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अश्निन मास की शुरूआत हो चुकी है। इस माह में कई व्रत और त्योहार आते हैं, जो सनातन धर्म में काफी महत्वपूर्ण माने जाते हैं। ऐसे ही एक त्योहार है मासिक कालाष्टमी जिसे बहुत ही शुभ माना जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर कालाष्टमी मनाई जाती है। इस विशेष दिन पर भगवान शिव के रौद्र रूप काल भैरव देव की पूजा और उपासना का विधान है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस विशेष दिन पर पूजा-पाठ, दान-पुण्य और व्रत इत्यादि करने से भगवान काल भैरव प्रसन्न होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करते हैं। भक्तवत्सल के इस आर्टिकल में आश्विन माह में पड़ने वाली कालाष्टमी की तारीख, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, और कालाष्टमी व्रत के बारे में विस्तार से जानेंगे….
हिंदू पंचांग के अनुसार, आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की शुरुआत 24 सितंबर को दोपहर में 12 बजकर 38 मिनट पर होगी, जो 25 सितंबर को दोपहर में 12 बजकर 10 मिनट तक जारी रहेगी। ऐसे में 25 सितंबर को कालाष्टमी का पर्व मनाया जाएगा।
कालाष्टमी के दिन भगवान कालभैरव की पूजा का विशेष महत्व है। शिव पुराण में वर्णित है कि ''भैरवःपूर्णरूपोहि शंकरस्य परात्मनः। मूढास्तेवै न जानन्ति मोहितारूशिवमायया।'' अर्थात भैरव परमात्मा शंकर के ही स्वरूप हैं लेकिन अज्ञानी मनुष्य शिव की माया से ही मोहित रहते हैं। भैरव का अर्थ होता है भय को हर कर संसार की रक्षा करने वाला। श्रीकाल भैरव को शिव का पंचम रुद्रावतार कहा गया है, जो शिव के क्रोध से ही प्रकट हुए हैं ।
लेख में आगे बढ़ने से पहले ये जानना जरूरी है कि कालाष्टमी हर माह क्यों मनाई जाती है। भगवान काल भैरव को रक्षा, विनाश और परिवर्तन का देवता माना जाता है। कालाष्टमी पूजा करने से भगवान काल भैरव की कृपा प्राप्त होती है, जिससे भक्तों की नकारात्मक शक्तियों से रक्षा होती है। इसके अलावा-
- अन्याय और बुराईयों से मुक्ति मिलती है।
- जीवन में सफलता और समृद्धि प्राप्त होती है।
- भय और चिंता से मुक्ति मिलती है।
- आध्यात्मिक ज्ञान और शक्ति प्राप्त होती है।
- कालाष्टमी की पूजा करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- भक्त अपनी मनोकामनाओं को पूरा करने के लिए भी कालाष्टमी पूजा करते हैं।
- ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, कालाष्टमी पूजा करने से ग्रहों के दोषों से मुक्ति मिलती है।
- इस दिन भगवान काल भैरव की पूजा करने से रोगों से भी मुक्ति मिलती है।
- इस दिन किए गए व्रत और स्नान से व्यक्ति स्वस्थ और निरोगी रहता है।
1. सुबह स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें।
2. भगवान काल भैरव की मूर्ति या चित्र के सामने बैठें।
3. जल, फूल, अक्षत, सफेदचंदन, और कुमकुम अर्पित करें।
4. धूप और दीप जलाएं।
5. भगवान काल भैरव की आरती करें।
6. नैवेद्य (भोग) अर्पित करें।
7. पूजा के अंत में प्रसाद वितरित करें।
8. व्रत रखें और रात में जागरण करें।
9. अगले दिन स्नान करें और व्रत का पारण करें।
10. श्रद्धा अनुसार दान करें।
- जल
- पान
- नारियल
- फल
- मिठाई
- इमरती
नोट: पूजा विधि और सामग्री क्षेत्र और समाज के अनुसार भिन्न हो सकती है।
- "ॐ काल भैरवाय नमः"
- "ॐ भैरवाय नमः"
- ओम भयहरणं च भैरव:
- ॐ ह्रीं बं बटुकाय मम आपत्ति उद्धारणाय। कुरु कुरु बटुकाय बं ह्रीं ॐ फट स्वाहा
