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चेटीचंड, सिंधी समुदाय के लोगों के लिए विशेष महत्व रखता है। यह पर्व चैत्र शुक्ल द्वितीया को मनाया जाता है, जिसे सिंधी नववर्ष की शुरुआत भी माना जाता है। भगवान झूलेलाल को जल देवता और सिन्धी समाज के रक्षक के रूप में पूजा जाता है। हर साल इस दिन श्रद्धालु विशेष पूजा-अर्चना करते हैं और भव्य शोभायात्रा निकालते हैं।
चेटीचंड का संबंध भगवान झूलेलाल से है, जिनका जन्म 10वीं शताब्दी में सिंध प्रांत (अब पाकिस्तान में) में हुआ था। उस समय सिंध में सुमरा वंश का शासन था, जो सभी धर्मों के प्रति सहिष्णु था। झूलेलाल जी का जन्म ऐसे समय में हुआ जब सिंधी समाज पर अत्याचार हो रहे थे और धर्म परिवर्तन का दबाव था। उन्होंने समाज को धार्मिक स्वतंत्रता और न्याय का मार्ग दिखाया।
झूलेलाल जी को जल देवता का अवतार माना जाता है। प्राचीन काल में सिंधी समाज के लोग मुख्य रूप से व्यापार और जलमार्ग से यात्रा करते थे। ऐसे में वे अपनी यात्रा की सफलता और सुरक्षा के लिए भगवान झूलेलाल की पूजा करते थे। झूलेलाल जी ने समाज को सत्य, अहिंसा और एकता का संदेश दिया, इसलिए आज भी सिंधी समुदाय इस दिन को भव्य रूप से मनाता है।
चेटीचंड के दिन सिंधी समाज में विशेष रूप से बहिराणा साहिब की पूजा की जाती है। यह पूजा जल तत्व के महत्व को दर्शाती है। पूजा विधि इस प्रकार है:
चेटीचंड केवल झूलेलाल जयंती का पर्व ही नहीं, बल्कि यह सिंधी नववर्ष की शुरुआत का भी प्रतीक है। चैत्र शुक्ल द्वितीया को ही नववर्ष की शुरुआत मानी जाती है। इसी दिन अमावस्या के बाद प्रथम चंद्र दर्शन होता है, इसलिए इसे चेटीचंड कहा जाता है।
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