कार्तिगाई दीपम क्यों मनाते हैं

कैसे शुरु हुई कार्तिगाई दीपम त्योहार मनाने की परंपरा, जानिए क्या है इसके पीछे की कथा? 


कार्तिगाई दीपम पर्व प्रमुख रूप से तमिलनाडु, श्रीलंका समेत विश्व के कई तमिल बहुल देशों में मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन भगवान शिव, माता पार्वती और उनके पुत्र कार्तिकेय की पूजा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है और घर में सुख-समृद्धि आती है। इस दिन दीपक जलाने का खास महत्व है। इस दिन तमिलनाडु के तिरुवन्नामलाई अरुणाचलेश्वर स्वामी मंदिर में कार्तिगाई दीपम दीपम उत्सव का भव्य आयोजन होता है जो बह्मोत्सव के नाम से प्रसिद्ध है। तो आइए, इस आर्टिकल में जानते हैं कि कार्तिगाई दीपम का त्योहार मनाने की परंपरा कैसे शुरू हुई। 


कार्तिगई दीपम व्रत कथा


पौराणिक कथा के अनुसार, जब सृष्टि का आरंभ हुआ तो ब्रह्म का भेद बताने के लिए भगवान शिव ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए। ब्रह्मा और विष्णु जो अपने आप को एक दूसरे से श्रेष्ठ साबित करने के लिए संघर्ष कर रहे थे उनके सामने आकाशवाणी हुई कि जो इस लिंग के आदि या अंत का पता करेगा वही दोनों में श्रेष्ठ माना जाएगा। 


तब भगवान विष्णु वाराह रूप में शिवलिंग के आदि का पता करने के लिए भूमि खोदकर पाताल की ओर जाने लगे। जबकि, ब्रह्मा हंस के रूप में अंत का पता लगाने आकाश में उड़ चले। हालांकि, वर्षों बीत जाने पर भी दोनों आदि अंत का पता नहीं कर पाए। 


भगवान विष्णु हार मानकर लौट आए लेकिन ब्रह्माजी ने भगवान शिव के शीश के गिरकर आने वाले केतकी के फूल से पूछा कि शिवलिंग का अंत कहां है। केतकी ने बताया कि वह युगों से नीचे गिरता चला आ रहा है लेकिन अंत का पता नहीं चला है। ब्रह्माजी को लगा कि वह पराजित हो जाएंगे तो वह लौटकर आ गए और झूठ बोल दिया कि उन्होंने शिवलिंग के अंत का पता कर लिया है। 


ब्रह्माजी के झूठ से ज्योर्तिलिंग ने प्रचंड रूप धारण कर लिया जिससे सृष्टि में हाहाकर मच गया। इसके बाद देवताओं द्वारा क्षमा याचना करने पर यह ज्योति तिरुमल्लई पर्वत पर अरुणाचलेश्व लिंग के रूप में स्थापित हो गई।  


मासिक कार्तिगाई की अन्य कहानी


एक अन्य कथा का संबंध कुमार कार्तिकेय और मां दुर्गा से है जिनके कारण कार्तिगई दीपम का त्योहार मनाया जाता है। इस कथा के अनुसार कुमार कार्तिकेय को 6 कृतिकाओं ने 6 अलग-अलग बालकों के रूप में पाला। इस कथा के अनुसार 6 देवियां ने जिन 6 बालकों का पालन-पोषण किया था उसे देवी पार्वती ने मिलाकर एक देव उत्पन्न किया। उन्हें ही कार्तिकेय कहा जाता है। यह भगवान शिव के पुत्र थे। इसी कारण ये पर्व भगवान कार्तिकेय को समर्पित है। 


जानिए कार्तिगाई दीपम त्योहार का महत्व


कार्तिगाई दीपम का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। यह पर्व दक्षिण भारत में ज्यादा प्रचलित है। इस दिन लोग अपने घरों और आस-पास दीपक जलाते हैं। मान्यता है कि इस दिन पूजा करने और शाम के समय दीपक जलाने से परिवार पर भगवान कार्तिकेय की कृपा बनी रहती है। अनजाने में किए गए पापों से मुक्ति मिलती है। इसके अलावा शाम को दीपक जलाने से घर से वास्तु दोष दूर होता है।


........................................................................................................
शीतला अष्टमी 2025 तिथि और शुभ मुहूर्त

शीतला अष्टमी, जिसे बसोड़ा भी कहते हैं, माता शीतला को समर्पित एक पवित्र पर्व है। यह होली के बाद कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। कुछ स्थानों पर इसे होली के आठ दिन बाद पहले सोमवार या शुक्रवार को भी मनाते हैं।

मेरी रसना से प्रभु तेरा नाम निकले (Meri Rasna Se Prabhu Tera Naam Nikle)

मेरी रसना से प्रभु तेरा नाम निकले,
हर घड़ी हर पल राम राम निकले ॥

है सुखी मेरा परिवार, माँ तेरे कारण (Hai Sukhi Mera Parivaar Maa Tere Karan)

है सुखी मेरा परिवार,
माँ तेरे कारण,

महाकाल नाम जपिये, झूठा झमेला (Mahakal Naam Japiye Jutha Jhamela)

महाकाल नाम जपिये,
झूठा झमेला झूठा झमेला,

डिसक्लेमर

'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।

यह भी जाने