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दीपोत्सव यानी दिवाली के ठीक 10वें दिन एक और पर्व मनाया जाता है, जो हमें सिखाता है कि कैसे हमेशा बुराई पर अच्छाई की विजय होती है। राम और कृष्ण दोनों ही भगवान विष्णु के अवतार हैं। ऐसे में दोनों के जीवन से हमें प्रेरणा मिलती है कि सच्चाई और न्याय की जीत होती है। जिस तरह भगवान राम ने रावण का वध किया था। वैसे ही भगवान कृष्ण ने भी दुराचारी कंस का वध कर इस दुनिया को उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाई थी। इसी उपलक्ष्य में हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को कंस वध का त्योहार मनाया जाता है। इस साल यानी 2024 में कंस वध 11 नवंबर को मनाया जाएगा। चलिए जानते हैं कंस वध के महत्व, इससे जुड़ी कथा और इस दिन किए जाने वाले अनुष्ठान के बारे में।
हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। साल 2024 में दशमी तिथि की शुरूआत 10 नवम्बर को रात 09 बजकर 01 मिनट पर हो रही है। जो 11 नवंबर को शाम 06 बजकर 46 मिनट तक जारी रहेगी। ऐसे में कंस वध 11 नवंबर को मनाया जाएगा।
कंस वध का त्योहार अधर्म पर धर्म की जीत का प्रतीक है। कंस एक अत्याचारी राजा था जो अपनी प्रजा पर अत्याचार करता था। भगवान कृष्ण ने कंस का वध करके मथुरा की प्रजा को उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाई थी।
इसलिए, इस दिन का विशेष महत्व है।
कंस वध का त्योहार पूरे भारत में धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन, लोग मंदिरों में जाते हैं और भगवान कृष्ण की पूजा करते हैं। कई जगहों पर तो कंस वध की लीला भी आयोजित की जाती है। इस लीला में, भगवान कृष्ण और कंस के बीच हुए युद्ध का नाटकीय रूप से प्रदर्शन किया जाता है। साथ ही कई स्थानों पर रावण की तरह कंस का पुतला बनाकर उसे जलाया जाता है।
1. भगवान कृष्ण की पूजा करें।
2. इस दिन व्रत भी रख सकते हैं।
3. भगवान कृष्ण की आरती करें।
4. अगर संभव हो तो भगवान कृष्ण के जन्मस्थान मथुरा जाकर पूजा करें।
5. कंस वध की कथा सुनें।
1. कंस वध की पूर्व संध्या पर, भक्त राधारानी और भगवान श्रीकृष्ण की उपासना करते हैं। देवताओं को खुश करने के लिए, कई तरह की मिठाईयां और कई अन्य व्यंजन तैयार किए जाते हैं।
2. कंस की एक मूर्ति तैयार की जाती है और बाद में भक्त इसे बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में जलाते हैं। यह त्यौहार ये भी दर्शाता है कि बुराई कम समय के लिए रहती है और अंततः हमेशा सच्चाई और भलाई की जीत होती है।
3. कंस वध की पूर्व संध्या पर, एक विशाल शोभायात्रा निकाली जाती है, जहां सैकड़ों भक्त पवित्र मंत्र ‘हरे राम हरे कृष्ण’ का उच्चारण करते चलते हैं।
4. मथुरा में हर नुक्कड़ और कोने में कई सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। जैसे नृत्य, संगीत, नाटक इत्यादि। मथुरा में ‘कंस वध लीला’ नामक एक प्रसिद्ध नाटक का चित्रण भी किया जाता है जिसका सभी नागरिक आनंद लेते हैं।
मान्यताओं के अनुसार कंस मथुरा का राजा था और वह बहुत क्रूर और अत्याचारी था। उसने अपने राज्य में बहुत सारे लोगों को पीड़ित किया था। कंस ने अपने शासन काल के दौरान कई बुरे कर्म किए थे साथ ही कई मनुष्यों को मारा था। जब दुष्ट राजा को पता चला कि वह देवकी के 8वें पुत्र द्वारा मारा जाने वाला है तो उसने अपनी बहन को उसके पति के साथ कैद कर दिया और साथ ही साथ उनके सभी बच्चों को मार डाला। लेकिन कंस के सभी बुरे कर्मों और प्रयासों के बावजूद, देवकी के 8वें पुत्र भगवान श्रीकृष्ण बच गए और वृंदावन में यशोदा और नंद ने उनकी परवरिश की। जब कंस को इसके बारे में पता चला तो उसने भगवान श्रीकृष्ण को मारने के कई प्रयास किए लेकिन सभी व्यर्थ हो गए। अंततः भगवान श्रीकृष्ण ने कंस को मार डाला और अपने दादा और माता-पिता को मुक्त करवाया और राजा उग्रसेन को मथुरा के राजा के रूप में पुनः स्थापित किया गया। उस समय से, ‘कंस वध’ का यह दिन दुनिया में सच्चाई व अच्छाई के होने और बुराई को मिटाने के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।
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