7 अक्टूबर को पड़ रही है उपांग ललिता पंचमी 2024, कौन से हैं पूजा के शुभ मूहूर्त, क्या पूजा विधि और व्रत के लाभ

उपांग ललिता पंचमी एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है, जो पंचांग के अनुसार आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। यह त्योहार देवी ललिता की उपासना के लिए विशेष है, जो 10 महाविद्याओं में से एक हैं। उन्हें 'षोडशी' और 'त्रिपुर सुंदरी' के नाम से भी जाना जाता है। खास बात यह है कि ये त्योहार शारदीय नवरात्रि के बीच में पड़ता है। इस दिन माता के सम्मान में भक्त उपवास रखते हैं और इस अनुष्ठान को 'उपांग ललिता व्रत' कहा जाता है। 


मान्यताओं के अनुसार देवी की पूजा करने और ललिता पंचमी पर व्रत रखने से सुख, ज्ञान और धन की प्राप्ति होती है। इस साल यानी 2024 में उपांग ललिता पंचमी 7 अक्टूबर, सोमवार को मनाई जाएगी। तो चलिए जानते हैं उपांग ललिता व्रत का महत्व, इस दिन का पंचांग और पूजा विधि के बारे में…


ललिता पंचमी 2024 का पंचांग 


पंचमी तिथि का समय - 07 अक्टूबर, सुबह 9:48 बजे से 08 अक्टूबर, सुबह 11:18 बजे तक

सूर्योदय - 07 अक्टूबर, 6:24 बजे 

सूर्यास्त - 07 अक्टूबर, शाम 6:04 बजे


ललिता पंचमी देवी ने भंडा राक्षस का वध किया था 


हिंदू परंपरा में देवी ललिता की पूजा एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जो देवी की महिमा और शक्ति को मनाने के लिए विशेष रूप से मनाया जाता है। ललिता पंचमी का धार्मिक महत्व हिंदू धर्मग्रंथों जैसे कालिका पुराण में वर्णित है। मान्यताओं के अनुसार इस दिन देवी ललिता ने भंडा नामक राक्षस को हराया था, जो कामदेव की राख से बना था। इसलिए ललिता पंचमी को देवी ललिता के प्रकट होने या 'जयंती' के रूप में मनाया जाता है। 


देवी ललिता देवी दुर्गा का अवतार हैं और 'पंच महाभूतों' (पृथ्वी, वायु, अग्नि, जल और अंतरिक्ष के रूप में दर्शाए गए पांच तत्वों) से जुड़ी हैं। भारत के दक्षिणी क्षेत्र, गुजरात और महाराष्ट्र राज्यों में ललिता पंचम बहुत लोकप्रिय है। इन राज्यों में, देवी ललिता की पूजा देवी चंडी की तरह ही 'ललिता सहस्रनाम', 'ललितोपाख्यान' और 'ललिता त्रिशती' जैसे पूजा अनुष्ठानों के साथ की जाती है। इसलिए ललिता पंचमी का त्योहार पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।


ललिता पंचमी पूजा कैसे करें

 

  • ललिता पंचमी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत हो जाएं। 


  • इसके बाद मां ललिता का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें।


  • एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर माता ललिता का चित्र या मूर्ति स्थापित करें। 


  • सबसे पहले प्रथम पूज्य देव गणेश जी, भगवान शिव और माता पार्वती, स्कंदमाता की पूजा करें। 


  • इसके बाद मां ललिता की विधि-विधान पूर्वक पूजा करें। 


  • इसके बाद मां ललिता की कृपा प्राप्ति के लिए उनके समक्ष शुद्ध घी का दीपक जलाएं। 


इसके बाद-


'ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नमः'  मंत्र का जाप करें।


 

इस दिन उपवास कष्टों से मुक्ति मिलेगी 


उपांग ललिता पंचमी 2024 का व्रत 7 अक्टूबर को रखा जाएगा। बता दें कि ललिता पंचमी के दिन भक्त पूरे मन से देवी की पूजा करते हैं और उनके सम्मान में कठोर व्रत रखते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन देवी के दर्शन मात्र से जीवन में आने वाले कष्टों और परेशानियों से मुक्ति मिलती है। पूजा से प्रसन्न होकर देवी अपने भक्तों को संतोष और खुशी का आशीर्वाद देती हैं। इस दिन भक्तगण षोडशोपचार विधि से मां ललिता का पूजन करते है। इस दिन मां ललिता के साथ साथ स्कंद माता और शिव शंकर की भी शास्त्र अनुसार पूजा की जाती है। बता दें कि मां ललिता माता पार्वती का ही एक रूप है।  


उपांग ललिता पंचमी व्रत के लाभ 


ललिता पंचमी व्रत करने से देवी ललिता की कृपा प्राप्त होती है, जिससे जीवन में सुख और समृद्धि आती है।

इस व्रत से आध्यात्मिक ज्ञान और शक्ति प्राप्त होती है, जिससे व्यक्ति अपने जीवन को सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ा सकता है।

ललिता पंचमी व्रत करने से जीवन में आने वाले कष्टों और परेशानियों से मुक्ति मिलती है।

इस व्रत से स्वास्थ्य और दीर्घायु की प्राप्ति होती है, जिससे व्यक्ति अपने जीवन को स्वस्थ और खुशहाल बना सकता है।

ललिता पंचमी व्रत करने से मनोवांछित फल प्राप्त होता है, जिससे व्यक्ति अपने जीवन के लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है।

ललिता पंचमी व्रत करने से देवी दुर्गा की कृपा भी प्राप्त होती है, जिससे जीवन में सुख और समृद्धि आती है।

इस व्रत से पापों की क्षमा होती है, जिससे व्यक्ति अपने जीवन को पवित्र और शुद्ध बना सकता है।

ललिता पंचमी व्रत करने से मानसिक शांति प्राप्त होती है, जिससे व्यक्ति अपने जीवन को शांत और सुखी बना सकता है।


ललिता देवी का स्वरूप 


त्रिपुर सुंदरी या माता ललिता के चार हाथ हैं। मैया इन चारों हाथों में पाश, अंकुश, धनुष और बाण धारण किए हुए हैं। देवी भागवत के अनुसार, मैया इस रूप में वर देने के लिए सदा-सर्वदा तत्पर रहती हैं। मैया इस रूप में सौम्य और दया करुणा से भक्तों के दुख दूर करती हैं।


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