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सनातन धर्म में तुलसी का खास महत्व है। तुलसी को लक्ष्मी का ही रूप माना जाता है। इसलिए, बिना तुलसी के श्रीहरि की पूजा पूरी नहीं मानी जाती। सभी घरों में सुबह-शाम तुलसी पूजा की जाती है। महिलाएं तुलसी के पौधे में जल चढ़ाने के साथ आरती करती हैं। मगर खरमास के दौरान तुलसी पूजा के दौरान कई बातों का ख्याल रखना जरूरी है। कुछ ही दिनों में खरमास शुरू होने वाला है। लोगों में यह संशय बना रहता है कि खरमास के दिनों में तुलसी पूजन करना चाहिए या नहीं। तो चलिए इस बारे में विस्तार से जानते हैं।
खरमास के दिनों में नकारात्मक प्रभाव ज्यादा होता है। इसलिए, ऐसी मान्यता है कि रोज तुलसी पूजा करने से घर से नकारात्मक शक्तियां दूर होती हैं। चूंकि, खरमास के दिनों में शुभ कार्य नहीं किए जाते, इसलिए लोगों के मन में तुलसी पूजा को लेकर संशय बना रहता है। लेकिन आपको बता दें कि इस माह में पूजा पाठ में रुकावट नहीं रहती है। ऐसे में आप हर रोज तुलसी मे जल अर्पण कर अपने घर के नकारात्मक प्रभाव को दूर कर सकते हैं। तुलसी में जल देने से माता लक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं और घर में सुख-समृद्धि भी बढ़ती है।
खरमास में तुलसी पूजा तो की जा सकती है। परंतु, तुलसी के पौधे को स्पर्श करना शुभ नहीं माना जाता। मान्यताओं के अनुसार ऐसा करने से तुलसी का पौधा दूषित हो जाता है। इसलिए, खरमास के महीने में तुलसी पूजन के दौरान इसे हाथ ना लगाएं और ना ही इसके पत्ते तोड़ें। खरमास में तुलसी पर सिंदूर या कोई सुहाग से संबंधित सामग्री भी नहीं चढ़ानी चाहिए। इसके साथ ही तुलसी पर दूर्वा भी अर्पित नहीं करें। ऐसा माना जाता है कि इससे मां लक्ष्मी रुष्ट हो जाती हैं। खरमास में तुलसी को दीपदान, जल दान और धूपदान दिया जा सकता है, लेकिन अन्य किसी प्रकार की पूजा करना शुभ नहीं माना गया है। क्योंकि, इसका विपरीत असर भी पड़ सकता है।
दरअसल, खरमास के दौरान तुलसी के पौधे को स्पर्श करना शुभ नहीं होता है। मान्यताओं के अनुसार ऐसा करने से तुलसी का पौधा दूषित हो जाता है। इसलिए, खरमास के महीने में तुलसी पूजन के दौरान इसे हाथ नहीं लगाना चाहिए और ना ही इसके पत्ते तोड़ने चाहिए।
खरमास में शाम को नियमित तौर पर तुलसी पर दीपक जलाएं और एकादशी, मंगलवार और रविवार के दिन भूलकर भी तुलसी का स्पर्श ना करें। इसके अलावा तुलसी पूजन के दौरान निम्नलिखित मंत्र का भी वाचन भी कर सकते हैं।
॥ अथ मंगलाष्टक मंत्र ॥ॐ श्री मत्पंकजविष्टरो हरिहरौ, वायुमर्हेन्द्रोऽनलः।चन्द्रो भास्कर वित्तपाल वरुण, प्रताधिपादिग्रहाः ।प्रद्यम्नो नलकूबरौ सुरगजः, चिन्तामणिः कौस्तुभः,स्वामी शक्तिधरश्च लांगलधरः, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥1गंगा गोमतिगोपतिगर्णपतिः, गोविन्दगोवधर्नौ,गीता गोमयगोरजौ गिरिसुता, गंगाधरो गौतमः ।गायत्री गरुडो गदाधरगया, गम्भीरगोदावरी,गन्धवर्ग्रहगोपगोकुलधराः, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥2नेत्राणां त्रितयं महत्पशुपतेः अग्नेस्तु पादत्रयं,तत्तद्विष्णुपदत्रयं त्रिभुवने, ख्यातं च रामत्रयम् ।गंगावाहपथत्रयं सुविमलं, वेदत्रयं ब्राह्मणम्,संध्यानां त्रितयं द्विजैरभिमतं, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥3बाल्मीकिः सनकः सनन्दनमुनिः, व्यासोवसिष्ठो भृगुः,जाबालिजर्मदग्निरत्रिजनकौ, गर्गोऽ गिरा गौतमः ।मान्धाता भरतो नृपश्च सगरो, धन्यो दिलीपो नलः,पुण्यो धमर्सुतो ययातिनहुषौ, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥4गौरी श्रीकुलदेवता च सुभगा, कद्रूसुपणार्शिवाः,सावित्री च सरस्वती च सुरभिः, सत्यव्रतारुन्धती ।स्वाहा जाम्बवती च रुक्मभगिनी, दुःस्वप्नविध्वंसिनी,वेला चाम्बुनिधेः समीनमकरा, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥5गंगा सिन्धु सरस्वती च यमुना, गोदावरी नमर्दा,कावेरी सरयू महेन्द्रतनया, चमर्ण्वती वेदिका ।शिप्रा वेत्रवती महासुरनदी, ख्याता च या गण्डकी,पूर्णाः पुण्यजलैः समुद्रसहिताः, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥6लक्ष्मीः कौस्तुभपारिजातकसुरा, धन्वन्तरिश्चन्द्रमा,गावः कामदुघाः सुरेश्वरगजो, रम्भादिदेवांगनाः ।अश्वः सप्तमुखः सुधा हरिधनुः, शंखो विषं चाम्बुधे,रतनानीति चतुदर्श प्रतिदिनं, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥7ब्रह्मा वेदपतिः शिवः पशुपतिः, सूयोर् ग्रहाणां पतिः,शुक्रो देवपतिनर्लो नरपतिः, स्कन्दश्च सेनापतिः ।विष्णुयर्ज्ञपतियर्मः पितृपतिः, तारापतिश्चन्द्रमा,इत्येते पतयस्सुपणर्सहिताः, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥8॥ इति मंगलाष्टक समपूर्ण ॥
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