सनातन हिन्दू धर्म में कालाष्टमी का काफी महत्व होता है। कालाष्टमी भगवान काल भैरव को समर्पित होता है। इस दिन काल भैरव के पूजन से घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है। ये पर्व हर महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भगवान शिव के एक उग्र रूप काल भैरव की पूजा होती है। काल भैरव की पूजा करने से शत्रुओं का नाश होता है और जीवन की सभी समस्याएं भी समाप्त होती हैं। तो आइए, इस आर्टिकल में काल भैरव की पूजन विधि, इसके महत्व और लाभ को विस्तार पूर्वक जानते हैं।
कालाष्टमी के दिन शुद्ध मन से व्रत रखें और भगवान काल भैरव के मंदिर में दर्शन करने को जाएं। इस दिन शिव पुराण का भी पाठ करें। साथ ही गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन कराएं। इसके अलावा इस दिन किसी से भी झूठ ना बोलें।
कालाष्टमी के दिन मांस-मदिरा का सेवन ना करें।
और इस दिन किसी का अपमान भी ना करें।
भगवान काल भैरव को भगवान शिव का एक उग्र रूप माना जाता है। उन्हें समय और मृत्यु का स्वामी भी कहा जाता है। काल भैरव की पूजा करने से व्यक्ति को कई लाभ प्राप्त होते हैं। काल भैरव को शत्रुओं का नाश करने वाला माना जाता है। उनकी पूजा करने से व्यक्ति के सभी शत्रु नष्ट हो जाते हैं। काल भैरव की पूजा करने से व्यक्ति में साहस आता है और सभी प्रकार के भय दूर हो जाते हैं। काल भैरव की पूजा करने से घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है। काल भैरव को न्याय का देवता भी माना जाता है। उनकी पूजा करने से कानूनी मामलों में सफलता मिलती है। काल भैरव की पूजा करने से व्यापार में वृद्धि होती है। साथ ही सभी प्रकार की बाधाएं दूर होती हैं। काल भैरव की पूजा करने से भय और आतंक का समापन होता है। और इस दिन की गई पूजा से रोगों से भी मुक्ति प्राप्त हो जाती है।
इस साल अपरा एकादशी 23 मई 2025 को मनाई जाएगी। यह तिथि विशेष रूप से धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण मानी जाती है। क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा होती है।
प्रदोष व्रत हिंदू धर्म में भगवान शिव की उपासना के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण व्रत माना जाता है। इस साल आने वाला ‘शनि प्रदोष व्रत’ शनिवार, 24 मई को मनाया जाएगा। यह विशेष रूप से शुभ माना जा रहा है, क्योंकि यह ‘शिव योग’ में पड़ रहा है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाने वाली ‘मासिक शिवरात्रि’ भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए अत्यंत प्रभावशाली व्रत माना जाता है।
हिंदू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ मास वर्ष का तीसरा महीना होता है, जो धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। यह मास सूर्य की प्रचंडता और तपस्या के लिए समर्पित होता है।