भगवान कालभैरव को प्रसन्न करने के लिए आप कुछ विशेष उपाय भी कर सकते हैं, जैसे- रात के समय काल भैरव के मंदिर जाकर धूप, दीपक जलाने के साथ काली उड़द, सरसों के तेल से पूजा करने के बाद भैरव चालीसा, शिव चालीसा व कालभैरवाष्टक का पाठ करें। कालिका पुराण के अनुसार भैरव जी का वाहन श्वान है इसलिए इस दिन काले कुत्ते को मीठी चीजें खिलाने से भैरव प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों को आशीर्वाद देते है।
मासिक कालाष्टमी के दिन व्रत रखना बहुत ही फलदायी माना गया है। इस दिन व्रत रखने वाले जातक को सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए और लहसुन-प्याज का सेवन नहीं करना चाहिए। ध्यान रखें कि साधक के लिए इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना अनिवार्य माना गया है। इस दिन गलती से भी किसी को मानसिक या शारीरिक कष्ट न पहुंचाएं। बाबा काल भैरव को प्रसन्न करने के लिए इस दिन दान करना शुभ होता है।
शास्त्रों की मान्यता के अनुसार भगवान काल भैरव की उपासना कभी भी की जा सकती है। लेकिन विशेष रूप से कालाष्टमी के दिन विधिवत रूप से कालभैरव की पूजा करने से जल्दी ही शुभ फल मिलते है। शिवपुराण में इनकी महिमा का गुणगान करते हुए नंदीश्वर ने भी कहा है कि- 'जो मनुष्य कालभैरव के संनिकट उपवास करके रात्रि में जागरण करता है, वह समस्त पापों से मुक्त हो जाता है। प्राणियों के लाखों जन्मों में किए हुए जो पाप हैं, वे सब के सब कालभैरव के दर्शन से मिट जाते हैं। जो मूर्ख लोग कालभैरव के भक्तों का अनिष्ट करता है,वह इस जन्म में दुःख भोगकर पुनः दुर्गति को प्राप्त होता है। जो लोग विश्वनाथ के तो भक्त हैं परन्तु कालभैरव की भक्ति नहीं करते, उन्हें महान दुःख की प्राप्ति होती है।' मान्यता है कि काल भी इनसे भयभीत रहता है इसलिए इन्हें काल भैरव एवं हाथ में त्रिशूल, तलवार और डंडा होने के कारण इन्हें दंडपाणि भी कहा गया है। इनकी पूजा करने से नकारात्मक शक्तियों, बुरी आत्माओं और जीवन में आने वाली बाधाओं से मुक्ति मिलती है। वहीं भगवान कालभैरव को न्याय और धर्म का संरक्षक माना जाता है। इनकी उपासना से भक्तों को हर क्षेत्र में विजय मिलती है और वह धर्म के मार्ग पर चलता है।
मान्यता है कि भैरव शब्द के तीन अक्षरों में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों की शक्ति समाहित है। भगवान विश्वनाथ काशी के राजा हैं और काल भैरव इस नगर के कोतवाल माने जाते हैं। इसी कारण से इन्हें काशी का कोतवाल भी कहा जाता है। इनके दर्शन किये बिना बाबा विश्वनाथ का दर्शन अधूरा माना जाता है। इसलिए विश्वनाथ के दर्शन कर कालभैरव के दर्शन करना चाहिए। ब्रह्मवैवर्तपुराण में महाभैरव, संहारभैरव, असितांगभैरव, रुद्रभैरव, कालभैरव, क्रोधभैरव, ताम्रचूड़भैरव तथा चंद्रचूड़भैरव इन्हीं आठ भैरवों की उपासना का विधान बताया गया है। लेकिन वर्तमान में सभी जगह श्रीबटुक एवं श्रीकालभैरव की पूजा-आराधना सर्वाधिक की जाती है। बटुक भैरव जो भक्तों को अभय देने वाले सौम्य और सात्विक रूप में प्रसिद्ध है तो वहीं काल भैरव आपराधिक प्रवृतियों पर नियंत्रण करने वाले प्रचंड दंडनायक है। ये अपने भक्तों को तत्काल सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति प्रदान करते हैं। इनकी पूजा या इनका स्मरण करने से भी घर में नकारात्मक ऊर्जा, जादू-टोने तथा भूत-प्रेत आदि से किसी भी प्रकार का भय नहीं रहता है।
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