त्र और युद्ध की विद्या का ज्ञान दिया था, जिनमें से तीन शिष्य ऐसे थे जिन्होंने महाभारत के ऐतिहासिक युद्ध में कौरवों की सेना की डोर संभाली थी। ये तीन शिष्य भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य और कर्ण थे।
परशुराम ने भीष्म पितामह को शस्त्रों के ज्ञान के साथ-साथ सिखाया था धर्म का महत्व
भीष्म हस्तिनापुर के राजकुमार और शंतनु के पुत्र थे, जिनका मूल नाम देवव्रत था। वे बढे होकर परशुराम के शिष्य बने और उन्होंने उनसे दिव्य शस्त्रों की शिक्षा प्राप्त की। परशुराम ने उन्हें शस्त्रों के ज्ञान के साथ युद्ध की नीति और धर्म का महत्व भी सिखाया।
महाभारत के युद्ध में भीष्म पितामह पहले दस दिनों तक कौरवों के सेनापति रहे और उनकी उपस्थिति से पांडवों की सेना को बहुत नुक्सान हुआ। उन्होंने भीम, अर्जुन और अन्य महारथियों को कई बार चुनौती दी और उनकी रणनीति से युद्ध का संतुलन कौरवों के पक्ष में बना रहा। हालांकि, अपनी प्रतिज्ञा और धर्म के पालन के कारण वे अंत में अर्जुन के हाथों शरशैय्या पर लेट गए।
भगवान परशुराम ने द्रोणाचार्य को दिया था संपूर्ण शस्त्र विद्या का दान
द्रोणाचार्य एक महान ब्राह्मण योद्धा थे, जिन्हें भगवान परशुराम से दिव्य शस्त्रों की शिक्षा मिली थी। ऐसा कहा जाता है कि परशुराम ने उन्हें संपूर्ण शस्त्र विद्या का दान दिया था, क्योंकि द्रोणाचार्य ने ज्ञान के लिए अपना सब कुछ त्याग कर दिया था।
महाभारत युद्ध में भीष्म के बाद द्रोणाचार्य कौरवों के सेनापति बने थे और उन्होंने युद्ध में अपनी रणनीति से कौरवों के पक्ष को मजबूत किया था। उन्होंने युद्ध में अभिमन्यु जैसे महान योद्धा को हराया था। धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार, उनकी मृत्यु की योजना युधिष्ठिर ने ‘अश्वत्थामा मारा गया’ जैसे शब्दों का प्रयोग करके किया था, क्योंकि द्रोणाचार्य केवल अपने पुत्र के मृत्यु का समाचार सुनकर ही शस्त्र त्याग सकते थे।
कर्ण को मानते थे भगवान परशुराम अपना सर्वश्रेष्ठ शिष्य
कर्ण सूर्यपुत्र और कुंती के ज्येष्ठ पुत्र थे, वे अपनी जाति छिपाकर भगवान परशुराम के शिष्य बने थे फिर उन्होंने परशुराम से दिव्य शस्त्रों और युद्ध की उच्च विद्या सीखी। परशुराम कर्ण को अपना सर्वश्रेष्ठ शिष्य मानते थे, लेकिन जब उन्हें यह पता चला कि कर्ण ब्राह्मण नहीं है, तो वे अत्यन्त क्रोधित हुए। कर्ण को क्रोध में शाप दे दिया कि वह आवश्यकता समय आने पर अपनी सीखी हुई विद्या भूल जाएगा।
उन्होंने अर्जुन और पांडवों को कड़ी टक्कर दी, लेकिन परशुराम के शाप के कारण समय आने पर वे अपनी विद्या भूल गए, जिससे उनकी मृत्यु हो गई।
हिंदू धर्म में अमावस्या तिथि को अत्यंत शुभ और पवित्र माना गया है। वर्षभर में 12 अमावस्या तिथियां आती हैं, लेकिन माघ मास में पड़ने वाली मौनी अमावस्या को विशेष आध्यात्मिक महत्ता प्राप्त है।
माघ मास में आने वाली अमावस्या को माघी अमावस्या भी कहा जाता है। मौनी अमावस्या के दिन स्नान और दान का विशेष महत्व है। इस दिन तीर्थराज प्रयागराज में त्रिवेणी संगम में स्नान के लिए भारी संख्या में भक्त आते हैं।
हर साल माघ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मौनी अमावस्या के रूप में मनाया जाता है। यह दिन हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। इस दिन श्रद्धालु पवित्र नदियों में स्नान करते हैं और दान करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन किए गए पुण्य कर्मों का फल कई गुना बढ़ जाता है।
माघ मास की अमावस्या, जिसे मौनी अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण दिन है। इस दिन को लेकर कई तरह की धार्मिक मान्यताएं और परंपराएं जुड़ी हुई हैं। माना जाता है कि इस दिन पितृ देवता धरती पर आते हैं और अपने वंशजों के द्वारा किए गए पिंडदान से प्रसन्न होते हैं।