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यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥
अर्थात, श्रीमद्भगवद भगवत गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं ‘जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होगी, तब-तब मैं जन्म लूंगा।’
कंस के अत्याचारों को खत्म करने सालों पहले मथुरा में भगवान श्री कृष्ण ने जन्म लिया था। अब हम भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिन को हर साल जन्माष्टमी के त्योहार के रूप में मनाते हैं। भक्त वत्सल के इस लेख में हम आपको बताएंगे जन्माष्टमी क्यों मनाई जाती है, कैसे मनाई जाती है, इसकी पूजा विधि क्या है और साथ ही जानेंगे भगवान श्रीकृष्ण के जन्म से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें।
भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन श्री कृष्ण का जन्म हुआ था। इसी दिन को हर साल जन्माष्टमी के पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस बार जन्माष्टमी 26 अगस्त सोमवार को पड़ रही है। श्री कृष्ण का जन्म मथुरा की कारागार में रोहिणी नक्षत्र में हुआ था।
हमारे देश में जन्माष्टमी बड़ी ही धूमधाम से मनाई जाती है। यह गोपाल के माखन प्रेम और माखन चोरी की लीलाओं के प्रतीक स्वरूप मनाया जाने वाला उत्सव है। भगवान कृष्ण की कृपा के लिए लोग इस दिन व्रत रखते हैं और विधि-विधान से पूजा-अर्चना करते हैं। कई जगहों पर दही हांडी उत्सव भी मनाया जाता है। आधी रात को भगवान के जन्मदिन के मौके पर सभी लोग मंदिरों में इकट्ठा होकर विशेष पूजा करते हैं।
श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दिन भगवान की पूजा करने से विशेष लाभ प्राप्त होता है। इस दिन सुबह उठकर स्नान कर अपने घर के मंदिर को अच्छी तरह से सजाएं। हर प्रकार के पूजन सामग्री एकत्रित करें। इसमें कुमकुम, चावल, हल्दी, रोली, अबीर, गुलाल, अगरबत्ती, घी का दीपक, फल, फूल और प्रसाद की सामग्री जरूर हो। अगर घर में बाल गोपाल की प्रतिमा है तो उन्हें स्नान करवाएं और अच्छे वस्त्र पहनकर पूजन सामग्री से उनकी पूजा करें। भजन कीर्तन करते हुए भगवान का ध्यान करें। इसी तरह भक्ति भाव से समय व्यतीत करते हुए रात में भगवान का जन्मोत्सव मनाएं। यदि संभव हो तो उपवास भी रख सकते हैं।
जन्माष्टमी पर श्री कृष्ण भगवान को कई तरह के प्रसाद चढ़ाए जाते हैं। उनके भक्त उनके लिए छप्पन भोग तक लगाते हैं। लेकिन फिर भी माखन चोर कन्हैया को तो सबसे अधिक माखन ही प्रिय है। ऐसे में भगवान के जन्माष्टमी के प्रसाद में माखन मिश्री का विशेष महत्व है। माखन मिश्री के बिना भगवान श्रीकृष्ण के भोग को अधूरा ही माना जाएगा।
द्वापर युग में मथुरा के राजा उग्रसेन का एक बेटा कंस और एक बेटी देवकी थी। कंस अपने ही पिता से राजसिंहासन छीन खुद राजा बन गया। समय बीता तो देवकी का विवाह वासुदेव के साथ तय कर दिया गया। कंस विवाह के बाद हंसी-खुशी रथ से अपनी बहन देवकी की विदाई कर रहा होता है। तभी अचानक आकाशवाणी होती है कि देवकी का 8वां पुत्र ही कंस का वध करेगा।
आकाशवाणी सुन कंस की रूह कांप गई। उनसे देवकी और उसके पति वासुदेव को कारागार में बंद कर दिया। कंस ने एक के बाद एक देवकी और वासुदेव की सात संतानों को मार डाला। फिर आई भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि की आधी रात। ठीक 12 बजे कारागार में भगवान श्री विष्णु प्रकट हुए। उन्होंने कहा कि वे देवकी के गर्भ में 8वें पुत्र के रूप में जन्म लेंगे। साथ ही बताया कि वे उन्हें गोकुल में नंद बाबा के यहां छोड़ आएं और वहां अभी-अभी जन्मी कन्या को लाकर कंस को सौंप दें।
वासुदेव ने ऐसा ही किया। श्री कृष्ण को गोकुल छोड़ आए और वहां से लाए कन्या को कंस को सौंप दिया। जैसे ही कंस ने उस कन्या को मारने के लिए हाथ उठाया तो वह गायब हो गई। ठीक बाद आकाशवाणी हुई कि कंस जिसे तू मारना चाहता है वो तो गोकुल पहुंच चुका है। बाद में श्री कृष्ण ने कंस का वध किया।
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